" फेक न्यूज " और भारतीय समाज
हरिराम पाण्डेय
खबरें मीडिया शास्त्र के अनुसार ऐसी सूचनाएं हैं जो रिसीवर को समाज तथा हालात के बारे विचार बनाने का आधार बनती हैं।मनोविज्ञान कहता है कि विचार किसी व्यक्ति के ज्ञान, लालन - पालन, परिवेश और शिक्षा- प्रशिक्षा की पृष्ठभूमि के आधार पर निर्मित होता है। पिछले कुछ महीनों में देश की चंद खबरों पर गौर करें। डॉन दाऊद इब्राहिम के सख्त बीमार होने और मरणासन्न होने की खबर, योग गुरु रामदेव के दुर्घटना के शिकार होकर मौत की कगार पर पहुंचने की खबर , कुलभूषण जाधव का मामला , कश्मीर में एक आदमी को मानव कवच के रूप में फौजी जीप के सामने बांध कर घुमाया जाना , अरुंधति राय का कश्मीर के बारे में बयान और अभिनेता परेश रावल की टिप्पणी, पत्रकारों पर पुलिस और नेताओं के जुल्म इत्यादि इत्यादि। गौर करें इन सबमें एक बात समान है वह है खबरों की जमीन यानी जहां से खबरें संबंधित हैं और उसके बाद रिसीवर के मेधा के आधार पर खबरों की कपटपूर्ण प्रस्तुति। एक ऐसी विश्वसनीय कथा गढ़ी जाती है जो रिसीवर की साइकी को सच प्रतीत हो। व्यक्ति, व्यक्ति समुच्चय और समाज के मानसिक गठन की जानकारी आधार कार्ड और अन्यान्य स्रोतों से हासिल आंकड़ों के विश्लेषण से किये जाने के बाद खबरें गढ़ी जाती हैं और उन खबरों को सोशल मीडिया के प्लेटफार्म से और दृश्य मीडिया के जरिये इतना फैलाया जाता है कि वह सूचना टूथ पेस्ट या नमक की भांति उपभोग की वस्तु बन जाती है। जिसकी ज़रूरत हर व्यक्ति को चुटकी भर की ही होती है पर उसकी गैरहाज़िरी बेचैन कर देती है।
मशहूर लोगों के बारे में नकारात्मक खबरें ज्यादा सुनी जाती हैं। इस डिजिटल ज़माने में एक कहावत है कि " एक मिथ्या किंतु मसालेदार खबर तबतक आधी दुनिया घूम चुकी होती है जब तक एक सत्य समाचार अपने प्लेटफार्म से निकलने की तैयारी करता है। कई बार तो यह भी देखा गया है कि ये अफवाहें नेट वर्क के प्रभाव के कारण मुख्यधारा की मीडिया में भी जगह पा जाती हैं। एक मिसाल लें वाट्सएप की। अत्यंत तेज़रफ़्तार और आसान उपयोग की इस मीडिया का भारत में लगभग 20 करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं। सबसे ज्यादा अफवाहें यहीं से फैलती हैं। इसमें ऐसे बहुत लोग हैं जो आपस में बातें बहुत करते हैं पर रिसीव और फारवर्ड बहुत तेजी से करते हैं।
अरुंधति का मामला
अफवाहों के खबर बनाने और खबरों का चर्चा में आने का सबसे ताज़ा मामला विख्यात लेखिका अरुंधति राय और फ़िल्म अभिनेता तथा भाजपा सांसद परेश रावल का है। अरुंधति राय ने एक पाकिस्तानी अखबार को कहा बातते हैं कि " 70 लाख भारतीय सैनिक आज़ादी गैंग को पराजित नहीं कर सकते।" यह खबर सबसे पहले एक " भगत" न्यूज साइट " पोस्टकार्ड. न्यूज" पर 17 मई को इसी शीर्षक के साथ आई। इसे किसी ऐश्वर्या एस ने लिखा था। हालांकि इसमें किसी स्रोत का हवाला नहीं था। इसके बाद यह कई समाचार साइट्स पर आया जिसमें टाइम्स ऑफ इस्लामाबाद का हवाला था। कट्टर पाकिस्तान समर्थक इस अखबार ने श्रीनगर डेट लाइन से खबर दी थी और कहा था कि अरुंधति ने अपनी हाल की श्रीनगर यात्रा के दौरान यह बात कही। इसके बाद रेडियो पाकिस्तान ने खबर उड़ाई कि " अरुंधति ने अधिकृत कश्मीर पर भारतीय हैमल को शर्मनाक बताया।" जिओ टी वी ने भी एक कश्मीरी पत्रकार के हवाले से यही खबर दी। इसके बाद एक गुस्साए पत्रकार ने अमरीकी साइट फेयर आब्जर्वर में एक लेख लिख मारा। इसके बाद सी इन इन आई बी एन की बहस का आधार बना और तब परेश रावल इस पर पिल पड़े। पूरा देश एक निर्दोष लेखिका को गालियां देने लगा। जबकि बेहद आतंकित और दुखी अरुंधति ने " सन्मार्ग " को बताया कि " वह एक साल से श्रीनगर गई ही नहीं और ना एक साल में कुछ लिखा ही है।" बस उसका दोष है कि वह सरकार की कश्मीर नीति की विरोधी हैं।
यह पूरा मामला झूठे समाचारों को गढ़ने का अनुपम उदाहरण है। सबने इसे तरह तरह के राजनीतिक इरादे के इस्तेमाल किया। पाकिस्तानी मीडिया ने इसे भारत सरकार की कश्मीर नीति के खिलाफ इस्तेमाल किया जबकि भारतीय मीडिया का मोदी जी का कीर्तन गाने वाले भाग ने मोदी विरोधियों के खिलाफ राष्ट्रीय भावना को भड़काने के लिए उपयोग किया। यह देश जानना चाहता है कि क्या पढ़े और किसपर भरोसा करे
अबतक वीडियो और ऑडियो रिकार्ड खबरों के लिए सबसे पुख्ता सबूत हुआ करते थे , किंतु अब तो एडिटेड वीडियो आम हो गया है। कन्हया कुमार का वीडियो अभी सबके दिमाग मे ताज़ा होगा। एक टी वी एंकर ने तो अपनी गरजती आवाज़ में कनहैया कुमार , उमर खालिद और उसके दोस्तों को अपराधी घोषित कर दिया। उसके वीडियो सबूत एकदम पत्थर की लकीर की तरह थे। इन पत्रकारों ने गढ़े समाचारों के आधार पर न केवल उन नौ जवानों को दोषी बनाया बल्कि झहोओथे समाचारों को सच बना कसर पेश किया। बात यहीं तक होती तो गनीमत होती अब तो नकली ऑडियो रिकार्ड भी तैयार हो सकता है। हाल में एम आई टी टेक्नोलॉजी रिव्यू में एक आलेख प्रकाशित हुआ था जिसमें चेहरे और आवाज़ भी बदले जाने की टेक्निक बैठाई गई थी और यह यंत्र बाजार में आने ही वाला है।
खबरों या तथ्यों को इसी तरह उत्पादित किया जाता रहा तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि 2019 का दृश्य क्या होगा। सत्तारूढ़ दल अपनी ताकत तथा संसाधनों के बल पर वोट बटोरने के लोभ का संवरण नहीं कर सकता। जिस तरह परमाणु युद्ध में कोई विजयी नहीं होता उसी तरह इस वही हालत फेक न्यूज़ के इस खतरनाक जंग में भी है।क्या होगा यह समझना मुश्किल है।इसके माध्यम से व्यापक जान आक्रोश पैदा किया जा सकता है, दंगे करवाये जा सकते हैं।
यह वक़्त है जब सत्ता, समाज और विद्वत समुदाय जागे तथा विचार करे कि इस नए आतांकि का कैसे मुकाबला किया जाय।वरना खबरें गढ़ने और उत्पादित करने का यह हथियार विभिन्न धर्म समुदाय के कट्टरपंथियों के हाथ लग जाय तो एक विशाल दैत्य बनकर मनुष्यता का विनाश कर सकता है। अभी कश्मीर का फेक वीडियो हाल ही में सबने देखा है। इसमें सेना के प्रति वहां की जनता में आक्रोश पैदा करने की कोशिश की गई थी।
अरुंधति और परेश रावल का मसला अभी भी क्षतिकारक होता जा रहा है। यह अब सोशल मीडिया में घूम रहा है। सरकार को चाहिए कि वह आम जनता को इस सूचना युद्ध से आगाह करे। साथ ही इसके दोषियों को कठोर सजा का भी प्रावधान रहे। तकनीक के विकास के साथ साथ फेक न्यूज का आतांकि भी बढ़ता जा रहा है। साथ ही फेक न्यूज का प्रसार पूरी तरह से सत्य का संधान करने की मीडिया की शक्ति और हुनर की कमी का भी प्रमाण है।
एक ऐसे देश में जहां की अधिकांश आबादी अशिक्षित या अर्धशिक्षित है साथ ही शिक्षित और धनी समुदाय के अपने पूर्वग्रह हैं वैसे समाज में फेक समाचारों का प्रसार कोई बहुत कठिन नहीं है। इसका सबूत हाल का कश्मीर आंदोलन को रोकने के तरीकों पर समाज में विभाजन है। ऐसे समय में मीडिया का दायित्व और बढ़ जाता है। उसे सत्य के संधान में अपने हुनर और अपनी योग्यता को प्रमाणित करना होगा वरना समाज को खतरे से बचाना मुमकिन नही है।
Wednesday, May 24, 2017
"फेक न्यूज" और भारतीय समाज
Posted by pandeyhariram at 9:16 PM
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