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Thursday, April 25, 2019

सवाल केवल अदालत की साख का नहीं 

सवाल केवल अदालत की साख का नहीं 

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह  अधिवक्ता उत्सव सिंह बैंस के उस दावे के तह तक जाएगा की प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को फंसाने की साजिश हो रही है । न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि यदि फिक्सर अपना काम और न्यायपालिका के साथ हेरा फेरी कर रहे हैं, जैसा कि दावा किया गया है ,तो ना तो  वह संस्था  और ना ही इसमें कोई बचेगा। न्यायालय हम सबसे ऊपर है। मंगलवार को हलफनामे में बैंस ने दावा किया कि आरोप लगाने वाली महिला का प्रतिनिधित्व करने और प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ प्रेस क्लब आफ इंडिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए डेढ़ करोड़ रुपए देने की पेशकश की गई थी। बुधवार को सुनवाई के अंतिम क्षणों में बैंस ने पीठ से कहा कि उनके पास इससे संबंधित ढेर सारे सबूत हैं।
         जजों की इस खंड पीठ ने सीबीआई के निदेशक , गुप्तचर ब्यूरो के निदेशक और पुलिस कमिश्नर से भी मिली तथा बैंस के आरोपों पर विचार किए। यह आरोप उनके पास एक बंद लिफाफे में पहुंचा था। खंडपीठ ने कहा कि बैंस की सूचना को गुप्त रखा जाएगा। इस संबंध में कोर्ट ने तीन अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वह इस सामग्री की जांच करें ।  दूसरी तरफ, अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि बैंस के फेसबुक पोस्ट और सब्मिशन मेल नहीं खाते।अपनी पोस्ट में   बैंस ने कहा था कि  असंतुष्ट न्यायाधीशों के एक समूह ने प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ साजिश रची थी। कानून अधिकारी ने कहा हलफनामे में इसका कोई जिक्र नहीं है। बैंस ने अपने सभी  स्रोतों के खुलासे करने में आंशिक विशेषाधिकार का दावा भी किया। इस पर अटार्नी  जनरल न कहा कि कोई कैसे कुछ आरोप लगा रहा है और बाकी के दावे को विशेषाधिकार बता सकता है।   
         अब यह सवाल उठता है कि न्यायमूर्ति गोगोई के खिलाफ कौन  आरोप  लगा रहा है? अभी पिछले साल 12 जनवरी की बात है, सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने न्यायालय के तत्कालीन चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति दीपक मिश्र की नीति के खिलाफ बगावत कर एक तरह से न्यायपालिका को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था। अपना असंतोष जताने के लिए उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस भी बुलाया और कहा कि न्यायालय सही तरीके से काम नहीं कर रहा है। जिससे लोकतंत्र को खतरा है । तब उस समय उनके अनुसार कोर्ट में ढेर सारी गड़बड़ियां हो रही थीं। जिन्हें देखकर उनके द्वारा कोई 2 महीने पहले चीफ जस्टिस को पत्र भी लिखा गया था, लेकिन यह पत्र किसी काम नहीं आया । उस समय कोर्ट की इज्जत को ही गंभीर आघात नहीं लगा था बल्कि पहली बार कोर्ट के परिसर से बात बाहर गई थी और देश में यह बात फैली थी कि न्याय व्यवस्था में सब कुछ ठीक नहीं है। अनेक देशवासियों के लिए  यह  अनिष्ट का संकेत था ।  जजों की बगावत रंग लायी थी  डैमेज कंट्रोल के प्रयास किए गए थे और लगा था कि आगे चलकर अदालत अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस प्राप्त कर लेगी। अंदरूनी व्यवस्था को ठीक करेगी जिससे यह अप्रिय स्थिति दुबारा नहीं पैदा होगी।
           लेकिन अब वे पुराने वाले जज तो रहे नहीं उनमें से तीसरे रंजन गोगोई प्रधान न्यायाधीश पद पर आसीन हो गए और विडंबना देखिए कि उन्हीं की एक महिला जूनियर असिस्टेंट ने उन पर यौन प्रताड़ना का आरोप लगाया।  लगता नहीं है अभी  हालात पहले से और ज्यादा बिगड़ गए । खुद चीफ जस्टिस के शब्दों में न्यायपालिका खतरे में है। यहां यह प्रमुख नहीं है कि वह आरोप सच्चा है या झूठा है या बैंस जो कह रहे हैं वह सच्चा है या झूठा है। यहां जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है चीफ जस्टिस का अपने पद पर बने रहना। सामान्य विवेक कहता है कि आरोप लगाए जाने के बाद उन्हें अपना पद छोड़ देना चाहिए। वह राजनीतिक नेता नहीं न्यायाधीश हैं। यह विडंबना है कि  यह किसी न्यायाधीश पर पहला आरोप नहीं है। इसके पहले भी कई जगहों पर उनकी सहायकों और नौकरानियों ने आरोप लगाए हैं। लेकिन ऐसे किसी जज को सजा पाए जाने का कोई रिकॉर्ड नहीं है। यौन आकर्षण तो प्रकृति का आधार है और उससे कोई मुक्त नहीं है लेकिन चीफ जस्टिस का कहना है कि   20 साल से ज्यादा अवधि की उनकी नौकरी में उनका कैरियर निष्कलंक रहा। किसी ने उन पर आरोप नहीं लगाया। यहां इंसाफ का एक सिद्धांत  याद आता है कि जब तक आरोप प्रमाणित ना हो जाए तब तक अभियुक्त को सजा नहीं दी जा सकती। लेकिन इसका क्या किया जाए कि न्यायमूर्ति खुद इसे एक बड़ी साजिश कह रहे हैं और अदालत में इस  मामले की सुनवाई भी चल रही है। जिससे लगता है कि साजिश हुई है। यह गंभीर मसला है। क्योंकि अभी यह स्पष्ट होना बाकी है कि मामले में वास्तविकता क्या है और साजिश करने वाले के   चेहरे से नकाब को हटाना जरूरी है। क्योंकि ऐसे लोगों की  इस तरह की साजिशों में न जाने कितनों को फंस जाएंगे।
        बात में कुछ दम भी लगती है क्योंकि इसकी टाइमिंग कुछ अजीब है । अगर यह घटना पिछले वर्ष घटी तो अब तक वह क्यों चुप थी और आरोप लगाने के लिए इसी वक्त को क्यों चुना ? यही नहीं देश को यह जानने का भी अधिकार है कि चीफ जस्टिस पर आरोप लगाए जाने मात्र से देश की सबसे बड़ी अदालत के निर्णय की प्रक्रिया को बाधित किया जा सकता है। इसका तार्किक उत्तर आवश्यक है । क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में फैसले कोई एक जज नहीं करता बल्कि जजों की पीठ करती है।कई बार कई सदस्य रहते हैं। न्याय व्यवस्था में जनता के भरोसे को बनाए रखने के लिए बेहतर होगा कि वह उस बड़ी साजिश की जांच कर उसका पर्दाफाश करें। यह आरोप केवल चीफ जस्टिस पर नहीं है बल्कि समस्त न्याय प्रक्रिया पर है।  साजिश करने वाले उन हाथों को अगर नहीं पकड़ा गया तो आगे चलकर ऐसी साजिशों से पिंड छुड़ाना मुश्किल हो जाएगा। न्यायिक स्वतंत्रता पर भारी आंच आएगी।

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