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Wednesday, March 11, 2020

सिंधिया रंगे नमो के रंग में

सिंधिया रंगे नमो के रंग में

कहते हैं कि फूलों की पंखुड़ी से पत्थर का कलेजा कट जाता है लेकिन कल जो मध्यप्रदेश में हुआ उसने यह साबित किया कि फूलों की पंखुड़ियों से सत्ता के पाये भी कट जाते हैं। कमल की पंखुड़ियों में कमलनाथ की गद्दी के पाए काट डाले।
      मध्य प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से  राजनीतिक उथल पुथल मचा हुआ था और कई तरह की संभावनाएं व्यस्त हो रही थी। अंत में होलिका दहन के दिन यानी 9 मार्च को ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया और उसे  पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेज दिया। हालांकि तब बात बहुत ज्यादा प्रचारित नहीं हुई। लेकिन  उन्होंने  इस्तीफा देने के बाद  ट्वीट जरूर किया  और  उस ट्वीट की भाषा  स्पष्ट थी।  उन्होंने लिखा था  वह कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहे हैं  लेकिन इस रास्ते की शुरुआत एक साल पहले ही हो चुकी थी। होली की सुबह बात उठने लगी दूसरी ओर कांग्रेस का दावा है कि सिंधिया को पार्टी विरोधी कार्यों के कारण पार्टी से निकाल दिया गया है। सिंधिया के भाजपा में जाने को भाजपा से जुड़े लोग देशहित और राष्ट्रहित के समीकरण से देख रहे हैं तो कांग्रेसी नेता उनके लिए गद्दार जैसे शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं। यद्यपि कांग्रेस के सेंट्रल लीडरशिप की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।  ज्योतिरादित्य की बुआ यशोधरा राजे सिंधिया ने कहा है यह घर वापसी है। माधवराव सिंधिया ने अपनी राजनीति का ककहरा जनसंघ से ही पढ़ना शुरू किया था। यशोधरा राजे सिंधिया ने कहा कांग्रेस में ज्योतिरादित्य को नजरअंदाज किया जा रहा था। मध्य4 प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष रह चुके अरुण यादव ने भी कहा कि "सिंधिया द्वारा अपनाए गए चरित्र पर जरा भी अफसोस नहीं है। सिंधिया खानदान में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी अंग्रेज हुकूमत और उनका साथ देने वाली विचारधारा की कतार में खड़े होकर उनकी मदद की थी।" सिंधिया के इस्तीफे पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा , " 5 भाजपा देश की अर्थव्यवस्था,4 राजनीतिक संरचना और न्यायपालिका को खत्म करने पर तुली हुई है तो ऐसे समय में भाजपा से हाथ मिलाना स्वार्थ की राजनीति को दर्शाता है। सिंधिया ने जनता के भरोसे और विचारधारा को धोखा दिया है ऐसे लोग सत्ता के भूखे होते हैं और जितनी जल्दी पार्टी छोड़ दें तो उतनी ही बेहतर बात है।"
     अब सोनिया गांधी को इस्तीफा भेजने के बाद और उन्हें पार्टी से निकाले जाने के बाद एक सवाल उठता है कि उन्होंने ट्वीट में जो लिखा कि इसकी शुरुआत साल भर पहले हो गई थी तो क्या हुआ था साल भर पहले यह तो सभी राजनीतिक पर्यवेक्षक जानते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया विगत कुछ समय से अपने राजनीतिक करियर के सबसे लो पॉइंट पर चल रहे थे। हालांकि 2018 में जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी हुई इसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान सिंधिया का ही था। उन्होंने ही मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा चुनावी सभाओं को संबोधित किया था। उन्होंने राज्य में करीब 110 चुनावी सभाओं को संबोधित किया था और इसके अलावा 12 रोड शो किए थे उनके मुकाबले कमलनाथ ने महज 68 चुनावी सभाओं को संबोधित किया था। अब कई नेताओं को डर है कि राजस्थान भी उसी रास्ते जाएगा जिस रास्ते को मध्यप्रदेश ने लिया है वहां अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट में रस्साकशी चल रही है। कर्नाटक और कई अन्य राज्यों में भी पार्टी को नए अध्यक्ष नहीं मिल पा रहे हैं और पार्टी आंतरिक झगड़े से उबर नहीं पा रही है। सिंधिया राहुल गांधी के करीबी थे लेकिन मुश्किलें अभी थीं। खुद राहुल गांधी ने कांग्रेस सर्वे सर्वा का पद छोड़ दिया था और सिंधिया और उसके समर्थकों कि कहीं कोई सुनवाई नहीं थी। अब सिंधिया बीजेपी में चले गए तो सवाल है कि उन्हें क्या हासिल होगा? मुख्यमंत्री बनने से तो रहे। बहुत संभव होगा तो उन्हें  केंद्र में एडजस्ट किया जा सकता है। सिंधिया के लिए भाजपा कोई नई जगह नहीं है और भाजपा के लिए सिंधिया की कोई नए नहीं है की दादी मां विजय राजे सिंधिया भाजपा की संस्थापक सदस्यों में रही। दो दो बुआएं सिंधिया वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे अभी भाजपा में हैं। 49 साल के ज्योतिरादित्य सिंधिया को मालूम है उनके पास अभी समय है लेकिन वे नहीं चाहेंगे कि पिता की तरह उन्हें भी मध्य प्रदेश की सत्ता हासिल करने का मौका ही नहीं मिले । यही कारण है कि अपने राजनीतिक करियर के सबसे लो पॉइंट पर पहुंचने के बाद भी ज्योतिरादित्य अपने इलाके के लोगों से संपर्क बनाए रखे हैं। कभी इन्वेस्टमेंट बैंकर के तौर पर काम करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह अच्छी तरह मालूम है कि वह जो आज निवेश कर रहे हैं आने वाले दिनों में उसका बेहतर रिटर्न होगा। उन्हें यह भी मालूम है कि बाजार गिरने पर निवेशक ना तो निवेश बंद करता है और ना ही निवेश को बाहर निकाल लेता है । सिंधिया को अपने समय और अपनी बारी का इंतजार है।
   


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