CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Monday, May 15, 2017

विपक्ष ही क्यों

विपक्ष ही क्यों 
पिछले दो वर्षों से अजीब रिवाज़ देखने को मिल रहा हैं मीडिया हाथ धोकर विपाक्षी दलों के पीछे पड़ी रहती है और सत्तारूढ़ दल या स्पष्ट कहें कि भा ज पा की ओर से आंखें मूंदे हुए है।उसकी कोई खामी मीडिया को दिखती ही नहीं  है। टी वी चैनलों में तो होड़ मची हुई है जिसे वे बड़े फख्र से " एक्सपोज" कहते है। बीवते हफ्ते पर ही ध्यान दें।रा ज द के लालू प्रसाद से लेकर तृणमूल से समर्थन प्राप्त  बरकाती तक की मीडिया ने बखिया उधेड़ दी। लेकिन किसी ने बंगाल में भा ज पा के दिलीप घोष के बारे में ये नहीं कहा कि वे भी राज्य की साम्प्रदायिक सद्भावना को पलीता लगा रहे हैं। मीडिया के निशाने पर अभी जितने भी दल हैं वे सब विपक्षी दल है। एक चैनल ने पखवाड़े भर पहले रा ज द नेता लालू यादव और भागलपुर की जेल में बंद सिवान के डॉन शहाबुद्दीन की बात को दिखाया पर बाद में उसका फॉलोअप ही नही दिखा। बागवान जाने ये पत्रकारिता का कौन सा सिद्धान्त है। एक चैनल समूह ने लालू यादव की बेटी और दामाद को एक्सपोज किया कि उन्होंने एक तेल कंपनी से भारी धन कमाया।यही नहीं अरविंद केजरीवाल की खबरें भी आतीं रहीं। शशी थरूर की पत्नी सुनन्दा पुष्कर की मौत और उस मौत की जांच में पुलिस की झोल झाल  का भी सुपर एक्सपोज़ आया।यहां एक सवाल है कि भाई भ्रष्टाचार का भी कोई रंग  होता है क्या? लालू यादव सजायाफ्ता राजनीतिज्ञ हैं और फिलहाल जमानत पर हैं। इस संबंध अगर की नया सबूत आता है तो उसपर कार्रवाई होगी। केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा हैं और अगर उनके खिलाफ कुछ मिलता है तो ज़रूर जनता के सामने आना चाहिए। सुनंदा पुष्कर की मौत तीन साल पहले हुई थी और दुख यह है कि वह मौत अभी तक रहस्य बनी हुई है। इस मामले म अगर कुछ मिलता है तो उसे सामने लाना ही चाहिए। लेकिन जो संदेहजनक है वह है कि भा ज पा का कहीं नाम ही नहीं है।2013 ?का व्यापम घोटाला पर्दे की ओट में है। 2016 में खबरें आईं थीं कि नोटबंदी के पहले भा ज पा के नेताओं ने बहुत ज़मीनें खरीदीं उनका जिक्र ही नहीं होता। अभी तक जांच नहीं शुरू हुई है। क्या बात है कि केवल विपक्ष ही निशाने पर क्यों है? क्या बात है कि केवल भ्रष्टाचार पर ही बातें होतीं है , देश में इसके अलावा कुछ नहीं है।देश बार में गाय की राजनीति चल रही है। गाय की रक्षा के नाम पर लोगों को मारा पीटा जा रहा है। इसपर क्यों नहीं सवाल उठता? नोटबंदी को लेकर जो कुछ भी बताया गया था वह नही हुआ लेकिन सरकार ने सके बारे में कुछ नहीं कहा। क्या जनता की कठिनाई के लिए सरकार जवाबदेह नहीं है? मोदी सरकार ने वादे किए थे वे पूरे होते नहीं दिख रहे हैं। माओवादियों पर सरकार का अंकुश खत्म होता दिख रहा है।कश्मीर की हालत बिगड़ रही है , पाकिस्तान से तनाव बढ़ता जा रहा है। सरकार मौन है। कश्मीर घाटी जल रही है क्या किसी भी मंत्री से इसके लिए जवाब तलब किया गया?  यही नही सरकार खुल्लमखुल्ला गलत आंकड़े अखबारों को " फीड" कर रही है। बजट के बाद सरकार की ओर से कहा गया कि नोटबंदी के बाद 9 करोड़ करदाता बढ़े हैं।  अखबारों में ये तथ्य के रूप में पेश किए जा रहे हैं, पर सरकार की ओर से ये आंकड़े किसने दिए विस्का कोई जिक्र नही है। बस यही कहा जा रहा कि एक उच्च पदस्थ सूत्र ने नाम गोपनीय रखने की शर्त पर बताया। इसासे साफ जाहिर हो रहा है कि प्रचार की मशीनरी सरकार के सहयोग से चल रही है। यह लोकतंत्र के छूते खंभे की ज़िम्मेदारी है कि वह सरकार और विपक्ष दोनों से जवाब मांगे।लोकतंत्र के उद्देश्य को बचाना ज़रूरी है।

0 comments: