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Monday, May 15, 2017

काले धन का गोलचक्कर

काले धन का गोल चक्कर, नेताओं-व्यवसायियों की मिलीभगत

कला धन निकलता है और साफ सुथरा हो कर लौट आता है
मुंह बाये ताकती रहती है जनता 

हरिराम पाण्डेय 

कोलकाता:  जब नोटबंदी हुई थी तो आम जनता को कई बातें बताईं गईं थीं इनमें एक यह भी था कि यह काले धन के पैदा लेने से रोकने के लिए किया गया है। लेकिन अबतक यह नही बताया गया कि जिस कालेधन की सरकार बात कर रही है वह एफ डी आईबी का सफेद चोला पहन कर आ गया है। 2014 के चुनाव प्रचार में मोदी जी ने कहा था कि देश के बाहर इतना काला धन ही कि कगार वह ले आया गया तो सबके खाते में 15 - 15 लाख रुपये जमा हो जाएंगे। यह सच था। ग्लोबल फाइनांशियल इंटिग्रिटी ( जी एफ आई ) की ताजा रपट के मुताबिक केवल 2014 में 21 अरब डॉलर कालाधन देश से बाहर गया। सोचिए 1.30 अरब की आबादी वाले देश से 21 अरब डॉलर बाहर निकल गए। दिलचस्प बात यह है कि यह आंकड़ा नेताओं को मालूम था।  जी एफ आई के आंकड़े बताते हैं कि 2013 में 23 अरब डॉलर बाहर गए थे। इतनी बड़ी रकम देश से बाहर चली गयी। दिलचस्प बात यह है कि इस सारी धोखाधड़ी में इंग्लैंड की रॉथचाइल्ड बैंक की सलाहकार की भूमिका थी। इस सिलसिले में जब रिसर्व बैंक से सन्मार्ग ने जानना चाहा तो उसने केवल इतना ही बताया कि इस सिलसिले में 8 कंपनियों को नोटिस भेजी गई है।आर बी आई ने की कंपनियों का नाम बताने से इनकार कर दिया। हालांकि अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक इन 8 कंपनियों में दो आई टी कंपनियां  भी हैं।  
कैसे होता है काम 
बैंक के सूत्रों के अनुसार कुछ कंपनियां और कंपनी समूह अपनी विदेशी शाखाओं में बड़ा निवेश करते हैं  और फिर वहां से कर्ज उगाह कर उसे एफ डी आई के रूप में देश में लाकर किसी तीसरी कंपनी में लगा देते हैं। शुरू में तो बैंक और नियामक प्राधिकरण इस चालाकी को भांप नही पाए पर जब तक बात समझ में आई और वे सक्रिय हुए तबतक काफी धन जा चुका था और उनमें से बहुत ज्यादा एफ डी आई के रूप में लौट भी आया था।इस पूरी प्रक्रिया को राउंड ट्रिपिंग यानी गोल चक्कर का नाम दिया गया है।
2008 की व्यापक  मंदी के बाद कई देशों की माली हालत खस्ता हो गई थी और उन्होंबे अपनी व्यवस्था संभालने के लिए मौद्रिक नियमों में छूट दी और वे देश अचानक कर चोरों के लिए सुरक्षित जगह (टैक्स हेवेन) बन गए। 2008 की मंदी के दौरान अमरीकी रीयल स्टेट कारोबार डूब गया और उसी के साथ दुबई का भी रियल स्टेट बाजार मुंह के बल लुढ़क गया। पश्चिमी देशों के लिए दुबई काले धन के निवेश की सबसे अच्छी जगह थी। मंदी के बाद इन्हें लगभग 3 खराब डॉलर का घाटा लगा। यूरोप और अमरीका का अधिकांश काला धन दुबई के मुक्त व्यापार क्षेत्र में लगा था। दुबई की चमक फीकी पड़ने लगी क्योंकि वह चमक हर तरह की नाज़ायज़ दौलत की देन थी। चाहे वह दौलत ड्रग से आई हो या सोने की तस्करी से या हथियारों की रफ्तनी से। 2009 में तो यहां तक अफवाह उड़ी थी कि बुर्ज अल अरब के निर्माण में जो कर्ज़ लिया गया है उसका व्याज देने में दिक्कत हो रही है। इस स्थिति को " दुबई फ्लू" का नाम दिया गया। इसके अलावा कई अरब देश अपनी जरूरतों को पूरा करने की कठिनाई से जूझ रहे थे। लाखों भारतीयों के रोजगार पर खतरा आ गया था। दुबई के शासकों ने इन एम रॉथचाइल्ड एंड ब्रदर्स की मदद ली। रॉथचाइल्ड परिवार भारत पर शासन कर चुके ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिकों में से एक रहा है।  10 अरब डॉलर पर सौदा हुआ। तय यह हुआ कि एफ डी आई के माध्यम से भारत का काला धन यहां लगाया जाय।यह गौर करने की बात है कि भारत के किसी भी घोटाले के तार क्यों यू ए ई या इंग्लैंड से जुड़ जाते हैं। चाहे वह कॉमनवेल्थ घोटाला हो या 2जी घोटाला हो या विजय माल्या का मसला हो या टाटा - जगुआर सौदा हो या किम्स अस्पताल का विवाद हो या ए बी जी शिपयार्ड का मामला हो या कोई और  सबके तार इन्हीं दो जगहों से जुड़े हैं और किसी ना किसी रूप में इसमें उसी एम रॉथचाइल्ड की भूमिका है। कारण है कि भारत सरकार हो या भारत का व्यावसायिक वर्ग सब उसी दमनकारी औपनिवेशिक आकाओं की मदद लेते हैं। हमारे राजनीतिज्ञ इसासे अवगत हैं  और खुफिया एजेंसियां भी इस तथ्य को जानती है।

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