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Tuesday, May 16, 2017

कांग्रेस में बदलाव

कांग्रेस में बदलाव?
कांग्रेस 2014 में नरेंद्र मोदी के हाथों बुरी तरह पराजित होने के बाद से ही एक अजीब जड़ता तथा भावशून्यता की स्थिति से गुजर रही है तथा अब राजनीतिक क्षेत्र में बने रहने के लिए पार्टी के भीतर बदलाव लाने जा रही है। अभी इस बारे कोई अधिकृत खबर नहीं आई है पर भीतरी सूत्रों जल्दी ही पार्टी की " सर्जरी" होगीऔर सूत्रों ने तो यहां तक कहा कि इस बदलाव में राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष नहीं बनाया जाएगा। कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस एक क्षेत्रीय दल बन कर रह जाएगी जैसी तृणमूल कांग्रेस है , नीतीश जी की पार्टी है, लालू जी की पार्टी है  और भी कई अन्य हैं। यह इस लिए कहा जा रहा है कि चाहे जो भी सच तो है कि अपने हर करामात और राष्ट्रीय पार्टी होने के दावों के बावजूद कांग्रेस दो राज्यों - कर्नाटक और पंजाब-  में सिमट कर रह गई है। उधर अमित शाह का प्रचंड प्रहार जारी है। भा ज पा ने बूथ स्तर  तक कार्यकर्ता तैनात किया है। कांग्रेस 1960 के दशक में ऐसी लामबंदी करती थी। कांग्रेसियों की शिकायत है कि बड़े नेता उनकी बात ही नहीं सुनते हैं।यह कितना सच है तो मालूम नही हैं पर अगर यह सच है तो यह भी सच है कि भीड़ के सामने केवल हाथ हिलाने से चुनाव नहीं जीते जा सकते हैं। इसके लिए चुनावी मशीनरी चाहिए , चुनाव के तंत्र और यंत्र चाहिए। गर कांग्रेस को भाजपा के बेहद  घातक प्रहार  से बचना है तो कुछ करना होगा। जिस बदलाव का कयास लगाया जा रहा है वह संभवतः मध्य प्रदेश के संदर्भ में ही होने वाला है। यहां अगले साल चुनाव है और पार्टी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। हो सकता है इसे संभालने के लिए और चुनावी व्यूह तैयार करने के लिए वहां कमल नाथ को भेजा जाए। 70 साल के कमल नाथ 9 बार सांसद का चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि  कमल  नाथ का राहुल गांधी से बहुत अच्छा तालमेल नही है लेकिन कहा जा रहा कि वे चुनाव जितवा सकते हैं इसलिए उन्हें भेजने पर सहमति  हुई है। इस अटकल के पहले कमल नाथ के प्रतिद्वंद्वी ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह की सोनिया गांधी के साथ बैठक  हुई थी। कमल नाथ के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी है सिंधिया हैं और सिंधिया कुछ भितरघात ना कर दें इसलिए उन्हें लोकसभा में पार्टी का नेता बनाया गया है। इससे यह भी जाहिर होता है कि दंड एक ही पीढ़ी के हाथों मीन चला आ रहा था वह अब हस्तांतरित हुआ है और यह भी आश्वस्त हुआ जा सकता है कि सिंधिया का गट कोई गड़बड़ नही करेगा। सांसदों के इस त्रिकोण का एक कोण यह भी है कि वहां शिवराज सिंह चौहान का  भी इस्तेमाल होगा। शिवराज सिंह ने मध्य प्रदेश के बारे में किसी आकांक्षा को अभिव्यक्त  करते भी नज़र नही आते। ऐसा देखा जाता है कि अगर कोई जानकारी ले हो तो ही वे सांसदों से भी बातें करते नज़र आते हैं। इसासे लगता है कि पार्टी अब नौजवानों के हाथ में जाएगी, लेकिन राजस्थान का अनुभव कुछ और ही बताता है। राजस्थान में अभी भी अशोक गहलोत को  सचिन पायलट झेल रहे हैं। जबकि रोज कुछ न कुछ दोनों में होता ही रहता है। कांग्रेस में अजीब सी जड़ता दिख रही है।पार्टी के सारे फैसले लटके दिख रहे हैं लिहाजा लगता है कि पार्टी भी लटकी दिख रही है। अभी तक तो एक ही बदलाव दिख रहा कि पार्टी के सोशल मीडिया प्रभारी देपिंडर सिंह हटाकर पूर्व एक्टर रमैया को बनाया गया है। पार्टी के कार्यकर्ता व्याकुल हैं कि अभी तक कोई बदलाव नही हुआ। चुनाव सिर पर है और शाह हैमल के लिए तैयार दिख रहे हैं। कर्नाटक में चुनाव होने वाले हैं और लगता है सदन में पार्टी के नेता मालिकार्जुन खड़गे को भेजा जाएगा। पार्टी का मानना है कि वहां मुख्य मंत्री के लिए कोई नही है और इसके संकेत भर  से सिद्दरामैया मायूस हो जा सकते  हैं। पार्टी के नेताओं में भारी अनिश्चय है वे तो कहते सुने जा रहे हैं कि कांग्रेस की कांग्रेस को खा   रही है। उचित तो यह होता कि सिद्दरमैया को अपने पद पर रहने देते और कमलनाथ से सही आचरण किया जाता क्योकि उन्हें शिवराज सिंह की पराजय रोकने के लिए उपयोग में लाया जा रहा है। मजे की बात है कि राहुल गांधी से अपमानित होने के बाद  हिमंत बिस्वा सरमा भा ज पा में चले गए और यहीं से असम में कांग्रेस का दुःस्वप्न आरम्भ हुआ। अब हालात यह है कि कई और नेता भा ज पा में जाने की तैयारी में हैं।वही हालात महाराष्ट्र में है जहां गांधी परिवार के करीबी लोग भा ज पा में जाने की तैयारी में हैं। जो लोग पार्टी छोड़ने वाले हैं वे कभी गांधी परिवार के अच्छे दरबारियों में से थे।गुजरात में पार्टी जूझने की तैयारी में है लेकिन कुछ होगा ऐसा दिखता नही है। प्रशांत किशोर टाइप अभियान  शुरू किया जाने वाला है और सारी उम्मीदें हार्दिक पटेल पर टिकीं हैं की वे पाटीदारों के वोट ले आएंगे। उधर अमित शाह कांग्रेस से टूट कर आने वेअलों को आश्वस्त करने में लगे हैं और आज उनका नारा कांग्रेस मुक्त भारत से बदल कर विपक्ष मुक्त मुक्त भारत होता जा रहा है।पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि मोदी और शाह विरोधी स्वर नही चाहते और उसे दबाने के लिए सत्ता की सारी ताकत झोंक देते हैं। चिदंबरम के कहना है कि हम भी चुप नही बैठेंगे।

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