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Sunday, May 21, 2017

विपक्ष मुक्त भारत की कीमत

विपक्ष मुक्त भारत की कीमत 
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भा ज पा अध्यक्ष अमित शाह चाहते है कि देश को विपक्ष मुक्त बना दिया जाय लेकिन इस क्रम में वे भाजपा को भी खत्म कर रहे हैं। आज भाजपा अपने जीवंत स्वरूप की उदास और असहाय छाया बन कर राह गई है। भाजपा नेतृत्व के शासन के तीन वर्ष पूरे हो रहे है और मोदी- शाह युगल की ख्वाहिश है कि भारत को विपक्ष मुक्त कर दिया है जो खुद में एक खतरनाक स्थिति होगी- देश के लोकतंत्र के लिए भी और खुद भाजपा के लिए भी। वस्तुतः इन दोनों नेताओं ने इस पार्टी के चरित्र का ही सत्यानाश कर दिया है। कम्युनिस्ट पार्टी के बाद भाजपा इस देश में एकमात्र काडर आधारित पार्टी थी जिसमे अंदरूनी मतभेदों को भीतर  ही भीतर सुलझा लिया जाता था और कई पीढी के नेताओं को वर्चस्वता स्थापित करने के लिए भाग दौड़ करने अनुमाति थी।अब यह पार्टी मोदी और शाह के दो ध्रुवों के बीच झूल रही है। पार्टी पर दो ही नेत्याओं का शासन चलता है। मंत्रिमंडल तो मानो मक्खन के बने सिपाहियों का दस्ता है। किसी के पास कोई अधिकार नहीं हसी और अगर कोई जिद्दी पत्रकार अधिकार के बारे में किसी मंत्री से सवाल करता तो वह उस बिचारे मंत्री की शक्ल पर ऐसी बेचहरगी और व्यंग्य भारी मुस्कान तैर जाती है जहां सवाल खुद बखुद खत्म हो जाते हैं। जो खबर मिलती है उसके मुताबिक कैबिनेट की बैठकों में भी कोई मंत्री कुछ नहीं बोलता सब कुछ पहले से ही याय रहता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि इसी दबाव के कारण पर्रिकर गोआ जाने के लिए बेचैन थे। कई मंत्री यू पी या अपने राज्यों में  जाने की मंशा से बेचैन हैं।उनका कहना है कि ' यहां पिजड़े में दंड रहने से तो बेहतर है कि अपने राज्य में जाकर रहें। यहां तो मोदी और शाह के अलावा किसी की नहीं चलती।' इसबात की हक़ीक़त ऐसे भी पता चलती है कि पर्रिकर के जाने के बाद कोई रक्षा मंत्री होने को तैयार नहीं है। जबकि देश को एक पूर्ण कालिक रक्षामंत्री की तत्काल ज़रूरत है। किसी भी विषय पर निणय का अधिकार केवल प्रधान मंत्री कार्यालय को है। कोई इस पर उंगली नहीं उठाता ,यहां तक कि मीडिया भी नहीं।यही किरण है कि मीडिया के बार बार पूछने पर भी कोई नहीं बोलता कि नोटबंदी का फैसला किसने किया था? हाल में राम माधव को कश्मीर काप्रभारी बनाया गया है।वे सरकार में कुछ नहीं हैं। कुल मिला कर मोदीभारत को राहत्रपति शासन प्रणाली की ओर ले जा रहे हैं। यही कारण है कि गृह संबंधी मसलों पर गृह मंत्री जी से कुछ नहीं पूछा जाता है। यही हाल शुसमा स्वराज का भी है । कहने को तो वे विदेश मंत्री हैं पर काम कुछ नहीं है फकत इसके की विदेशों में संकटग्रस्त भारतीयों को ट्वीटर पर संदेश भेजने के सिवा। कैबिनेट को रबर की मुहर बनाने के पहले उन्होंने भाजपा पर कब्ज़ा किया। आडवाणी जी और जोशी जी ऐसे नेताओं को नवनिर्मित मार्ग दर्शक मंडल में भेज दिया। कोई बता सकता है कि मंडल की  इतने दिनों में कोई बैठक क्यों नहीं हुई। 
जिन्होंने आज से पहले उस भाजपा को देखा होगा जब अटल जी प्रधानमंत्री यह तो उन्होंने ज़रूर नोट किया होगा कि  वे कभी पार्टी की जुबान बैंड करने की कोशिश नहीं करते थे। मंत्री सार्वजनिक तौर पर अपनी असहमति जाहिर करते थे या एक दूसरे को मात देने में लगे रहते थे। उस दौर में मंत्रियों की अपनी अलग पहचान थी। अब तो पालिका चुनाव में भी मोदी जी ही सबकुछ हैं। उन्ही की छवि पर पार्टी चुनाव लड़ती है। अमित शाह ने भाजपा की छवि पर मोदी जी की छवि लगा दी है। टिकट बंटवारे से लेकर पद वितरण तक सब कुछ मोदी और शाह की जोड़ी के जिम्मे रहता है। जब तक पार्टी चुनाव जीतती रहेगी तबतक यही हालत रहेगी और अगर 2019 में पार्टी को यू पी जैसा बहुमत मिला तो लोकतान्तरिक संसदीय व्यवस्था केवल कहने को रहेगी। अटल जी की वेह बात बहुतों को याद होगी , जब कुछ मामलों पसर नहीं बोलने को विपक्ष उनसे कहता तो वे कहते थे ' मत भूलिए अटल तो हूँ ही बिहारी भी हूँ।' उनकी इस बात पर सदन में ठहाके गूंज उठते थे।

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