राहुल गांधी वादा निभाएंगे कैसे ?
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में अपने भाषण के दौरान कह दिया कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आई तो वह न्यूनतम आय योजना आरंभ करेगी। उन्होंने कहा कि देश के हर गरीब को सरकार न्यूनतम आमदनी की गारंटी देगी। इसका मतलब है कि सभी गरीबों के बैंक के अकाउंट में न्यूनतम आमदनी आ जाएगी। लेकिन ,प्रश्न है कि सरकार इतने पैसे लाएगी कहां से?
कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि सरकार यदि सब्सिडी बंद कर दे तो यह आराम से हो सकता है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि हर नागरिक को एक मासिक रकम दे दी जाएगी जिससे उसकी न्यूनतम जरूरतें पूरी हो सके और वह भूखा नहीं मरेगा । विपक्ष चाहे जो कहे लेकिन की घोषणा नई नहीं है ।2016- 17 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसका जिक्र है ।सर्वेक्षण में इसे यूनिवर्सल बेसिक इनकम कहा गया है। कुछ साल पहले महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना(मनरेगा ) शुरू की गई। इसका उद्देश्य यही था कि गरीब किसानों को एक तय आमदनी साल में सरकार गारंटी के रूप में दे दे। तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 22% गरीब हैं। यानी, लगभग 30 करोड़ लोग गरीब कहे जाएंगे । अगर इन्हें तीन हजार रुपये प्रतिमाह दिए जाएं तो करीब एक सौ लाख करोड़ खर्च आएगा।
ज्यादातर अर्थशास्त्री मानते हैं की यह उसी तरह का वादा है जैसा मोदी जी ने पंद्रह- पंद्रह लाख रुपयों का किया था । कांग्रेस के नेता पी चिदंबरम ने एक टेलिविजन इंटरव्यू में राहुल गंदी के वादे पर जो कहा वह बहुत सटीक नहीं था। सोशल मीडिया में इस लेकर काफी बहस चल रही है । जाएगा कि राहुल जो कहते हैं वह करते हैं।
चलिए मान लेते हैं कि राहुल गांधी निम्नतम आय की गारंटी देने के मामले में गंभीर हैं। इसमें एक सवाल उठता है कि यह किसे मिलेगा? गरीब की खोज कैसे होगी? क्या जो बीपीएल कार्डधारक धारक है उन्हें मिलेगा? विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार 2011 में 27 करोड़ 60 लाख बीपीएल कार्ड धारी थे । बीपीएल कार्ड धारियों को चिन्हित करने की संशोधित प्रक्रिया के बाद 2015 में या संख्या घटकर 17 करोड़ 20 लाख हो गई। अगर पी चिदंबरम की ही बात मान लें कि देश में 20% गरीब हैं इसका मतलब हुआ कि लगभग 25 करोड़ लोग गरीब हैं। तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक एक आदमी को गरीबी से बाहर निकलने के लिए ₹7620 प्रतिमाह जरूरी है और यह राशि कई साल पहले तय की गई थी। महंगाई बढ़ने से यह राशि लगभग 10 हजार प्रतिमाह हो गई है । 25 करोड़ लोगों के लिए 10हजार रुपये प्रति माह देने का मतलब है कि इसपर करीब है 2.5 लाख करोड़ रुपए खर्च आएंगे। 2018 -19 का हमारा सकल घरेलू उत्पाद (वर्तमान मूल्य पर ) 188 लाख करोड़ रुपए हैं। न्यूनतम आय गारंटी की उपरोक्त राशि हमारे सकल घरेलू उत्पाद से 1.3% ज्यादा हो जाएगी। दूसरी बात है कि इसकी अवधि। ढाई लाख करोड़ 1 वर्ष में साध्य नहीं है। अगर इसे 5 वर्ष की अवधि में किस्तों में बांट दिया जाए तो संभव हो सकता है। जैसे एक वर्ष में 5 करोड़ लोगों को इसका भुगतान हो तब कहीं जाकर 5 वर्ष में कुछ हो सकता है। क्योंकि, यदि देश का सकल घरेलू उत्पाद हर वर्ष 10% भी बड़े तो 2024 में भारत का जीडीपी करीब 300 लाख करोड़ हो जाएगा, इससे इस योजना को संभव बनाया जा सकता है और ढाई लाख करोड़ रुपयों को दिया जा सकता है। कुछ अर्थशास्त्री यह मानते हैं इससे बहुत कुछ नहीं बदलेगा। क्योंकि इस अवधि में महंगाई भी बढ़ेगी और इसके अनुपात में न्यूनतम आय नहीं बढ़ाई जा सकती । इसलिए एक अवधि के बाद यह बेकार हो जाएगी । यही नहीं ,शहरी मध्यवर्ग के गरीब लोग इस योजना के दायरे में नहीं आएंगे और इस योजना के बाद खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि उन लोगों को परेशानी में डाल देगी । इसके बाद शहरी क्षेत्रों से आंदोलन शुरू होगा कि इस योजना को वापस ले लिया जाए या उन्हें भी इस योजना का लाभ मिले। कुछ अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मनरेगा बंद कर देने से इस योजना को थोड़ी मदद मिलेगी। मनरेगा यूपीए के जमाने की योजना है और वह इसे तमगे की तरह प्रयोग करता है। लेकिन मनरेगा भी नाकामयाब हो गई । यही हाल खाद्य सुरक्षा का भी हुआ।
राहुल गांधी के प्रस्ताव के साथ जो सबसे बड़ी समस्या है वह यह नहीं कि न्यूनतम आय योजना बिल्कुल पहुंच से बाहर है बल्कि इसके लिए कई सब्सिडीज को बंद करना पड़ेगा। क्या यह संभव है ? उदाहरण के तौर पर राहुल गांधी केंद्रीय कृषि ऋण माफी योजना की मांग कर रहे हैं और जब तक ऐसा नहीं होगा वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चैन से सोने नहीं देंगे। 2008 में केंद्रीय कृषि ऋण माफी योजना के तहत साठ हजार करोड़ दिए जाने की घोषणा की गई थी और अब अगर ऐसा होता है तो यह राशि बढ़कर 1.5 लाख करोड़ हो जाएगी। अगर इसे लागू किया जाता है तो गरीबों के लिए न्यूनतम आय योजना को लागू करना संभव नहीं हो पाएगा।
कुछ अवास्तविक राजनीतिक वायदे भी करने होते हैं। उदाहरण के लिए कुछ समय पहले जब तेल की कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं तो पी चिदम्बरम वादा किया की पेट्रोल की कीमत 25 रुपये प्रति लीटर की दर से कम की जाएगी । आंकड़े बताते हैं कि यदि टैक्स में एक रुपया कम किया जाए तो कुल 13 हजार करोड़ का घाटा लगेगा। अब आप कल्पना कर सकते हैं कि 25 रुपए प्रति लीटर की कटौती के बाद क्या होगा। अगर ऐसा कर दिया जाता है तो कई योजनाएं धरी रह जाएंगी । यहां तक कि अगर कटौती केवल डीजल और पेट्रोल तक ही सीमित रहती है तब भी डेढ़ लाख करोड़ की हानि होगी जो मौद्रिक रूप से गैर जिम्मेदार है ।
यही नहीं , कांग्रेस ने आरंभिक दिनों में गरीबी हटाओ का नारा लगाया था और गरीबों के बल पर कांग्रेस की सरकार इतने दिनों तक कायम रही। अब राहुल गांधी एक नया नारा दे रहे हैं। चुनाव के नजरिए से इसे बहुत महत्वपूर्ण समझा जा रहा है। यह समय बताएगा कि इसका कितना लाभ मिला। दूसरी तरफ, भाजपा अंतरिम बजट पेश करने जा रही है और इस बात की पूरी संभावना है कि राहुल की इस घोषणा को देखते हुए वह भी बजट में कुछ ऐसा करेगी कि इसकी काट हो सके।
नरेंद्र मोदी ने 15 -15 लाख रुपए जमा कराने का वादा किया था और अब उनका मजाक उड़ाया जाता है कल राहुल गांधी का भी यही हश्र हो सकता है।