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Wednesday, April 17, 2019

मॉनसून का शुभ संकेत

मॉनसून का शुभ संकेत 

जो खेती से जुड़े हैं वह समझते हैं मौसम के मिजाज से क्या-क्या गड़बड़ियां हो सकती हैं। अगर अतिवृष्टि हो गई है तो सब कुछ सफेद अगर सूखा पड़ा तो  दाने-दाने को मोहताज हो जाते हैं खेतिहर। इसलिए मौसम का समाचार कृषि व्यवस्था में जुड़े लोगों के लिए एक बड़ा समाचार होता है। हमारे देश के मौसम विभाग ने अनुमान लगाया है कि इस साल मौसम खास करके मानसून सामान्य रह सकता है। वैसे इस पर ज्यादा भरोसा करना है उचित नहीं होगा । क्योंकि कई तरह से मौसमी प्रवाह और प्रभाव इसे बदल सकते हैं। जैसे हाल के अल नीनो प्रभाव ने बहुत कुछ बदल दिया। बहुत उम्मीदें धूल में मिल गयीं। फिर भी सकारात्मक सोचना अच्छी बात है और मौसम विभाग के इस अनुमान से कृषि तथा अर्थव्यवस्था से जुड़े   लोगों को थोड़ी राहत पहुंची है। मौसम विभाग ने बताया है की मानसून के 4 महीने यानी जून से सितंबर तक बारिश अच्छी होगी। तकनीकी तौर पर कहें तो यह बारिश लॉन्ग पीरियड एवरेज (एल पी ए ) का 96% रह सकती है। लॉन्ग पीरियड  एवरेज (एल पी ए ) दरअसल विगत 50 साल में देशभर में बारिश का औसत  है। यद्यपि यह मौसम विभाग का पहला अनुमान है और इसमें बदलाव भी हो सकते हैं। मौसम विभाग का मानना है इस साल  सामान्य बारिश की संभावना 39% है जबकि सामान्य से कम बारिश की संभावना 32% है और कहीं कहीं 17% में बारिश की संभावना है यह भी अनुमान लगाया गया है की कई जगहों पर सामान्य से 10% ज्यादा बारिश हो सकती है तथा अतिवृष्टि की सूरत में यह 10% बढ़कर 12 प्रतिशत भी हो सकता है। मौसम विभाग मानसून के संबंध में देश में विगत 50 वर्षों में कितनी बारिश हुई इसी के औसत के आधार पर होने वाली बारिश  का आकलन करता है। अगर यह औषत  96 प्रतिशत से 104% तक हो  सामान्य माना जाता है और 104% से 110  प्रतिशत तक हो तो सामान्य से ज्यादा है।  90 से 96% बारिश को सामान्य से कम और 90 प्रतिशत से कम बारिश हो सूखे की श्रेणी में गिना जाता है। हमारे देश में मानसून के दो चरण होते हैं पहला अरब सागर से नमी को लेकर चलता है और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप से गुजरता है । इससे जून से सितंबर तक बारिश होती है। लेकिन जब यही हवा हिमालय तक पहुंचती है तो वहां से घूम जाती है तथा  बारिश अक्टूबर से दिसंबर के बीच होती है।  यह देश भर से होती हुई  हिंद महासागर में चली जाती है। यह अच्छी बात है कि मानसून सही  समय पर आए और सही बारिश से लाए लेकिन अगर यह विलंब से आती है और कमजोर होती है । वैसी स्थिति में सूखा पड़ जाता है। जब बहुत ज्यादा होती है तो बाढ़ आ जाती है। भारत में कृषि इसीलिए दो तरह की होती है। पहली किस्म जून से सितंबर के बीच होती है जिसे खरीफ कहते हैं और दूसरी किस्म अक्टूबर से दिसंबर के बीच होती है उसे रबी कहते हैं। 
         दरअसल देश की कुल खेती लायक जमीन का लगभग आधा भाग बारिश पर निर्भर रहता है। अगर अच्छी बारिश ना हुई तो खेती उत्पादन में कमी आ जाएगी और इससे पूरी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि देश की लगभग 58% आबादी खेती पर ही निर्भर करती है। सामान्य मॉनसून से खरीफ फसलों की पैदावार अच्छी होगी और गांव के लोगों की आमदनी बढ़ेगी। अगर पैदावार अच्छी हुई तो खाद्यान्न की महंगाई को भी नियंत्रण में रखा जा सकता है और इसका लाभ पूरी अर्थव्यवस्था को मिलेगा। पिछले वर्ष मौसम विभाग ने एलपीए के 97% बारिश की भविष्यवाणी की थी जो बाद में घटकर 95% हो गई। 2018 में वास्तविक तौर पर 91% बारिश हुई जो सामान्य से कम थी यह सिलसिला 5 वर्षों से चल रहा है। 2016 में हालात में बदले थे। उस वर्ष एलपीए के 97% बारिश हुई थी 2014 और 15 तो बेशक सूखे वाले साल रहे। 2018 में हालात थोड़ी सुधरी। देश में खरीफ की फसल की शुरुआत जून से ही होती है और देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में खरीफ की फसल का 50% हिस्सा है। कमजोर मानसून का मतलब क्या होता है? इसका अनुमान आप खुद लगा सकते हैं। आंकड़े बताते हैं 2016 में जब मानसून सामान्य था तो खाद्य उत्पादन में वृद्धि देखी गई थी। लेकिन इसके पहले के 2 वर्षों में उत्पादन में गिरावट भी पाई गई। पिछले वित्त वर्ष में भी खाद्यान्न  के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई। इसका सीधा असर ग्रामीण क्षेत्र की आमदनी पर पड़ता है और इसके फलस्वरूप खपत और आर्थिक विकास कम हो जाता है। कमजोर मानसून से केवल खपत ही प्रभावित नहीं होती बल्कि कई बार तो सरकार को अनाज का आयात करना होता है और किसानों की कर्ज माफी जैसे फैसले लेने पड़ते हैं। जिसका असर प्रत्यक्ष तौर पर वित्त व्यवस्था पर पड़ता है। सकल घरेलू उत्पाद  में कृषि की भागीदारी लगातार कम हो रही है। इस समय वह 17- 18 प्रतिशत के आसपास है । इसलिए  खाद्यान्न की कमी से आंकड़ों पर जो असर पड़ता है वह साफ नहीं दिखता है । इसके बावजूद विगत 5 वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि की दर का असर महसूस होता रहा है।
          विशेषज्ञों का मानना है अगर मानसून सामान्य रहा तो हमारे देश में सकल घरेलू उत्पाद में चौथाई से आधे प्रतिशत तक अतिरिक्त उछाल आ सकती है । 2010 में तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा था कि हमारे देश का असली वित्त मंत्री मानसून है।  हम इससे सहज ही मॉनसून की विशेषता के बारे में जान सकते हैं।
           हमारे देश में खेती को लेकर कई समस्याएं हैं। देश के अधिकांश भाग में सिंचाई के साधन उपलब्ध हो गए हैं जिससे आपात  स्थिति में उपयोग में लाया जा सकता है । लेकिन इनके साथ समस्याएं भी हैं। पहली मुश्किल तो यह है कि किसानों को इस सिंचाई व्यवस्था के लिए बिजली चाहिए और बिजली का एक विकल्प डीजल है। देश की तेल की कुल मांगो में 40% मांग डीजल की है और किसान इस के सबसे बड़े उपभोक्ता हैं। दूसरी तरफ किसान ही सबसे बड़ा मतदाता वर्ग है। मानसून को लेकर चिंता नई नहीं है। मानसून भारत के जीवन को प्रभावित करता है।  यह केवल मौसमी या कृषि समस्या नहीं बनता है बल्कि एक प्रमुख आर्थिक समस्या भी बन जाता है और तब राजनीतिक डायनामिक्स का स्वरूप बदलने लगता है । यह बदलाव क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर देखा जा सकता है।
       

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