यह क्या हो रहा है इस देश में
आरोप -प्रत्यारोप, फब्तियां और जुमले के स्तर से नीचे उतर कर आज हमारे नेता एक दूसरे पर ऐसे तंज कसने के साथ-साथ जनता को भयभीत करने लगे हैं। हैरत होती है कि अत्यंत सुसंस्कृत हमारा देश और हमारे नेता कहां पहुंच रहे हैं ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को आसनसोल में कहा कि दीदी मुट्ठी भर सीटों पर लड़कर प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहीं हैं। उन्होंने घुसपैठियों के मुद्दे पर राज्य सरकार पर जमकर बरसते हुए कहा की घुसपैठियों के दम पर बंगाल की राजनीति नहीं चलेगी और गुंडों पर शासन चलाने की परंपरा समाप्त होगी। मोदी जी ने कहा कि बंगाल का भाग्य और देश की दिशा "भारत माता की जय बोलने वाले ही तय करेंगे। " उन्होंने कहा कि देश को एक ऐसी सरकार चाहिए जिसमें दूरदर्शिता हो, विजन हो, डिवीजन करने वाली सरकार की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा स्पष्ट कहा कि ममता दीदी ने पहले घुसपैठियों को अपना कैडर बनाया आज तृणमूल की रैलियों में भीड़ नहीं आ रही है तो विदेशी कलाकारों को बुलाना पड़ रहा है ।प्रधानमंत्री ने कहा कि जम्मू कश्मीर के बाप बेटे ( फारुख और उमर अब्दुल्ला) कोलकाता में दीदी के साथ एक मंच पर आए थे और उमर अब्दुल्ला ने जम्मू कश्मीर में दो प्रधानमंत्री की बात कही थी। क्या देश में दो प्रधानमंत्री दीदी भी चाहती है? इस पर उन्हें अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक पर पाकिस्तान के पक्ष में दीदी ने आंसू बहाए यही ही उनकी नीति है। उन्होंने चिटफंड घोटालों की ओर इशारा किया और कहा कि बंगाल में भ्रष्टाचार और अपराध दोनों नॉनस्टॉप हैं बाकी सभी चीजों के लिए दीदी स्पीड ब्रेकर हैं। घोटालों के मामले में तृणमूल कांग्रेस को कड़ी टक्कर दे रही है। मोदी ने कहा कि तृणमूल की फुल पत्ती कोयले के काले धन से खिलती है । नारदा, शारदा, रोज वैली सिर्फ घोटाले नहीं हैं यह गरीबों के साथ किया गया अपराध भी है। इसके तार कहां तक पहुंचे हैं यह सभी जानते हैं । सर्जिकल स्ट्राइक के हवाले से उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में कितने आतंकी मारे गए इसका सबूत दीदी को चाहिए। मतदान करने वाले नौजवान नई राजनीति का सूत्रपात करने वाले हैं। हिंसा ,आतंकवाद ,तस्करी की सियासत बंगाल को विरासत में नहीं चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों को ऐसा हिंदुस्तान चाहिए जहां पूजा करने और शोभायात्रा निकालने की आजादी हो। उन्होंने कहा कि 23 मई को एक बार फिर मोदी सरकार आएगी।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आराम बाग में एक सभा में कहा कि केंद्रीय बल भाजपा के लिए काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बल के जवानों को भाजपा के लिए वोट देने की मतदाताओं से अपील करते वे पाया गया है। केंद्रीय बलों को नियम तोड़ने वाला बताया है। उन्होंने आरोप लगाया कि देश में चुनावी प्रक्रिया इतनी लंबी चली, 3 महीने तक चुनाव से जुड़े रहे नेता और मतदाता। ऐसा करके भाजपा को तो सुविधा दी गई है मगर आम जनता की तकलीफों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है। ममता बनर्जी ने कहा कि मोदी जी की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। देश का दुर्भाग्य है कि 5 साल तक मोदी जी जैसा प्रधानमंत्री मिला। अब भाजपा बंगाल आंख दिखा रही है। उन्होंने जनता को सचेत करते हुए कहा कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की हरमदवाहिनी के जुल्मों को याद कीजिए।
दोनों नेताओं के आरोप-प्रत्यारोप का स्तर तो गिरा ही है उनके भाषणों में जो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है वह है कि वह आम जनता को डरा रहे हैं। दीदी कह रही हैं कि मोदी जी को वोट दिया ऐसा हो जाएगा। मोदी जी कह रहे हैं कि दीदी को वोट दिया तो बंगाल में अपराध और भ्रष्टाचार बढ़ेगा तथा घुसपैठियों का आतंक भी बढ़ेगा। पूरे देश में एक अजीब सनसनी है । वह सनसनी चुनाव पर चर्चा को लेकर नहीं ,चुनाव के परिणामों को लेकर नहीं है। वह एक आतंक है। आज भारत को वे भीतर और बाहर दोनों तरफ से सुरक्षित नहीं बता रहे हैं। हमारे नेता मतदाताओं के बड़े हिस्से को नौजवानों को जो अपना इतिहास व्हाट्सएप पर पढ़ते हैं और मानते हैं कि 2014 के बाद भारत एक अंधे युग से बाहर आ गया है, उन नौजवानों को यह लोग भय दिखाने में सफल हो गए हैं। वे बता रहे हैं कि हमारे पूर्वजों के दौर के खतरे कायम हैं और इन से मुकाबले के लिए एक मजबूत और आक्रामक नेता की जरूरत है। जो सर्जिकल स्ट्राइक के लिए या दुश्मन के इलाके में बमबारी के लिए हुकुम देने में हिचकिचाए नहीं। जब देश में आर्थिक दुरावस्था है, रोजगार की हालत निराशाजनक तो ऐसा लग रहा है कि चुनाव को "देश खतरे में है" वाले "राष्ट्रीय सुरक्षा चुनाव " में बदल देने की कोशिश की जा रही है और इसमें में सफल हो रहे हैं। यही कारण है कि वह राष्ट्रहित की उन्मादी परिभाषा गढ़ रहे हैं । एक ऐसा विदेशी दुश्मन गढ़ रहे हैं जिससे सच्चे राष्ट्रवादी नफरत करे और इस दुश्मन से सांठगांठ करने वाले या उसके प्रति हमदर्दी जताने वाले से भी लोग नफरत करे। इसी भावना को सामने रखकर वोट मांगा जा रहा है। यह द्वेषपूर्ण राजनीति है और ज्यादा मारक है। अमरीकी रणनीतिकार जोसेफ नाइ जूनियर ने हाल में लिखा कि "राष्ट्र हित एक फिसलन भरी अवधारणा है और इसका उपयोग विदेश नीति के वर्णन करने के लिए भी किया जाता है और उसे तय करने के लिए भी।" उन्होंने सैमुअल हंटिंगटन को उद्धृत करते हुए लिखा है कि" राष्ट्रीय पहचान के सुरक्षित बोध के बिना आप अपने राष्ट्र हित को परिभाषित नहीं कर सकते।" यहां यह स्पष्ट है कि हमारी राष्ट्रीय पहचान हिंदू है और राष्ट्रवाद का मूल भी यही है जो हिंदुओं के लिए अच्छा है वहीं भारत के लिए अच्छा है। जो गैर हिंदू अगर इसे स्वीकार नहीं करते और शिकायत करते हैं तो वे शंकालु पत्रकार, आदतन विरोध करने वाले ,शहरी नक्सली जैसे विशेषण से नवाजे जाएंगे। आज चुनाव प्रचार को देखने से बड़ा अजीब लग रहा है। हालांकि देश में कोई प्रचंड राष्ट्रवादी लहर नहीं है लेकिन वह इतनी मजबूत तो है ही कि आर्थिक तकलीफ और असंतोष को थोड़ा फीका कर दे । आज ऐसे नौजवान भी मिलेंगे जो कह रहे हैं कि देश के लिए हम थोड़ी तकलीफ सह सकते हैं। आज ऐसा माहौल हो गया है कि सबके दिमाग में एक डर बैठ गया है। सबके मानस में एक शंका कायम है। चाहे वह पाकिस्तानियों के लिए जेट विमान और कमांडो हो या देश के भीतर बैठे गद्दारों के लिए मिथ्या लांछन और सोशल मीडिया पर लिंचिंग से लेकर तरह-तरह के अन्य भ्रामक तथ्य। इस भय को देख कर एक बहुत पुराना फिल्मी गाना याद आता है:
झांक रहे हैं अपने दुश्मन
अपनी ही दीवारों से
संभल के रहना
अपने घर में छुपे हुए गद्दारों से
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