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Monday, April 22, 2019

ईस्टर में मातम

ईस्टर में मातम

श्रीलंका की राजधानी कोलंबो के उत्तरी भाग में निगम्बो में एक चर्च में विस्फोट से 200 से ज्यादा लोग मारे गए। विस्फोट रविवार को हुआ । रविवार को ईसाईयों का ईस्टर पर्व था। न्यू टेस्टामेंट में उल्लेख है कि  उस दिन  सन 30 में  प्रभु यीशु मौत के बाद जीवित हो उठे थे। इसे ईस्टर के रूप में मनाया जाता है। ईस्टर प्रभु यीशु के मौत के बाद से वापस लौटाने के दिन का पर्व है इसलिए  चर्च में प्रार्थना के लिए बहुत लोग इकट्ठे थे और उस दिन प्रभु यीशु की आराधना में लगे सैकड़ों लोग मौत के आगोश में चले गए। इस सिलसिले में 13 लोगों को अभी तक गिरफ्तार किया गया है। भविष्य में और गिरफ्तारियां हो सकती हैं। श्रीलंका सरकार के अधिकारियों के मुताबिक इस घटना को जिहादियों ने अंजाम दिया है । उस दिन लंका में आठ स्थानों पर विस्फोट हुए। विस्फोट से जुड़े एक व्यक्ति को गिरफ्तार किए जाने के बाद जांच के दौरान उसके परिजनों ने बताया कि वह 6 महीने से गायब है। खबर मिली है की इस घटना के बारे में पहले से ही सूचना दे दी गई थी। भारत सरकार ने इस महीने की शुरुआत में श्रीलंका सरकार को खुफिया सूचना दी थी की उनके यहां बहुत जल्दी आतंकी हमले होने वाले हैं । इस सूचना के आधार पर कोलंबो पुलिस के प्रमुख ने 11 अप्रैल को देशभर में सतर्कता जारी कर दी थी। उन्होंने चेतावनी दी थी कि भारतीय उच्चायोग तथा चर्च पर हमले हो सकते हैं। सतर्कता में जिस संगठन का नाम लिया गया था वह था नेशनल तौहीद जमात। यह कट्टर इस्लाम का समर्थक है। लेकिन तब भी श्रीलंका में चौकसी नहीं थी। दरअसल वहां 12 अप्रैल से ही छुट्टियां चल रही थी।  तमिल -सिंहल नववर्ष, गुड फ्राइडे और ईस्टर की  मस्ती में डूबे लोग जश्न मना रहे थे। इससे पता चलता है कि श्रीलंका शांति के प्रति कितना अभ्यस्त हो चुका है। उसने चेतावनी ऊपर भी कान देना उचित नहीं समझा। ऐसा देश जो आतंकी हमलों के प्रति अजनबी नहीं है। इस देश में मई 2009 के बाद जब एल टी टी ई को  फौज के हाथों पराजित होना पड़ा था उस के बाद यह पहला हमला है । तमिल टाइगर्स के आतंकी ग्रुप ने  सबसे बड़ा विस्फोट श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के समीप किया था जिसमें 91 लोग मारे गए थे और सैकड़ों घायल हो गए थे। उसके हर हमले पुलिस और सेना पर ही हुआ करते थे। न्यू यॉर्क 9/11 की घटना से 2 महीने पहले 2001 की जुलाई में उन्होंने भंडारनायके अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर हमला किया था और लगभग सभी उड़ाने रद्द हो गई थी। लेकिन रविवार के विस्फोट में इस तरह के कोई सबूत नहीं दिखाई पड़ रहे हैं । एलटीटीई लगभग समाप्त हो चुका है और वैसे भी यह  कैथोलिक चर्च पर हमले नहीं किया करता था। क्योंकि उत्तर पूर्व के बहुत से तमिल क्रिश्चियन थे और शांति पूर्वक रह रहे थे। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस दिन विस्फोट करने वाले किसी भी संगठन ने अभी तक  जिम्मेदारी नहीं ली है।  इस तरह के विस्फोटों के तौर-तरीकों आधार पर ही अंदाजा लगाया जा रहा है।
         इन  8 विस्फोटों में से दो आत्मघाती थे। यह इन दिनों आतंकी हमलों के लिए सामान्य बात है। लेकिन जब टारगेट को देखा जाए तो चर्च का चुनाव इसी वर्ष जनवरी में दक्षिणी फिलीपींस के जोलो में  विस्फोट की याद दिलाता है जहां 20 लोग मारे गए थे।  इस घटना को पूर्वी एशिया से संबद्ध आईएसआईएस संगठन ने अंजाम दिया था।  यही नहीं हाल में न्यूजीलैंड में मस्जिद में गोलीबारी की घटना की भी याद आती है। जहां तक मृत्यु संख्या का सवाल है इसमें एक बड़े होटल का चयन जहां विदेशी पर्यटक ठहरे हुए थे और हमले का तौर तरीके को देखकर 2008 के मुंबई हमलों की याद आती है। उस हमले में 166 लोग मारे गए थे। जहां तक ईस्टर के दौरान हमले की बात है तो गत 27 मार्च 2016 को लाहौर में गुलशने इकबाल पार्क  में हमला याद आता है जिसमें 75 लोग मारे गए थे और इस घटना की जिम्मेदारी पाकिस्तानी तालिबान ने ली थी। यही नहीं 2017 में "पाम संडे" के दिन मिस्र में चर्च पर हमला हुआ था जिसमें 45 लोग मारे गए थे।  चर्च और ईसाईयों  से जुड़े टारगेट्स पर जितने हमले हुए हैं उसकी जिम्मेदारी आईएसआईएस अथवा उससे जुड़े संगठन ने ली है । ताजा घटना के लिए सुना  जा रहा है कि वह संगठन है नेशनल तौहीद जमात और एक साल पहले आईएसआईएस में शामिल होने के लिए घर से भागे सैकड़ों श्रीलंकाई नागरिक इस जमात के प्रभाव में बताए जाते हैं।
        घटना के कारण श्रीलंका में भय व्याप गया  है कि कहीं एलटीटीई वाले दिन न लौट आएं। चाहे जो हो इस घटना का असर लंका की अस्थिर राजनीति पर जरूर पड़ेगा। राष्ट्रपति श्रीसेना और प्रधानमंत्री विक्रम सिंघे में 2018 से ही तनाव है फिर भी सरकार चलती है। इस साल के आखिर में राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं और राजपक्षे को गुट उम्मीद है वह दोबारा जीतेगा। रविवार की घटना के बाद श्रीलंका के चुनाव में आतंकवाद मुख्य मुद्दा बनेगा। इस घटना को देखते हुए ऐसा लगता है कि कहीं भारत के दक्षिणी क्षेत्र में भी ऐसा ना हो। क्योंकि दक्षिणी भारत में आईएस अपना पैर पसारने कोशिश में लगा हुआ है। भारत सरकार को इसे देखकर चौकन्ना रहना पड़ेगा।

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