जाधव की जद्दोजहद
अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारत ने कुलभूषण जाधव का मुकदमा फिलहाल जीत लिया। जाधव पर पाकिस्तान की अदालत ने जासूसी का जुर्म गढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने अपने आदेश में साफ कहा है कि जब तक अदालत अपना अंतिम फैसला नहीं सुनाती है तबतक उसे फांसी नहीं दी जाय। अदालत ने यह भी कहा है उसके आदेश का पालन करने के कौन से कौन उपाय किये गए इस बात की भी अदालत को जानकारी दे। अदालत के इस फैसले का ज्यूरी ने पूरी सहमति दिखाई और फिलहाल जाधव की फांसी रुक गयी। भारत ने इसे अपनी फतह मानी है जबकि पाकिस्तान का कहना है कि अदालत बिक गई है। इस मामले की सुनवाई के दौरान पाकिस्तान की दलीलें अदालत ने गैरज़रूरी कहा है। अदालत का यह निर्णय फिलहाल पाकिस्तान के लिए अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार बाध्यतामूलक है। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने जी तेजी से मामले की सुनवाई की वह प्रशंसनीय है। यह फैसला हैरतअंगेज नहीं है और उम्मीद के अनुरूप है और इसकी कोई जल्दीबाजी नहीं है । सुनवाई के दौरान पाकिस्तान ने यह कहा कि जाधव की फांसी की तारीख तय नहीं है और देश के कानून के मुताबिक उसे दया की याचना का हक़ है। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि जाधव को फांसी की सज़ा और इसके बाद उसे फांसी दिए जाने की बात से ही जान पड़ता है कि भारत के अधिकार को बुरी तरह क्षतिग्रस्त किया गया है। अदालत ने पाकिस्तान की उस उक्ति को दोहराया कि 14 अगस्त के पहले फांसी नहीं दी जाएगी, अदालत ने कहा कि उसे डर है इसके बाद जाधव को फांसी दे दी जाएगी , चाहे अदालत का अंतिम निर्णय आये अथवा नहीं। क्योंकि , पाकिस्तान ने यह आश्वासन नहीं दिया है कि जाधव को तबतक फांसी नहीं दी जायेगी जबतक अंतिम फैसला ना जाय। अदालत के इस निर्णय से दो बातें साफ हैं कि स्थिति इतनी गाम्भीर थी कि अंतरिम निर्णय ज़रूरी था और पाकिस्तान उसे फांसी देने की जिद पर क़याम है। क्योंकि सुनवाई की शुरुआत में पाक ने साफ कहा था कि अदालत को इस मामले में सुनवाई का हक़ नही है। अदालत ने इस आपत्ति के जवाब में विएना संधि की धारा 1 का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि ' विएना संधि की व्याख्या और प्रयोग पर किसी भी विवाद की सुनवाई अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा की जाएगा। ' भारत का कहना था कि पाकिस्तान ने जाधव मामले में कूटनयिकों को उससे मिलने नही दिया लिहाजा मामला अंतरराष्ट्रीय अदालत की सुनवाई के योग्य है। कोर्ट को इस दलील से संतुष्ट देखा गया। मजे की बात यह है कि 2008 में जो भारत पाक संधि हुई थी, उसमें कूटनयिक सुविधाओं का भी जिक्र है, उसे अदालत ने देखा तक नहीं। केवल यही कहा कि इसपर बाद में विचार किया जाएगा।भारत का कहना था कि विएना संधि की धारा 36(1) के तहत कूटनयिक मदद का उल्लेख है। भारत ने अनंतिम राहत के तौर पर इसी धारा में प्रदत्त सुविधा मुहैया कराने की मांग की थी। अदालत ने पाया कि राहत की मांग और अधिकार में एक संबंध है और इसी के तहत भारत की प्रार्थना स्वीकार कर ली।
यह पहली लड़ाई भारत ने जीत ली पर अभी लंबा संघर्ष बाकी है। अब भारत अंतरराष्ट्रीय कोर्ट से यह दरख्वास्त करेगा कि जाधव को फाँसी ना दी जाय और उसे रिहा किया जाय। यह सोचना अभी उचित नही होगा कि जाधव को माफी मिल जाएगी। क्योंकि ऐसे मामलों में अबतक जो हुआ है वह अमरीका में हुआ है और उन मामलों की समीक्षा अमरीकी कानूनी प्रणाली के तहत हुई है। अब पाकिस्तान जोर देगा कि इसकी समीक्षा पाकिस्तान की कानूनी प्रणाली के तहत हो और तब कोई गारंटी नहीं है। अब इस मामले भरस्ट के हिट में अच्छा होगा कि मामले को जितना हो सके खींचे। विशेषज्ञों के अनुसार अब अदालत के प्रमुख दोनों देशों के वकीलों से मिलेंगे और उनकी राय जानना चाहेंगे इसके लिखित आवेदन की तारीख तय होगी। पाकिस्तान फिर अदालत के अधिकार क्षेत्र की बात करेगा इसके बाद अदालत हो सकता है कि भारत के मामले के वज़न को देखेगी और फिर बहस होगी और तब फैसला आएगा। इस दुनिया के सभी क्षेत्रों और कोणों से विश्लेषणों की बाढ़ आएगी। इसके बाद क्या होगा कुछ अभी से कहना मुश्किल है।
कितना दुखद है कि जाधव के लिए उसका देश क्या कर रहा है उसे मालूम नही है क्योंकि उसतक पहुंचने वाली सारी सूचनाएं तो पाकिस्तान नियंत्रित है। भारतीयों और दुनियां में भारत के मित्रों का कर्तव्य है कि वह पाकिस्तान के लीगल सिस्टम के विरोध का एक वातावरण तैयार करे ताकि वहां की जनता अपनी सरकार को नैतिक तौर पर दोषी समाझने लगे।
Friday, May 19, 2017
जाधव की जद्दोजहद
Posted by pandeyhariram at 6:46 PM
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