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Sunday, May 14, 2017

कश्मीर: सत्ता की चौपड़

कश्मीर : सत्ता की चौपड़ 
कुछ दिन पहले कश्मीर के आज़ादी समर्थक संगठन हुर्रियत कांफ्रेस के दो नेताओं , मीरवाईज  फारूक और यासीन मलिक , ने एक बयान जारी कर कहा था कि उनका संघर्ष भारतीय है और उसे आई एस या अल कायदा से कोई लेना देना नहीं है। बयान में नई दिल्ली पर आरोप लगाया गया था कि वह इस संघर्ष में इन संगठनों को जोड़ कर मनोवैज्ञानिक युद्ध लड़ रही है।दूसरी तरफ़ हिज़्ब उल मुजाहिदीन के पूर्व लोकल नेता ज़ाकिर मूसा ने शनिवार बयान जारी कर कहा कि यदि हुर्रियत नेता " इस्लाम  की जंग " में दखलंदाज़ी करटेंगे तो उनके हाथ काट कर लाल चौक पर लटका दिए जाएंगे। मूसा ने शनिवार को हिज़्ब उल मुजाहीदीन से उस समय संबंध तोड़ लिया जब हिजबुल मुजाहिदीन ने घोषणा की कि कश्मीर में उसकी लड़ाई सियासी है, इस्लाम के लिए नहीं है। बुरहान वानी के बाद मूसा कश्मीर में हिजबुल मुजाहिदीन का नेता हुआ करता था। मूसा ने संगठन  छोड़ने के बाद कहा कि घाटी में इस्लाम की जंग वह लड़ेगा।  हुर्रियत ने इसके विरोध में अबतक कोई बयान जारी नही किया है लेकिन वह मूसा का अगला निशाना होने  वाला है। सत्ता की यह रस्साकशी कुछ ऐसी नहीं है जो अचानक उभर आई है। पिछले साल जब  कश्मीर घाटी में  मामला गर्म होने लगा और बात बिगड़ने लगी  तबसे यह पोशीदा जंग की तरह लड़ी गई लड़ाई है  और सरकार तथा सुरक्षा एजेंसियों को इसका पूरा फायदा उठाना चाहिए।ऊपर कहे गए दो बायानो से ज़ाहिर हो जाता है कि घाटी में खुली रस्साकशी चल रही है और लगातार फैलती ही जा रही है। हालांकि हुर्रियत घाटी में एक प्रभावहीन संगठन हो चुका है तब भी उसे पाकिस्तानी  खुफिया संगठन आई एस आई पैसा देता है और इसके बूते वह घाटी में पथराव के कारोबार को चला सकता है। वह इस काम को अपने लोकल काडरों के जरिये अंजाम देता है। दूसरी तरफ हिज़्ब उल मुजाहिदीन अभी भी मज़हब के नाम पर समर्थन पा रहा है और उसे हिंसा के लिए किसी धन की ज़रूरत नहीं है। दोनों संगठनों से बारी बारी से निपटने की ज़रूरत है। पहले हुर्रियत को पकड़ना सरल होगा क्योंकि यह इस समय उतना उग्र नही है। किसी भी समझौते से पहले हुर्रियत को बाध्य करना पड़ेगा कि वह हिज़्ब उल मुजाहिदीन की ओर बढ़े। यह सरल नहीं और इसपर लगातार नज़र रखनी होगी। मूसा के छोड़ने के बाद हिजबुल मुजाहिदीन का विभाजित होना लगभग तय है। दोनों में दूरी बढ़ाने के सारे प्रयास भी किये जाने चाहिए। यह सब बयान जारी कर किया जाना उचित होगा। इसासे कोई मतलब नही ह की हुर्रियत ने ये बयान जारी किए  हैं या नही पर दिखना ऐसा चाहिए कि बयानात हुर्रियत ने ही जारी किये हैं। इन बायानो में हिज़्ब उल मुजाहिदीन  की इतनी  तीखी आलोचना हो कि उनकी लीडरशिप इसे देखने और इसपर तवज्जो देने के  लिए मजबूर हो जाय। हिज़्ब उल मुजाहिदीन इस समय जिन लोगों के हाथों में है वे नौजवान हैं और उनका खून गरम है और वे अपना औचित्य साबित करने के लिए व्याकुल हो जाएंगे तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुर्रियत के दो - एक नेता का खून भी कर देंगे। उधर हुर्रियत पर भारत विरोधी होने का इल्जाम लगा कर  उसके नेताओं की सुरक्षा व्यवस्था हटा लेने का यह सबसे अच्छा मौका है। इसासे वे असुरक्षित हो जाएंगे और उनोर हमला आसान हो जाएगा। वे जब यह महसूस करेंगे कि उनकी जान को खतरा है और सुरक्षा का वह पहले वाला घेरा भी नहीं है तो वे लोकप्रसिद्धि के चक्कर से परे हो जाएंगे और  चुप हो जाने के लिए बाध्य हो जाएंगे क्योंकि उनमें से कोई भी आत्मबलिदान करने या अपने समर्थकों को कुर्बान करने नही आया है। उधर हिज़्ब उल उनसे खार खाये बैठा है वह बयान जारी कर कह भी चुका है कि हुर्रियत अपने आंदोलन को व्यापक करने के लिए मस्जिद का उपयोग बंद कर दे।वे सार्वजनिक स्थलों पर जाने से कतराने लगेंगे।  जैसे ही ऐसा होगा वे सुरक्षा के लिए गिड़गिड़ाने लगेंगे , क्योंकि उनकी सार्वजनिक उपस्थिति से उनकी धार काम हो जाएगी और पाकिस्तान से मिलने वाला धन भी घट जाएगा। वे घुटनों पर आ जाएंगे और तब उनसे सहयोग के लिए दबाव डाला जा सकता है। इसासे देश को लाभ होगा। जब तक हुर्रियत से ना निपटा जाय तबतक मुजाहिदीन के खिलाफ कार्रवाई धीमी कर दी जाय। क्योंकि यदि मुजाहिदीन का शीर्ष नेता मारता जाता है तो हुर्रियत का भाव फिर बढ़ जाएगा। जैसे ही हुर्रियत और मुजाहिदीन में तनाव बढ़ेगा तो वहां कब नौजवानों के मन में संशय बढ़ जाएगा।इससे आंदोलन का रुख बदल जायेगा। मुजाहिदीन के साथ आतंकवादी हैं और उनकी ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं है। क्योंकि एक पुरानी कहावत है कि " जो बंदूकों के बल पर जीते हैं वे इसीसे मारे जाते हैं।"  थोड़ा समय लगेगया जब हुर्रियत नख - दंतहीन हो जायतेगा तो मुजाहिदीन की मुश्कें कसना सरल हो जाएगा।  घाटी में विद्रोह नौजवानों के मन में बैठता जा रहा है। उनके मन में भ्रम पैदा कर उनमें मतभेद किया जा सकता है। कार्रवाई की योजना बनाने वालों को और खुफिया एजेंसियों को सक्रिय हो जाना चाहिए तथा इस नवसृजित अवसर  का लाभ उठाना चाहिए। वैसे ही हुर्रियत के पांव उखड़ते दिख रहे हैं और इस आग में घी डालने के लिए सक्रिय हो जाना चाहिए।

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