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Monday, April 8, 2019

आम चुनाव और नौजवान मतदाता

आम चुनाव और नौजवान मतदाता

देश में चुनाव का माहौल गर्म हो चुका है और पहले चरण की चुनाव में महज दो दिनो  की देरी है । चारों तरफ चुनावी वादों की बरसात हो रही है और अधिकांश वादे नौजवान मतदाताओं को लुभाने के लिए किए जा रहे हैं। प्रश्न है कि यह वादे कितने हद तक पूरे किए जा सकेंगे? इसका उत्तर अभी नहीं मिल सकता। लेकिन चुनावी विमर्श में सबसे ज्यादा फोकस नौजवानों पर ही है। जैसे नौजवानों को चुनाव में एक अच्छा शगुन मान लिया गया है। पिछले कुछ चुनाव में जिन मतदाताओं ने पहली या दूसरी बार मतदान किया था उन्हीं मतदाताओं का वर्ग निर्णायक भी था। अभी तक प्राप्त सारे आंकड़े यही बताते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में लगभग 10 करोड़ नए मतदाता थे इनमें से  ढाई करोड़ के आसपास मतदाता 20 वर्ष की उम्र के थे और पहली बार मतदान करने जा रहे थे । इसके पहले वाले चुनाव में कुल निबंधित मतदाताओं की संख्या लगभग 81.45 करोड़ थी उनमें 52% मतदाता 40 वर्ष से कम उम्र के थे। यह कहने की जरूरत नहीं है कि  हमारे समाज का यह हिस्सा देश का भविष्य बनाने की जिम्मेदारी को वहन कर रहा है । इस हिस्से को सही दिशा निर्देश और समर्थन की जरूरत है, वरना यह हिस्सा देश के लिए समस्या भी बन सकता है। आज तक जितनी क्रांतियां हुई हैं उनमें सबसे ज्यादा हिस्सा इसी उम्र वर्ग का रहा है। यह एक ऐसा समूह है जिसे अगर ठीक से मार्गदर्शन मिला तो वह समाज को शिखर पर पहुंचा सकता है वरना विनाश तो बहुत कुछ हो सकता है।
         ढुलमुल शिक्षा व्यवस्था ने अत्यंत कमजोर व्यक्तित्व तथा चरित्र की नीव बन गयी  और अब सामाजिक सुधार की बातें तथा प्रयास एनजीओ की जिम्मेदारी बन गई। यह स्पष्ट है कि नौजवानों को दिशा निर्देश देने वाले प्रकाश स्तंभ अब समाप्त हो चुके हैं। यह वक्त सोशल मीडिया का है और इसके माध्यम से जो सूचनाएं आती हैं उसने हमारे समाज में ज्ञान के आदर को समाप्त कर दिया है। आजकल पढ़ना - लिखना पुराने जमाने की बात बन गई है। शिक्षा का माध्यम सोशल मीडिया है और वह कितना सही है यह समझना मुश्किल है । हर दिन किसी नेता, ऐतिहासिक व्यक्तित्व या भारतीय संस्कृति के बारे में हास्यास्पद बातें कही जाती हैं। पूरे वातावरण में वैचारिक प्रदूषण भर गया है।
           हांगकांग की संस्था "काउंटरप्वाइंट रिसर्च " के मुताबिक "भारत में 43 करोड़ स्मार्टफोन के उपयोगकर्ता हैं। यह लोग अपने स्मार्टफोन के जरिए व्हाट्सएप का इस्तेमाल करते हैं। " व्हाट्सएप का दावा है "भारत में 20 करोड़ लोग मैसेंजर सेवा का उपयोग करते हैं। यहां 87 हजार सक्रिय ग्रुप से जो लगातार संदेशों को प्रसारित करते रहते हैं, इधर से उधर भेजते रहते हैं।" यह चुनावी योद्धाओं के लिए सर्वोत्तम माध्यम है लोगों तक पहुंचने का और जनता तक अपने विचार पहुंचाने का। इस तरह से हम रात -दिन बहुत सी बातें सुनते हैं देखते हैं और पढ़ते हैं । इन संदेशों में किसी के चरित्र और किसी के कुकृत्य का विवरण होता है। भारतीय जनता में एक खूबी है कि मुफ्त में मिली सूचना को बहुत जल्दी ग्रहण करती है लेकिन महंगा पड़ रहा है।  हमारी नौजवान पीढ़ी  का अर्ध सत्य या  पूर्ण असत्य के माध्यम से ब्रेनवाश किया जा रहा है। हर राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए इसका इस्तेमाल कर रहा है। सामाजिक समरसता बलि चढ़ा दी जाती है । ऐसे में युवा मतदाताओं को जागरूक होना और अपने अधिकारों को समझना जरूरी है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है सब के सब या कहें अधिकांश नौजवान गुमराह हैं।
               अब सवाल है कि यह खतरा कितना व्यापक है। छोटा सा नमूना प्रस्तुत है। इस साल चुनाव में लगभग 90 करोड़ मतदाता निबंधित हैं । इनमें डेढ़ करोड़ ऐसे मतदाता है जिनकी उम्र 18 से 20 वर्ष है और वह पहली बार वोट देने जा रहे हैं । इनमें से अधिकांश  उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के हैं। इन 5 प्रांतों में लोकसभा की 235 सीटें हैं इसका मतलब है कि केंद्र में सरकार बनाने में यह राज्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। क्योंकि 43 प्रतिशत लोकसभा सदस्य इन्हीं राज्यों से चुने जाएंगे। इन राज्यों की जमीनी हकीकत दुखद है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं, महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं और चारों तरफ भारी बेकारी है। यहां सामाजिक  असमानता भी है और उसका असर चारों तरफ दिखाइ पड़ता है। अब जरा इस विरोधाभास को देखिए कि देश के अधिकांश प्रधानमंत्री इन्हीं राज्यों से आए हैं फिर भी इन राज्यों में दुर्दशा है ,ऐसा क्यों ? अगर हम इसका उत्तर  तलाशते हैं तो पूरा ग्रंथ तैयार करना होगा। लेकिन सच तो यह है इन राज्यों के नवजवान ही नए सरकार के चुनाव के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इस वर्ग को सरकार से बहुत उम्मीदें हैं ।यह लोग अपनी दशा से असंतुष्ट हैं और इस उम्मीद में वोट डालेंगे कि अगले 5 वर्षों में उनकी स्थिति सुधर जाएगी और उनकी समस्याएं हल हो जाएंगी । क्या उनकी उम्मीद पूरी होंगी? वादों की बरसात को देख कर लगता तो नहीं है। नेताओं के लिए वोटों की झड़ी लग जाएगी  तथा सोशल मीडिया की अदृश्य कीमियागिरी मतदाताओं को गुमराह करने में सफल होगी ,लेकिन मतदाता चुनाव के बाद और कुंठित होंगे।

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