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Tuesday, May 23, 2017

मैली ही रही गंगा

मैली ही रही गंगा 
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी गऊ , गाँव और गंगा के विकास तथा और अनुरक्षण  का बारंबार वादा करके गद्दी प-अर आये। मोदी जी के बात कहने का तमाशाई अंदाज़ अपनी बात को यकीन दिलाने के मेस्मेरिक तरीके ने लोगों को0 यकीन दिलाया कि यकीनन कुछ अच्छा होगा। तीन वर्षों में गौ और गायों के लिए क्या  क्या हुआ और सरकार ने कितना कुछ  किया इसपर फिर कभी विचार करेंगे पर वाराणसी में गंगा आरती तथा गंगा पूजन के साथ चुनावी समर में कूद पड़ने वाले नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने गंगा के लिए ही वाराणसी को चुनाव क्षेत्र  चुना। गंगा के लिए वहां कई समारोह हुए। उन समारोहों का भव्य प्रदर्शन भी किया गया , उसे इतना  समारोहित किया गया कि वह  लोगों के दिमाग में एक ' नया इलाका' बन गया। अपनी तीखी संमुखता के कारण वह कुछ ऐसे बिम्ब में ढलता गया जैसे खुद गंगा को हमारे पौराणिक आख्यानों ने ' पाप तारिणी ' बनादिया। जिस गंगा को पाप हारिणी के रूप में बिम्बित करने में हमारे सम्पूर्ण  सनातन समुदाय को भगीरथ से लेकर आज तक हज़ारों वर्ष लगे उस कथ्य पर मोदी जी के ' मीडिया ब्लिट्जकीग ' ने कुछ ही दिनों में पर्दा डाल दिया । उन्होंने गंगा को मिली और खुद को उस गंदगी को साफ करने वाले नए भगीरथ रूप में पेश कर दिया, लोगों को यकीन दिला दिया। कैसी विडम्बना है कि गंगा पहले भी मिली थी और आज भी मिली है, लेकिन मेल मोचन के आश्वासन को इस तरह समारोहित किया जाना अद्वित्य कृत्य है। अपराध शास्त्र की भाषा में इस कृत्य को क्या कहते हैं यह बताने ' भगतों ' की भावनाओं को आघात लगेगा। लेकिन यह जान लेना जरूरी है कि वाराणसी तो दूर अपने उत्स गंगोत्री से केवल 294 किलोमीटर दूर  हरिद्वार में गंगा स्नान के लायक नही रह गई है। नेशनल पॉल्यूशन बोर्ड की ताजा रपट के मुताबिक जल की गुणवत्ता के चार मानक हैं और उन चारों में हरिद्वार किया गंगा जल भी स्नान के लायक नही है। गंगोत्री से सागर तक गंगा का यात्रा पथ 2525 किलोमीटर है। शास्त्रों के मुताबिक इस जल का बूंद मनुष्य के पापों का नाश कर देता है। 
मोदी जी ने 2013 में अपने विजय शंखनाद संबोधन में कहा था कि " दूसरों के लिए  गंगा एक नदी हो सकती है पर हमारी तो माँ है। गंगा पानी की धारा नहीं संस्कृति की धारा है। यू पी ए सरकार ने इसे साफ करने के लिए कई योजनाएं चलाईं लेकिन क्या हुआ , देश की जनता इसका जवाब चाहती है।"  इसके बाद मोदी जी कहा था कि " जो लोग गंगा का ख्याल नही रख सकते वे देश क्या चलायेंगे।" मोदी जी गंगा की सफाई के लिए नया मंत्रालय बनाया जिसका जिम्मा उमा भारती को सौंपा गया। यही नहीं 20,000 करोड़ रुपयों का नमामि गंगे कार्यक्रम बना।लेकिन सरकार के तीन साल पूरे हो गए और जान कर हैरत होती है कि पहले दो साल के लिए आवंटित 3,700 करोड़ रुपये भी  अबतक खर्च नही हो सके हैं। 30 वर्ष पहले 1986 में वाराणसी में गंगा सफाई परियोजना में 462 करोड़ रुपये दिए गए थे। 2014 की फरवारी तक गंगा एक्शन प्लान पर 939 करोड़ रुपये खर्च हुए। पर जो हालत है उससे तो लगता है कि पहले के सारे रुपये नाली में बह गए। गंगा हमारे देश में एक आस्था है लोग इसकी कसमें खाते हैं और तो और इस वर्ष इसे " जीवित " घोषित कर दिया गया है पर हुआ क्या? गंगा झूठे वायदों का एक प्रदूषित परनाला बनकर रह गयी है। अरबों  रुपयों और करोड़ों की आस्थाओं का सरकारी स्तर पर ऐसा मखौल! एक नदी जो शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है आज अपने ही भक्तों द्वारा मैली कर दी गई है। एक नदी जो राष्ट्रीय एकता का बिम्ब है आज राजनीतिक लाभ का साधन बन गयी है। अब गंगा की सफाई के लिये मोदी सरकार के पास बस 2 साल बाख गए हैं।इसके बाद जिन्होंने भाजपा को वोट दिया है वे वही सवाल पूछेंगे जो 2013 में मोदी जी पूछ रहे थे।

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