तलाक ए बिद्दत अब अपराध
तलाक ए बिद्दत अब अपराध बन गया और इसके लिए 3 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। इसके अलावा तलाकशुदा महिला के भरण पोषण के लिए गुजारा भत्ता भी देना होगा। यह विधेयक मंगलवार को 84 के मुकाबले 99 मतों पारित हो गया। इसका सबसे ज्यादा लाभ गरीब मुस्लिम महिलाओं को हासिल होगा। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह एक ऐतिहासिक दिन है करोडो मुस्लिम माताओं - बहनों की जीत हुई है। उन्हें जीने का समान हक मिला है। तीन तलाक की कुप्रथा से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को आज न्याय मिला है।
सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक के माध्यम से किसी भी महिला को तलाक देने को असंवैधानिक बताया था। अब यह कानून बन गया और इससे किसी भी माध्यम से तीन तलाक बोल या लिख कर तलाक देना गैरकानूनी हो गया। वरना ऐसे भी मामले देखे गए हैं जिनमें पति की ओर से व्हाट्सएप या एस एम एस, फोन या चिट्ठी भेजकर अपनी पत्नी को तलाक दे दिया गया है। इसकी सबसे बड़ी विडंबना यह थी कि अगर गुस्से में पति ने तीन तलाक बोल दिया तो कुछ नहीं किया जा सकता था। बाद में अगर उसे लगा कि, नहीं यह गलत हुआ है तो उस मामले को खत्म नहीं किया जा सकता। पत्नी को बोला गया जायज हो जाता था। ऐसे मामले में महिला को अपने पूर्व पति के पास लौटने के लिए पहले किसी दूसरे पुरुष से शादी करनी होती थी फिर उससे तलाक लेकर पहले पुरुष से दोबारा निकाह करना होता था। अब तीन तलाक के जरिए पत्नी को तलाक देना एक आपराधिक मामला बन गया।
लेकिन यहां एक समस्या है। सरकार ने शादी जैसे सिविल मामले को इस कानून के तहत आपराधिक मामला बना दिया और यह दहेज उत्पीड़न या घरेलू हिंसा जैसे झूठे मामलों में पति के परिवार को फंसाने की महिलाओं की कोशिशों की तरह कहीं या पारिवारिक आतंकवाद में न बदल जाए।
इस विधेयक को लेकर राज्यसभा में मंगलवार को बड़ा दिलचस्प नाटक होता रहा। जहां कांग्रेस ने विधेयक को सदन में पेश होने से पहले राज्यसभा में अपने सांसदों पर व्हिप जारी कर दिया था वहीं बीजद ने इसका समर्थन किया। चर्चा के दौरान टीएमसी, कांग्रेस ,एआईएडीएमके, आरजेडी ,एनसीपी, बसपा ,डीएमके और पीडीपी ने इस विधेयक को सिलेक्ट कमिटी के पास भेजने की मांग की। जनता दल यूनाइटेड और एआईएडीएमके ने इसके विरोध में वाक आउट किया।
मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान लोकसभा में यह विधेयक पेश किया था जो राज्यसभा में आकर अटक गया था। इसके बाद केंद्र सरकार इसके लिए अध्यादेश लेकर आई थी। राज्यसभा में मंगलवार को साढे 4 घंटे लंबी चर्चा के बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद में कहा कि हजारों वर्ष पहले इस व्यवस्था को गलत बता दिया गया था लेकिन हम इस पर बहस कर रहे थे। विपक्षी इसे गलत बता रहे थे। क्योंकि वह इसे लागू रखना चाहते थे। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने सरकार को कहा कि ऐसा कोई कानून ना बनाएं जो राजनीति से प्रेरित हो और इससे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाए। उन्होंने कहा कि सरकार चूहे मारने की दवा के प्रयोग की तरह इस कानून को पहले मुसलमानों पर प्रयोग कर रही है। मर जाए तब भी अच्छा ना मरे तब भी अच्छा । जो अपनी पत्नी के कारण जेल चला जाएगा तो उसके बीवी बच्चे कैसे रहेंगे। जेल से निकलने के बाद वह भीख मांगेगा या चोर बनेगा। यही सरकार चाहती है। क्योंकि सरकार ने संरक्षण के लिए कोई प्रावधान नहीं रखा है। वह सिर्फ जेल भेजना चाहती है। उन्होंने कहा कि लिंचिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने का सुझाव दिया है। लेकिन अभी तक कोई कानून नहीं बना। उन्होंने कहा कि इस कानून का मकसद मुस्लिम परिवारों को निशाना बनाना है। सरकार मुस्लिम महिलाओं के नाम पर अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है।
तृणमूल कांग्रेस सांसद डोला सेन ने कहा कि सरकार विधायक को जांच किए बगैर पास कर रही है। विधायकों को बुलडोज किया जा रहा है । लोकसभा में सरकार के पास बहुमत है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह संसदीय परंपरा और संविधान का अपमान करेगी। सरकार तीन तलाक को महिला सशक्तिकरण से जोड़ रही है । लोकसभा में फिलहाल 11% महिलाएं हैं । बीजद के सांसद प्रसन्न आचार्य ने कहा कि हमारी पार्टी और उड़ीसा की सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए काम कर रही है। वह इसका समर्थन करती है । केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि आज देश कांग्रेस के व्यवहार को देखा है। लोकसभा से राज्यसभा में आते आते बिल पर कांग्रेस के पैर क्यों लड़खड़ा रहे हैं। इस रिवाज को मुस्लिम देश पहले ही खत्म कर चुके हैं । इसके पहले भी कई कुरीतियां इस देश में खत्म की गई तब तो कोई हंगामा नहीं हुआ? आज क्यों हंगामा बरपा है दूसरी तरफ कांग्रेस का कहना है कि यह बिल किसी एक महिला से नहीं उसके पूरे परिवार से जुड़ा है। सरकार जब महिला सशक्तिकरण के बारे में सोचती है तो उसे संपूर्ण रूप से बाकी महिलाओं के बारे में सोचना चाहिए। हर महिला को जीवन में कुछ न कुछ झेलना होता है । उन्होंने कहा कि न्याय और समानता में गरिमा पहली शर्त है । कानून के पहले महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए।
यहां इससे जुडी कई परिस्थितियां नजर आ रही है एक तरफ कहा जा रहा है की वर्तमान में जब मुस्लिम समुदाय पहले से ही डरा हुआ है। दूसरे दर्जे के नागरिक जैसा महसूस कर रहा है। देश में आए दिन मॉब लिंचिंग की घटनाएं हो रही हैं, तो ऐसे में अचानक सरकार को मुस्लिम औरतों का दर्द क्यों सताने लगा? यह दोहरा रवैया है इस कोशिश में ईमानदारी नहीं है। मुस्लिम महिलाओं से जुड़े दूसरे भी कई बड़े मुद्दे हैं। ऐसा नहीं लगता कि किसी तरह से राहत मिलेगी । कुछ लोगों का कहना है कि यह एक ऐतिहासिक कदम है और इससे मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाली नाइंसाफी रुकेगी। ऑल इंडिया मुस्लिम विमेन पर्सनल लॉ बोर्ड शाइस्ता अंबर का मानना है कि यह एक ऐतिहासिक कदम है। जो काम उलेमाओं तथा पर्सनल लॉ बोर्ड को करना चाहिए था उसे सरकार ने किया। तलाक ए बिद्दत अल्लाह को पसंद नहीं है उस को बढ़ावा दिया गया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा मना किए जाने के बावजूद यह कायम रहा। अब कानून बनने के बाद तीन तलाक देने वाले बार बार सोचेंगे जिन लोगों ने तलाक की व्यवस्था का दुरुपयोग किया है। उनके लिए एक चेतावनी है।
वैसे यह निर्णय जल्दी बाजी में लिया गया महसूस हो रहा है। हमारे देश का समाज बदल रहा है । सरकार का खुद मानना है कि तीन तलाक के 200 मामले सामने आए। इसका मतलब है कि सामाजिक सुधार की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। सरकार को इंतजार करना चाहिए था। समाज सुधार इतनी जल्दी नहीं सकता। दूसरी बात है कि सरकार ने खुद समाज सुधार के लिए क्या किया? क्या उसने कभी विज्ञापनों के माध्यम से इस पर रोक की अपील की? यह संपूर्ण मामला राजनीतिक दिखाई पड़ रहा है और विपक्ष की भूमिका गौण महसूस हो रही है।