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Tuesday, April 2, 2019

अंतरिक्ष में भारतीय जासूस

अंतरिक्ष में भारतीय जासूस

भारत ने सोमवार को अंतरिक्ष में एक भारतीय जासूस को प्रक्षेपित किया। यह "मिशन शक्ति" के बाद भारत की यह सबसे बड़ी सफलता थी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पीएसएलवी सी 45 से पहली बार तीन विभिन्न कक्षाओं में उपग्रहों को स्थापित किया। स्थापित किए जाने का यह कार्य लगभग तीन घंटे में पूरा हो गया। इन 3 उपग्रहों में सबसे महत्वपूर्ण था भारत का खास जासूस उपग्रह एमीसेट और उसके साथ विदेशों के 28 नैनो उपग्रह भी थे। यह डीआरडीओ का इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस उपग्रह है और उसके साथ जो स्थाई नैनो थे वह लिथुआनिया स्पेन स्विट्जरलैंड तरीका के हैं । इनका  प्रक्षेपण वाणिज्य कार्यक्रम के तहत किया गया। इसरो ने एक साथ तीन अलग-अलग कक्षाओं में सेटेलाइट को स्थापित करने का इस बार इतिहास रचा है । इतिहास इसलिए कहा जा रहा है कि अब तक प्राइमरी सैटेलाइट को कक्षाओं में ले जाया जाता था और उनसे जुड़े अन्य उपग्रहों को बाहर दाग दिया जाता था। अब ऐसा नहीं किया गया है। इस सेटेलाइट ने 504 किलोमीटर की ऊंचाई से पृथ्वी का पूरा एक चक्कर लगाया है इसमें दोनों ध्रुव भी शामिल हैं। इस सेटेलाइट की सबसे बड़ी खूबी है कि इसका जो रॉकेट है वह तीन विभिन्न दिशाओं में सैटलाइट को दाग सकते हैं। दूसरी बात है कि इसके रॉकेट का दूसरा   ,चौथा और  अंतिम स्टेज खुद-ब-खुद उपग्रह की तरह थोड़ी देर तक काम करेंगे तब कहीं जाकर बेकार होंगे। इस रॉकेट में 4 स्ट्रैप ऑन मोटर लगे हैं जो मूल राकेट का वजन तो बढ़ाते नहीं है लेकिन उसकी क्षमता जरूर बढ़ा देते हैं।
          रॉकेट आमतौर पर एक तरह से वाहक की तरह होता है। एक बार यह अपने उपग्रहों को कक्षा में स्थापित कर देता है तो उसके बाद इसका कोई उपयोग नहीं रह जाता और अंतरिक्ष में कूड़े की तरह पड़ा रहता है। विगत कुछ वर्षों से इसरो इस बात पर विचार कर रहा था कि रॉकेट में कुछ जान डाल दी जाए, खास करके इसके सबसे ऊपर वाले हिस्से में या फिर निम्नतम हिस्से में जो उपग्रहों के दागे जाने तक कायम रहे। रॉकेट के चौथे स्टेज में 3 तरह के इक्विपमेंट लगे होते हैं। इन में से कुछ माप तोल और प्रयोग भी किए जा सकते हैं। रॉकेट में लगा सोलर पैनल इन्हें ऊर्जा देता है और इसके माध्यम से जमीनी केंद्र से संचार चलता रहता है। इसका उपयोग जल पोतों से भेजे गए संदेशों को सुनने में भी किया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी मजबूरी है कि चौथे स्टेज  का जीवन बहुत लंबा नहीं होता। यह कुछ महीनों तक ही चलता  है। हो सकता है आगे चलकर इस प्रकार के कक्षाओं में स्थापित प्लेटफार्म छोटे-छोटे उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने का काम कर सकते हैं।
         एमीसेट सैटेलाइट कई मायनों में भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है । यह दुश्मन देशों पर नजर रखने में अहम भूमिका निभाएगा। भारत जुलाई-अगस्त में अपने नए स्मॉल सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (एस एस एल वी) रॉकेट से दो या ज्यादा रक्षा उपग्रहों को भी प्रक्षेपित करेगा । रक्षा सूत्रों के मुताबिक भारत लगभग 6 या 7 रक्षा उपग्रह बना सकता है।
      भारत का यह इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस सेटेलाइट हमारी सीमा पर इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी तरह की मानवीय गतिविधियों पर नजर रखेगा । यह सीमा पर सेटेलाइट रडार और सेंसर की मदद से हर हरकत पर नजर रखेगा। यही नहीं यह सैटेलाइट रात के अंधेरे में भी तस्वीर भी खींचता है।  देश में विकसित 436 किलोग्राम के इस सेटेलाइट से भारतीय निगरानी मजबूत होगी और पृथ्वी की 749 किलोमीटर ऊंची कक्षा में स्थापित होने के कारण यह रडार नेटवर्क की भी निगरानी कर सकेगा। यह सैटेलाइट अंतरिक्ष में विद्युत चुंबकीय तरंगों की जांच कर सकता है। इससे दुश्मन के हथियारों और सैन्य पूंजी के बारे में भी पता लगाया जा सकेगा। बदलते जिओ स्ट्रैटेजिक परिवेश में भारत की उपलब्धि सचमुच महत्वपूर्ण है। कम से कम भारत अपने को अपने दुश्मनों और रात में चलने वाले विरोधी सैनिक कार्रवाई पर नजर रखने में सक्षम तो हो सकता है । जिन वैज्ञानिकों ने इसे बनाया उन्हें साधुवाद । कम से कम राष्ट्र की सुरक्षा के लिए उन्होंने अंतरिक्ष में  ऐसा जासूस तो स्थापित कर दिया जिसे पकड़े जाने का कोई खतरा नहीं है और ना ही जिस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद पैदा करने के अवसर मिल सकते हैं।
     
      

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