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Friday, April 26, 2019

कीचड़ उछालने में लगे हैं हमारे नेता

कीचड़ उछालने में लगे हैं हमारे नेता 

मिशेल ओबामा ने 2016 में नेशनल डेमोक्रेटिक कन्वेंशन में अपने भाषण के दौरान एक बड़ी विलक्षण बात कही थी कि" जब वे नीचे जाएंगे तो हम ऊपर जाएंगे।" यह कथन बातचीत की शैली और स्तर के संबंध में था। यह कथन अमरीका में सोशल मीडिया पर बहुत प्रसारित हुआ और लोगों ने इस की जमकर प्रशंसा की। मिशेल ने कहा ,उन्होंने अपनी बेटी का पालन पोषण राष्ट्रपतित्व के  प्रकाश में किया है लेकिन उसे यह सिखाया है कि "वह सभी नकारात्मक प्रभावों से दूर रहे तथा उससे ऊपर उठे।" उनका यह कथन बुनियादी मानव मूल्यों संबद्ध था जो आज बहुत कम देखने सुनने में आता है, विशेषकर भारत में। क्योंकि ,यहां हमारे सार्वजनिक क्षेत्र के लोग यह मानते हैं कि जितना नकारात्मक बोलो उतना ज्यादा महत्व बढ़ेगा। आज हमारे देश में राजनीतिज्ञों में एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का उद्देश्य है कि जब वह नीचे जाएगा तो हम भी जाएंगे। वह नीचे उतर सकता है तो हम क्यों नहीं उतर सकते। भाजपा के नेता जयाप्रदा पर आजम खान की" खाकी अंडरवियर" वाली टिप्पणी यह बताती है कि अब राजनीतिक बातचीत लगभग समाप्त हो गई है । राजनीति से संबंधित बात  कहने के लिए किसी के पास नहीं है । अगर केवल भारत के राजनीतिज्ञ मिशेल ओबामा से यह सीख सकें कि प्रचार के दौरान कैसे बुनियादी शिष्टाचार को कायम रखा जाए तो उन्हें लोगों को समझाने में आसानी हो जाएगी। लेकिन बदकिस्मती से 2019 के लोकसभा चुनाव में हम जो सुन रहे हैं वह राजनीति के पर्दे में केवल विद्वेष का प्रचार है। खराब और अभद्र भाषा से विपक्षियों को संबोधित किया जा रहा है ।भय और विभाजन की राजनीति के माध्यम से चुनाव जीतने की कोशिश हो रही है ।हमारे नेता एक अत्यंत गलत मिसाल गढ़ रहे हैं।
          जब भाजपा नेता अमित शाह नेशनल सिटीजन रजिस्ट्री (एनआरसी) बनाने का वादा करते हैं तब वह कहते हैं कि वे सभी घुसपैठियों को देश से बाहर निकाल देंगे ,केवल हिंदुओं, सिखों ,जैन और बौद्धों को छोड़कर। इससे भारत में रह रहे अन्य समुदायों के पास गलत संदेश जाता है ।  चुनाव प्रचार  विभाजित करने वाला  मॉडल अपनाता जा रहा है और हाशिए पर रह रहे समाज को अपमानित कर रहा है ।  निश्चित ही यह संविधान के तहत धर्मनिरपेक्षता के विपरीत है। उसी तरह जब एक नेता खुल्लम खुल्ला मतदाताओं को  कहता है यदि वे एक विशिष्ट उम्मीदवार के पक्ष में वोट नहीं डालेंगे तो उन्हें पार्टी से कोई उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।  इससे  उसकी हेकड़ी तथा बेअदबी साफ दिखाई पड़ती है। चुनाव प्रचार में जुटे नेताओं में से बहुत या कहें अधिकांश नेताओं में एक नई प्रवृत्ति उत्पन्न हो रही है कि वह है एक दूसरे को नाम से बुलाने की। इसमें समझ में नहीं आती है कि यह सब इलेक्शन जीतने के लिए उनका एक हथकंडा है या इलेक्शन हारने के भय से उनका आक्रामक होना है । पप्पू, नामदार ,स्पीड ब्रेकर, एक्सपायरी बाबू, ज़हर की शीशी इत्यादि नाम यह बताते हैं कि हमारे राजनीतिज्ञ कैसे बोल सकते हैं। उनकी बातें इतनी दुर्भावनापूर्ण है कि राष्ट्रपति ट्रंप का बर्नी सांडर्स को "क्रेजी बर्नी" और हिलेरी क्लिंटन को "क्रूक हिलेरी" कहना साधारण लगता है। अगर यह इन दिनों सामान्य बात हो गई है तो यह एक ऐसा मसला है जिस पर हमें सोचना जरूरी है, चिंतित होना आवश्यक है।
               यह बात हैरान करने वाली है यह हमारे नेता इस स्तर तक बे अदब हो सकते हैं। हमारे राजनीतिज्ञ यह भूल जाते हैं कि वे फकत राजनीतिज्ञ ही  नहीं बल्कि रोल मॉडल भी हैं। लेकिन ऐसा लगता है वे इसकी परवाह नहीं करते कि उनके शब्दों का जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा। वे तो इस कोशिश में रहते हैं कि अखबारों को या मीडिया को सनसनीखेज सुर्खियां मिल जाएं और वह ब्रेकिंग न्यूज़ का आधार बने। इनमें चुनाव जीतने की लालसा  ज्यादा है और लोगों से जुड़ने की जरूरत कम समझ में आती है। शायद वे स्कूलों में विनम्रता  और  शालीनता के सबक  मोरल साइंस में जो   पढ़े हैं उसे भूल चुके हैं। इन दिनों हम अपने नेताओं में दूसरे के प्रति  असम्मान  और उन्हें अपमानजनक नाम से दूसरे को बुलाने और लोगों को छोटा समझने जैसे (अव) गुण ही दिखते हैं ।क्या हम अपने बच्चों को यही सिखाएंगे ? क्या सब ऐसी बातें नहीं हैं जिसे हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे देखें और सुनें। बच्चे टेलीविज़न इत्यादि देख कर बहुत जल्दी सीखते हैं। एक जमाने में कहा जाता था कि टेलीविजन देख कर हम केवल मनोरंजन ही नहीं करते हैं बल्कि सीखते भी हैं। यह हमारे बच्चों को सूचित करता है और सिखाता है। लेकिन इसका एक अवगुण यह भी है कि अगर सूचना गलत हो और उसका स्वरूप विद्रूप हो तो बच्चे वह भी सीख लेते हैं। इसका मतलब है बच्चे जो भी टेलीविजन पर देखते हैं, सुनते हैं उससे सीखते हैं और उसी से उनका आचरण नियंत्रित होता है । जब बच्चे असहिष्णुता , रेप, खून, मॉब लिंचिंग , गद्दार जैसे शब्द सुनते हैं और अपने नेताओं को देखते हैं कि वे कैसे  विपक्षियों का मजाक बना रहे हैं , उनके तरह-तरह के नाम गढ़ रहे हैं और मतदाताओं को धमका रहे हैं तो बच्चे इसे मान्य और सही आचरण मान लेते हैं। वे सीखते हैं कि कमजोर को चुप कराने के लिए ऊंची आवाज में बोला जाए। जो सबसे ज्यादा खतरनाक है वह है कि जो भाषा हम अपने राजनीतिज्ञों से सुनते हैं वह भारत के वास्तविक उद्देश्य का प्रतिनिधित्व नहीं करती।  यह इस तरह के नेता नहीं हैं कि इसे देखें और समझें नाही हमारे देश के लोग यह चाहते हैं कि हमारे बच्चे भय तथा असुरक्षा के ऐसे वातावरण में रहें।  असहिष्णुता ने देश के सामाजिक ताने-बाने को बदल दिया है।

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