CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Wednesday, May 24, 2017

वादा जो पूरा न हो सका

वादा जो पूरा न हो सका 
इसके पहले इसी स्तंभ में कहा गया था कि मोदी जी ने गौ, गंगा और गांव के विकास के बड़े बड़े वादे कर सत्ता में आये और तीन वर्ष हो गए गंगा कुछ और मैली हो गई  तथा गांव में भुखमरी , बेरोजगारी और कठिनाईयां कायम रहीं। कृषि में विकास के बगैर " सबका हाथ और सबका विकास " खोखला नारा के सिवा कुछ नहीं रह जाता है। इस क्षेत्र में मोदी सरकसर के काम काज के मूल्यांकन के दो तरीके हैं - कृषि में इनके महत्वपूर्ण कार्यक्रम का मूल्यांकन करें और उस कार्यक्रम का प्रभाव देखें। दूसरा कि भाजपा के चुनाव घोषणा  पत्र को देखें और गौर करें कि उनमें से कितने पूरे हुए। सरकार के सबसे बड़े कार्यक्रम प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और फसल बीमा योजना की यदि समीक्षा करें तो कोई परिणाम नही देखने को मिलेगा। सरकार और उसके भगतों  का कहना है कि   2019 आने दें तो परिणाम देखने के मिलेंगे।
फिर भी नही बदलेगी नीयत
खून रोती आंखों वाली मां
बेवा बच्चे और खेत 
सब के सब तड़प कर जान दे देंगे
कैसे बचेगा कोई किसान
जब नियति का फैसला 
बाजार के सेठ को गिरवी दे दिया गया हो
और चाय बेचने वाले कि सरकार 
ज़हर और फंदे बेचने लगे
अब जरा उनके वायदों को देखें। कहां तो तय था कि सरकार कृषि विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी, किसानों की समदानी बढ़ाएगी और गायों का विकास करेगी। भाजपा कृषि में निवेश को बढ़ाएगी, अधिक उत्पादन वाले बीज उपलब्ध कराएगी , उत्पादन खर्च पर कम से कम 50 प्रतिशत लाभ दिलाएगी और मनरेगा को कृषि से जोड़ देगी। इसके अलावा भी कई वायदे थे मोबाइल मिट्टी परीक्षण केंद्र और राष्ट्रीय कृषि बाजार की स्थापना इत्यादि।तीन वर्षों की अवधि में इन वायदों को पूरा करने की दिशा में कुछ कदम उठाए वगये पर मंज़िलें नहीं मिलीं। ये राह में ही कहीं अटके पड़े हैं। अब किसानों को उत्पादन लागत के 50 प्रतिशत  लाभ की बात अब कोई कहता ही नहीं उल्टे पांच वर्षों में किसानों को दुगुनी आय के नए सपने का मुज़सीमा खड़ा कर दिया गया। 
ज़मीन जल चुकी है आसमान बाकी है
सूखे कुएं तुम्हारा इम्तेहान बाक़ी है
बरस जाना इसबार वक्त पर है मेघा
किसी का मकान गिरवी है किसी का लगान बाकी है
खाद्य प्रबंधन क्षेत्र अनदेखा पड़ा हुआ है। 500 करोड़ रुपयों से मूल्य स्थायित्व कोष की स्थापना की गई जो अब बढ़ कर 3500 करोड़  हो गया , दालों का बफर स्टॉक बनना था वह भी नहीं हुआ। हर दो वर्षों में मिट्टी की हालत  से जुड़े 14 करोड़ कार्ड हर दो वर्ष पर जारी करने की बात थी ताकि किसान मिट्टी की गुणवत्ता के अनुसार खाद का उपयोग हो। पर कुछ नहीं हुआ यह तक कि लक्ष्य के अनुरूप कार्ड भी नहीं बंट पाए, अबतक केवल 6 करोड़ कार्ड ही बंट पाए।कि राज्यों में तो कुछ भी नहीं हो पाया है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में मिट्टी परीक्षण का काम बहुत कम हो सका। कहा जा रहा है कि उर्वरक को बांटने के एक व्यापक कार्यक्रम का आरंभ इसी साल जुलाई से होने वाला है। वह कार्यक्रम कितना पूरा होगा यह तो समय ही बताएगा। उर्वरक कारखानों को सब्सिडी तभी दी जाएगी जब विक्रेता उसे बेच लेगा। इससे नहीं लगता कि यह योजना चल पाएगी। 
जहां तक किसान की आय दोगुनी करने की बात है तो जब तक राज्यों की सरकारें   कृषि अपने हाथों में नही लेती है तब तक कुछी नही होने वाला। कुल मिल मिला कर कृषि 1.7 प्रतिशत के वार्षिक विकास दर पर खड़ा है और सरकार वादों का हल जोत रही है, किसान अच्छे दिन के सपने देख रहे हैं।
जीवन निस्सार संगीत है , भविष्य भी भयभीत है
रो रहा वर्तमान है , सामने अंधकार है
कष्ट में वह पूछता है , कर्मफल कब पाऊंगा
या यूं ही संघर्ष करता परलोक सिधार जाऊंगा

0 comments: