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Monday, May 8, 2017

ममता बनर्जी के  लिये उचित अवसर

ममता बनर्जी के  लिये उचित अवसर
हरिराम पाण्डेय
कोलकाता : राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के अवकाश ग्रहण करने के दिन  जैसे जैसे जैसे करीब आ रहे हैं राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक गोलबंदी की संभावनाएं जोर पकड़ती जा रही हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गैर भाजपाई दलों को लेकर एक तीसरे मोर्चे के प्रस्ताव दिया है। यह यकीनन पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी के लिए राष्ट्रीय स्तर अपना वजूद कायम करने का सबसे अच्छा मौका है। एक तरफ भा ज पा का आकार सुरसा के मुंह की तरह फैलता जा रहा है और लगता है कि उसे रोक पाने की क्षमता किसी में नहीं है। लेकिन भारतीय का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि किसी भी व्यापक राजनीतिक सत्ता को चुनौती सदा पूर्वी भारत से ही मिली है। आज भा ज पा के बढ़ते असर को अकेली ममता बनर्जी ही हैं जिन्होंने हर संभव तरीके से उसका विरोध किया है। चाहे वह नोटबंदी का मामला हो या कोई और। इस सिलसिले में वह देश की एकमात्र मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने भा ज पा के सामने अबतक हथियार नही डाला है और हर तरह से उसका मुकाबला किया है। अब  कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने तृणमूल। कांग्रेस सहित सभी विरोधी दलों को राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक जुट  होने का आह्वान किया है। यह ममता बनर्जी के लिए एक उचित अवसर है कि भा ज पा से मुकाबले के लिए   ताक़तवर तीसरे मोर्चे  की संभाव्यता का आकलन करें।
नोटबंदी के समय भी उन्होंने विरोधी दलों को एकजुट करने का प्रयास किया था पर उसमे एक अंतर्निहित जोखिम था कि यदि नोटबंदी की अवधि खत्म होने के बाद अर्थव्यवस्था में तेज सुधार हुआ तो गोटी उल्टी पड़ जाती इसलिये उस समय ज्यादा उत्साह नहीं दिखा। लेकिन इस समय कोई ऐसा रिस्क नही है। 
ममता बनर्जी भी इस अवसर का लाभ उठाने के लिए इच्छुक प्रतीत हो रही हैं। उन्होंने  अपनी आगामी दिल्ली यात्रा के दौरान कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं से मुलाकात की भी योजना बनाई है। यह इसलिए कि  तीसरे मोर्चे को ताक़तवर बनाने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की योजना के लिए रणनीति बनाई जा सके। जैसा कि दिख रहा है राज्य में भाजपा और माकपा में एक दुरभिसंधि है जिसके चलते भगवा दल राज्य में पसरता जा रहा है। यह दुरभिसंधि  छीजती माकपा की निष्क्रियता के रूप में है।इसलिए यह उचित होगा माकपा को खुले मंच पर साथ ले लिया जाय इससे उसकी निष्क्रियता कम हो जाएगी । हालांकि तृणमूल के नेताओं का यह कहना है कि उन्हें भा ज पा का कोई आतांकि नही है लेकिन जिस तरीके वह राज्य में धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण कर रही है यह और " दंडात्मक " राजनीति का सहारा ले रही है वह गलत है। अभी हाल में ममता जी ने दावा किया था कि " भाजपा ने उन्हें जान से मार डालने की धमकी दी थी। " उन्होंने कहा कि भा ज पा ने चेतावनी दी थी कि यदि वे अपनी ओडिशा यात्रा के दौरान मुख्य मंत्री नवीन पटनायक से मिलेंगी तो उनकी हत्या कर दी जाएगी। 
साथ ही माकपा भी तीसरे मोर्चे में दिलचस्पी दिखा रही है। गत 4 मई को माकपा नेता गौतम देब ने सभी विपक्षी दलों से एक जुट होकर एक तीसरे मोर्चे के गठन का आह्वान किया।इस आह्वान से माकपा मुख्यालय में खलबली मच गई और 5 मई को बयां जारी किया गया कि यह गौतम देब का व्यक्तिगत विचार था पार्टी का इससे कोई  लेनादेना नहीं है। लेकिन तीसरे मोर्चे के इस प्रस्ताव पर भा ज पा ताल ठोकती हुई दिख रही है। बंगाल भा ज पा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि " बेशक तीसरा मोर्चा बना लें हमे डर  नहीं है 2019 में जीतेंगे तो हम ही।" अब इसमें राजनीतिक बोलबाजी चाहे जो हो पर राष्ट्रपति चुनाव के लिए सोनिया गांधी का विपक्ष के एक जुट होने के   आह्वान से  निश्चय ही तीसरे मोर्चे के गठन के पहले राजनीतिक दलों की नब्ज देखने का ममता बनर्जी को अवसर मिलेगा। यह एक मौका है कि भा ज पा का मुकाबला करने के लिए तीसरा मोर्चा गठित करने वाली नेता के रूप में  ममता बनर्जी खुद को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोजेक्ट कर सकती हैं। इसका परिणाम चाहे जो हो पर एक मजबूत और जुझारू नेता के रूप में देश भर में उनकी पहचान को बल मिलेगा। दुनिया भर में अब तक जुझारू नेता ही जनता की पहली  पसंद होते रहे हैं।

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