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Friday, May 5, 2017

बिनु भय होय न प्रीति

बिनु भय होत न प्रीति 

भारतीय सैनिकों की हत्या और उनके शवों को बिगाड़े जाने से  सेना में भारी गुस्सा है और बदले की भावना बलवती होती जा रही है है साथ ही सरकार भी ईंट का जवाब पत्थर से देने का अपना संकल्प दोहरा चुकी है। देश को उम्मीद है कि जवाब कुछ ऐसा दिया जाएगा जिससे देश हित हो शान तथा अहं की भी रक्षा हो। यहां सवाल उठता है कि क्या यह हमला पाकिस्तान में फौज और हुकूमत के सांघातिक संघर्ष का परिणाम था ? लेकिन यह जटिल प्रश्न नही है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि इसासे जम्मू कश्मीर में चल रहे छद्म युद्ध को बल मिलेगा।देखिए यह कैसी साजिश थी हमारे देश का मनोबल गिराने की कि इस घटना के थोड़ी देर बाद ही कश्मीर में और उसके बाद देश के हर कोने में एक वीडियो वायरल हो गया जिसमें दिखाया जा रहा था कि सी आर पी एफ के हमारे जवानोपन को कैसे श्रीनगर में अपमानित किया जा रहा था। उस वीडियो में लोकल लोगों की बॉडी लैंग्वेज और सेना की हेठी का प्रदर्शन गंभीर चिंता का विषय है, अत्यंत अशुभ संकेत है। इस घटना के बाद राष्ट्रीय स्तर पर कार्रवाई बिल्कुल औपचारिक हुई । बस, सरकार ने " निर्वीर्य" गुस्सा जाहिर किया और उसके बाद टी वी वाले पिल पड़े इसे टी वार पी के तौर पर भुनाने में। कट्टरपंथियों के समर्थक और उनसे वार्ता के समर्थक लोगों में अनगिनत मुबानीसे हुए पर परिणाम कुछ नहीं , समाधान कुछ नहीं निकला। घाटी में इन हालात के कारण क्या हैं ? इसे सुदाहरने के लिए क्या किया जाय? इन सवालों का जवाब खोजे जाने को प्राथमिकता होनी चाहिए? दोनों घटनाएं घाटी में स्थिति की जटिलता को रेखांकित करती हैं। दोनों घटनाओं का आपस में गहरा संबंध भी है। हालांकि ये दोनों घटनाएं सामरिक हैं पर इनका समरनीतिक प्रभाव भी दिखाई पड़ रहा है इसलिए जरूरी है कि इसे मिटाने के लिए कई मोर्चों पर काम किया जाय और एक साथ काम शुरू हो। वे मौके हैं राजनीतिक , कूटनीतिक सामाजिक और सैनिक।पाकिस्तान की इस मारा मारी  की मंशा को खत्म करने के लिए बाह्य सुरक्षा की दृष्टि से यह ज़रूरी है कि अत्यंत सुविचारित रणनीति को लागू किया जाय। हालात के बिगड़ने के कई कारण हैं लेकिन दो ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। पहला की वह सुरक्षा बलों के अधिकार को सीमित कर दिया गया और दूसरा कि राजनीतिक पार्टियों को दादागीरी करने की छूट मिल गयी। आतंकवाद के मुकाबले का सीधा तरीका है " मखमल चढ़ा हुआ लोहे का डंडा।" यह एक ऐसा इलाज है जिससे ये कट्टरपंथी तत्व सरकार के आगे घुटने टेक कर बातें करने को तैयार हो जाते हैं।  तुलसी दास ने कहा है न 
"  विनय न माने जलधि जड़ , गयेयु तीन दिन बीत  
आनहु वाण शरासन लखन  बिनु भय होत ना प्रीति।" 
आंतरिक कट्टरवाद को दबाने का यह सर्वोत्तम तरीका है। जहां सुरक्षा बलों का डर काम हुआ वहां बात करने की गुंजाइश भी कम हो जाती है। आज घाटी में यही हो रहा है। आज जो दिख रहा वह है कि सुरक्षा बलों की हेठी  कर जनता को तुष्ट किया जा रहा है। इसका परिणाम यह हुआ है कि जब भी स्थानीय नौजवान मुकाबले में आते तो सुरक्षा बल के जवान कदम पीछे खींच लेते हैं। पथराव को रोकने के लिए पैलेट गन्स का उपयोग हुआ तो सवाल उठाए जाने लगे और जब किसी शव यात्रा में शामिल लोगों के सामने ज़हर बुझे भाषण दिए जाते हैं तो किसी के चेहरे पर शिकन तक नही आती।राजनीतिक नेताओं द्वारा सुरक्षा बलों के लिए खुले आम भला बुरा कहने से बालों का मनोबल गिर गया, उन्हें अपने काम से नफरत होने लगी। इसलिए जरूरी है कि सुरक्षा बलों के मनोबल को अपेक्षित स्तर तक लाया जाय। अब इसके लिए सामूहिक प्रयास करना होगा। सैनिको और केंद्रीय बालों की श्रेष्ठता को क़याम करना होगा। गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय को एक साथ मिल कर रणनीति का निर्माण करना होगा। नेताओं के राजनीति प्रेरित बायानो से श्रीनगर में राष्ट्र विरोधी तत्वों का बोलबाला बढ़ रहा है और इससे पाकिस्तानी तत्वों को बढ़ावा मिल रहा है। आज़ादी का शोर और सुरक्षा बलों की हेठी जहां राष्ट्र विरोधी तत्वों को बढ़ावा देती है वहीं उनके समर्थकों की तादाद में भी इजाफा करती है। विजुअल मीडिया को भी चुनिंदा वीडियो दिखाने से बचना चाहिए। राष्ट्र विरोधी तत्वों को प्रचार नहीं मिलेगा तो उनकी बहुत बड़ी ताकत खत्म हो जाएगी। यही नही इस मामले में राजनीतिक दलों में भी सहमस्ति होनी चाहिए और सबको एक सुर में बोलना होगा। साथ ही स्थानीय नेताओं को भी गायों में जाकर बुजुर्गों तथा शिक्षकों से बातें करनी होंगी। ताकि किशोर लड़के लड़कियों में गलत प्रचार का प्रभाव ना पड़े। सोशल इंजीनिरिंग की इस प्रक्रिया के साथ खुफिया एजेंसियों को भी राष्ट्र विरोधी तत्वों के समूह में प्रवेश कर उनका सफाया करना होगा। अगर समय रहते समुचित  राणनीति नही बनाई गई तो भविष्य में और खतरनाक नतीजे हो सकते हैं।

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