CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Thursday, April 11, 2019

राफेल का मामला फिर गरमाया

राफेल का मामला फिर गरमाया

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने एकमत से स्वीकार किया राफेल मामले पर दिसंबर 2018 में दिए गए फैसले पर फिर से विचार करेगा। अदालत में मामले पर दायर पुनर्विचार याचिका पर योग्यता के अनुसार सुनवाई की जाएगी और उसने व्यवस्था दी कि अदालत में गवाह द्वारा  सबूत के रूप में प्रस्तुत संवेदनशील दस्तावेज को माना जाएगा तथा अदालत में इसके उपयोग पर केंद्र द्वारा की गई आपत्ति को खारिज कर दिया। सुनवाई की तारीख आगे तय की जाएगी।
          प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एस के कौल की एक पीठ ने कहा कि आरंभिक आपत्तियों को खारिज करना हम उचित समझते हैं।  उन्होंने स्वीकार किया कि जिन तीन दस्तावेजों को केंद्र ने स्वीकार करने योग्य नहीं बताया था वह प्रासंगिक हैं और उन्हें सबूत के रूप में स्वीकार कर उनके आधार पर सुनवाई की जा सकती है। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ ने एक अलग किंतु मिलता जुलता बयान जारी किया। सुप्रीम कोर्ट में  इस संबंध में  दिसंबर 2018 में फैसला दिया था   और पुनर्विचार के लिए दायर याचिका पर  14 मार्च को फैसला टाल दिया था। अदालत ने कहा था कि राफेल जेट खरीदने के फ्रांस से समझौते पर जांच की जरूरत नहीं है। अदालत ने 26 फरवरी को इस पर खुली अदालत में पुनर्विचार पर सुनवाई स्वीकार कर ली थी। राफेल मामले में अदालत को यह तय करना था कि इससे संबंधित जो रक्षा दस्तावेज लीक हुए हैं उसके आधार पर सुनवाई की जा सकती है या नहीं। वहीं अदालत में 14 दिसंबर के फैसले के विवादास्पद अनुच्छेद 25 में दो लाइनों को सुधारने वाली केंद्र सरकार की याचिका के साथ साथ परिवाद याचिका की थी समीक्षा  की गई । उल्लेखनीय है की पिछले साल इस मामले पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रक्रिया में विशेष कमी नहीं रही है और इस पर सवाल उठाना सही नहीं है। अदालत ने यह भी कहा था कि विमान की  क्षमता में कोई कमी नहीं है।
एक अर्जी पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा के साथ साथ वकील प्रशांत भूषण की भी थी । इन्होंने मांग की थी कि अधिकारियों पर अदालत को गुमराह करने के दोष की सुनवाई हो।
         अदालत के फैसले से चुनाव के दौरान सरगर्मियां बढ़ गई हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को अमेठी से नामांकन पत्र भरने के बाद कोर्ट के ताजा फैसले के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कई सवाल दागे। उन्होंने केंद्र सरकार की शुरुआती आपत्तियों को ख़ारिज करके पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के अदालत को सामने रखकर मोदी को घेरा। राहुल ने कहा मोदी ने सुप्रीम कोर्ट से क्लीन चिट ली थी अब नए फैसले से साबित हो गया कि कुछ न कुछ घोटाला हुआ है। राहुल ने कहा, इसमें दो लोग अनिल अंबानी और नरेंद्र मोदी शामिल हैं। राफेल सौदे में खुल्ला चोरी हुई है। साथ ही  कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि राफेल सौदे में कई स्तर पर झूठ बोले गए हैं।
         दूसरी तरफ रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि कुछ पढ़े बिना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाना सही नहीं है।
          जहां तक तार्किकता है लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को सरकारी गोपनीयता कानून का सहारा लेने का सुझाव ही गलत था। चूंकि पूरा मामला खरीद और सौदे का है ना कि भारतीय सेना का है और सौदा आर्थिक मामला है।  पैसा जनता पर लगाए गए टैक्स से आता है। यदि यही दस्तावेज सेना की तैनाती का होता या उसकी व्यवस्था का होता और वह दस्तावेज लीक हो जाते हो तो मामला गोपनीयता कानून का बनता ही था। विमानों की खरीद में गोपनीयता का कानून का सहारा लेना गलत था। सरकार ने समझा कि वह इसकी आड़ में निकल जाएगी।  मामला उल्टा पड़ गया। सरकार को आरंभ से ही पाक -साफ ढंग से बात करनी चाहिए थी। मामले को उलझाने से बात का बतंगड़ बन गया। सरकार अगर इस मामले में पारदर्शिता बरतती तो विमानों की खरीद में शीघ्रता आ जाती। लोकतंत्र में सवाल पूछने का अधिकार सबको है और सरकार अगर इसमें उत्तरों को नहीं छुपाती तो मामला इतना बिगड़ता नहीं।
       बोलना चाहे जो हो लेकिन अदालत के इस फैसले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार को झटका तो जरूर लगा है। यह कहा जा सकता है कि सरकार ने बड़ी सावधानी से भारत और भारत सरकार के बीच की दूरी को खत्म करने की कोशिश की है। आज सरकार के खिलाफ किसी भी बात को राष्ट्र विरोधी करार दे दिया जाता है या गोपनीयता कानून का उल्लंघन बताया जाता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐसे समय में  सरकार के लिए घातक कहा जा सकता है। सरकार ने इस तरह से राफेल मामले को पेश किया  है कि उसमें अपारदर्शिता है। सरकार को इस तरह से कदम बढ़ाना चाहिए था जिससे वह तर्कसंगत लगे। चुनाव की वजह या फिर जनादेश से सरकार को अप्रासंगिक ढंग से काम करने की अनुमति नहीं मिल जाती। बोफोर्स तोप सौदे से सरकार को सबक लेनी चाहिए थी। बेशक कई बार ऐसा होता है की वित्तीय विवरण देना राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में नहीं होता है लेकिन जब बड़े सौदे किए जाए तो उसमें पारदर्शिता जरूरी होती है।

0 comments: