बढ़ती जा रही है रस्साकशी
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विशाखापत्तनम में एक जनसभा में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम पूछने वाले होते कौन हैं? पहले चुनाव हो जाये उसके बाद बैठकर पीएम चुन लेंगे । उन्होंने स्पष्ट कहा कि इस बार भाजपा सत्ता में नहीं आएगी और बंगाल में तो एक भी सीट नहीं मिलेगी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रश्न पूछा कि आखिर क्या कारण है कि मोदी जी ने अपने 5 साल के कार्यकाल में कभी भी मीडिया को संबोधित नहीं किया? ममता जी ने नरेंद्र मोदी अमित शाह पर भी जमकर हमला बोला। उन्होंने चुनौती दी कि मोदी जी मुझसे राजनीतिक बहस करने आइए खुल्लम खुल्ला डिबेट हो जाये। वह प्रश्न करें और मैं जवाब दूंगी और मैं प्रश्न करूंगी वह जवाब देंगे। जनता के सामने खुल्लम खुल्ला इंटरेक्शन हो जाए। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि मोदी जी के कार्यकाल में जवानों की शहादत सबसे ज्यादा रही है, आतंकवाद बढ़ा है और किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्या की है ,बेरोजगारी बढ़ी है ।
दूसरी तरफ नई दिल्ली में "मैं भी चौकीदार" आयोजन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विपक्ष के प्रधानमंत्रियों की सूची लंबी होती जा रही है। उन्होंने विपक्षी गठबंधन पर तंज करते हुए कहा कि लंबी सूची के बावजूद कोई भी नाम सामने नहीं आ रहा है कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा। उन्होंने कहा कि ,जब 2014 में उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया था तब भी कभी कई लोग प्रधानमंत्री बनना चाहते थे, लेकिन इस बार 2019 में कतार बहुत लंबी हो गई है। इस कतार में राहुल गांधी, ममता बनर्जी, मुलायम सिंह यादव और मायावती सहित कई लोग खड़े हैं लेकिन विपक्ष यह नहीं तय कर पा रहा है बनेगा कौन प्रधानमंत्री। नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के जुमले "चौकीदार चोर है" का जवाब देते हुए कहा कि कुछ संकीर्ण दिमाग के लोग चौकीदार को एक चौकीदार की तरह ही देखते हैं, लेकिन मैं एक चौकीदार की तरह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करूंगा। चौकीदार एक भावना है। चौकीदार महात्मा गांधी की दृष्टि का अनुकरण है। वे राष्ट्र के मुखिया को एक तरह से राष्ट्र का ट्रस्टी कहते थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के अलावा भी बहुत से लोग और नेता मैदान में हैं जो अपने-अपने पक्ष में प्रचार कर रहे हैं और दूसरों पर कीचड़ उछाल रहे हैं। बड़ी अजीब विडंबना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव के दौरान अभद्र और कुरुचिपूर्ण आरोपों का लेन-देन चल रहा है। वैसे हर चुनाव में ऐसा होता रहा है पर इस बार जो हो रहा है वह बड़ा अजीब है। झूठ का बोलबाला है और झूठ भी इतने आत्मविश्वास से बोला जा रहा है कि लगता है यह सच है। परस्पर आदर की भावना घटती जा रही है। भाषा ,वैचारिक भद्रता और परस्परता की बलि दी जा रही है और सबसे बड़ी विडंबना है कि जनता को सूचित और शिक्षित करने की जिम्मेदार मीडिया भी इस दौर में मुदित मन से शामिल दिखाई पड़ रही है। चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर भी लोग उंगली उठाने लगे हैं। भारत में ऐसा लगता है सही चुने का अर्थ विरोध होगा । सत्य के पक्ष में झूठों का विरोध। बेईमान सपनों का विरोध और नौजवानों को लगातार झांसे देने का विरोध । ऐसे तमाशे का विरोध जिसके तहत जनता को मूर्ख माना जाता है और जनता को निष्क्रिय भीड़ में बदलने की कोशिश की जाती है। एक ऐसी राजनीतिक शक्ति का विरोध होगा जो भेद पैदा कर रही है और इस क्रिया - प्रतिक्रिया में लगभग सभी पार्टियां शामिल हैं। विपक्ष भी भय और विभाजन को हवा दे रहा है। सत्ता पक्ष भी भयभीत कर देने वाले उन्हीं पुराने जुमलों को लगातार दोहरा रहा है। एक अजीब किस्म की रस्साकशी बढ़ती जा रही है और रस्साकशी में कोई कमजोर नहीं है। आवाज, तस्वीरें तरह-तरह के विचार इत्यादि का ऐसा घाल - मेल चल रहा है कि जनता एक तरह से उपभोक्ता बनकर कर उन्हें लेने या ना ले ले तक सीमित हो गई है। वह विचार नहीं बना पा रही है सचमुच करना क्या है और क्या किया जाए । यह चुनाव एक नए युग का सूत्रपात करने जा रहा है जिस के बाद अफवाहों और विचारों के बल पर समाज के मानस को प्रभावित करने का एक नया तंत्र विकसित होगा। वर्चस्व हासिल करने की यह रस्साकशी लगातार बढ़ती जा रही है।
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