सोच समझ कर क्यों नहीं बोलते
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में चौकीदार चोर है बयान पर खेद जताया है।राहुल गांधी ने 10 अप्रैल को कहा था कि "अब तो सुप्रीम कोर्ट भी मानती है चौकीदार चोर है। " इस पर भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी ने बवाल खड़ा कर दिया था और मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया। सोमवार को राहुल ने अपने हलफनामे में खेद जताया। उन्होंने कहा वे प्रचार के जोश में कह गए थे। ऐसा कोई फैसला पढ़ा नहीं था। अब भविष्य में बिना फैसला पढ़ें कुछ नहीं कहा जाएगा। मीनाक्षी लेखी ने 15 अप्रैल को याचिका दायर की थी और सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल तक स्पष्टीकरण देने को कहा था। उन्होंने कहा कि प्रमाण के इस माहौल में सर्वोच्च न्यायालय राफेल मामले को फिर से सुनवाई के लिए रखना चाहता था जबकि सरकार का प्रयास था कि इसके बारे में नए तथ्यों को रोक दिया जाए। अपने 19 पृष्ठों के स्पष्टीकरण में राहुल गांधी ने कहा "चौकीदार चोर है" कांग्रेस पार्टी का एक राजनीतिक नारा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यह नारा तीखी बहस का केंद्र भी है। राहुल गांधी ने अपने कहे पर खेद जताया। राहुल गांधी ने कहा कि समय जो यह हवा चल रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले में अपने 14 दिसंबर के फैसले में मोदी जी को क्लीन चिट दे दी है और इसी हवा में बिल्कुल शुद्ध राजनीतिक संदर्भ में यह टिप्पणी की गई। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यशाली तुलनात्मकता को विपक्षियों ने एक साथ मिला दिया। वे इससे राजनीतिक लाभ उठाना चाहते थे और उन्होंने अफवाह फैला दी कि मैंने (राहुल गांधी) जानबूझकर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी मान लिया कि चौकीदार चोर है । इसके बाद से तो मेरी तरफ से कभी कुछ नहीं कहा गया । इससे यह स्पष्ट हो जाता है की अदालत राजनीतिक नारों पर संज्ञान लेती है आज तक किसी अदालत ने ऐसा नहीं किया था। उनकी टिप्पणी मीडिया पार्टी के कार्यकर्ता और वहां के वातावरण पर आधारित थी। उन्होंने कहा की 10 अप्रैल के फैसले को पढ़ा नहीं गया था। यह टिप्पणी उन लोगों के लिए थी जो राफेल मामले की जांच के लिए प्रचार कर रहे थे। राफेल मामला कई महीनों से देश में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक मामला बना हुआ है। राहुल गांधी ने अपने हलफनामे में कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने की प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई मंशा नहीं थी।
राहुल गांधी ने अपने जवाब में ऐसे उदाहरण भी दिए है कि जब राफेल मामले पर 14 दिसंबर के फैसले के संदर्भ में सत्तारूढ़ दल के नेता यहां तक कि प्रधान मंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने कथित रूप से सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा जानबूझकर अदालत की खिलाफ टिप्पणी किए जाने का सवाल ही नहीं पैदा होता है । उन्होंने कहा कि उन्हें दृढ़ विश्वास है कि प्रधानमंत्री मोदी राफेल मामले से जुड़े हुए हैं। उन्होंने कहा कि वे इस अवसर पर यह दोहराना चाहते हैं कि उनकी पार्टी का दृढ़ विश्वास है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मामले में अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है और इसकी जांच जरूरी है । किसी भी मौके पर एक सार्वजनिक हस्ती की दूसरी छवि पेश किया जाना किसी भी मानहानि याचिका का आधार नहीं बन सकता।
राहुल गांधी ने अपने हलफनामे में एक तरह से अपने कहे के प्रति क्षमा मांग ली। हो सकता है कि इसकी वैधानिक प्रक्रिया समाप्त हो जाए। लेकिन, हमारे नेताओं के इस तरह के कथनों का सामाजिक प्रभाव क्या पड़ेगा और इसे किस अदालत में चुनौती दी जाएगी? यह बहुत बड़ा प्रश्न है। हमारे नेता चाहे जो हों, उनका कद कितना भी बड़ा हो वे अपनी बातचीत के मामले में कभी भी अपेक्षित संयम नहीं बरतते। चारों तरफ बदजुबानी का माहौल गरमाया हुआ है किसी ने भी यह नहीं सोचता कि इस तरह से भाषणों का हमारे देश की आम जनता पर और आने वाले दिनों में कैसा प्रभाव पड़ेगा। दूर की बात क्यों लें, तीसरे चरण का चुनाव लड़ने वाले नेताओं में 340 ऐसे हैं जिनके आपराधिक रिकॉर्ड है और उनमें से 230 तो गंभीर अपराधों के अभियुक्त हैं और इनमें भी 14 लोगों को सजा हो चुकी है। तीसरे चरण में कुल 1612 उम्मीदवार जोरा आजमा हैं और इनमें 346 अपराधी हैं, 393 करोड़पति है और 1.4% निरक्षर हैं। सत्ता के लिए संघर्ष करने वाले भाजपा और कांग्रेस में 27- 27% ऐसे उम्मीदवार हैं जिन पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं। 13 उम्मीदवारों के ऊपर तो खून के मुकदमे चल रहे हैं। इसके पहले समाप्त हुए दूसरे चरण में 16% उमीदवार आपराधिक मामलों से जुड़े हुए थे और पहले चरण में 17% उम्मीदवार।
यह आंकड़े यहां पेश किए जाने का आशय केवल दिया था कि जिन उम्मीदवारों की शिक्षा-दीक्षा इतनी कम है और जिन में कानून के प्रति इज्जत इतनी कम है वह हमारे लोकतंत्र में अगर कानून बनाने और माननीय कहे जाने की मंशा लेकर अगर समाज में घूम रहे हैं तो उनका हमारे समाज के प्रति, हमारे समाज के सरोकारों के प्रति और शालीनता के प्रति कितनी ज्यादा प्रतिबद्धता होगी इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। राहुल गांधी ने जो कुछ भी कहा और जो भी अपने हलफनामे में उन्होंने माफी मांगी यहां यह उद्देश्य नहीं है।। उद्देश्य है कि यह कैसा समाज बन रहा है और उस समाज को सुधारने की जिम्मेदारी किन लोगों पर है । क्या यही समाज आने वाले वक्त में हमारे देश को उन्नति और समृद्धि की ओर ले जा सकता है। महान मनोवैज्ञानिक फ्रायड का कथन था कि आप की भाषा और आपके बोलने का ढंग आपकी दिमागी संरचना का प्रतिबिंब है । राहुल गांधी जो प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदार हैं वह ऐसी बातें करते हैं तो सचमुच देश के भविष्य को लेकर चिंता जरूरी है।
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