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Thursday, March 19, 2020

कोरोना का सामाजिक साइड इफेक्ट

कोरोना का सामाजिक साइड इफेक्ट 
कोरोना से बचने के लिए लगभग सभी देशों की सरकारों ने एक बहुत सरल उपाय निकाला है कि एक दूसरे से दूरी बनाए रखें और घर में ही रहें। हमारे देश भारत में भी स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए हैं, कई परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं।  विदेशों में भी यही हो रहा है। एक ऐसे समय में जब सामाजिक तनाव बढ़ रहा है  और एक दूसरे से मिलजुल कर आपसी भेदभाव मिटाने की बात चल रही है वैसे में सब लोग अलग रहने की बात कर रहे हैं दूरी बनाए रखने की बात कर रहे हैं, दोस्तों परिवारजनों तथा विभिन्न लोगों से कम से कम मिलने की बात कर रहे हैं । कभी सोचा है एक दूसरे से गले लग कर हम अपने भीतर  के कितने तनाव को खत्म कर देते हैं:
हम अपनी रूह तुम्हारे भीतर छोड़ आए हैं
गले लगाना तो बस एक बहाना था
हम एक दूसरे से बातें करके, हंसी मजाक करके कितना आनंदित महसूस करते थे और भीतर के तनावों से कितनी राहत मिलती थी। ऐसा करने से यकीनन हमारी जीवनी शक्ति बढ़ जाती थी। लेकिन कोरोना वायरस के भय ने जीवन के इस पक्ष को खत्म कर दिया।
         इस बीमारी के लिए सबसे बड़ी  सावधानी है एक दूसरे से दूरी बनाए रखें। सचमुच यह उपचार बहुत बुरा नहीं है और कम से कम जान बचाने के लिए तो सही है। लेकिन , जैसे सभी दवाइयों के साथ होता है इस दूरी बनाए रखने का भी एक साइड इफेक्ट है। मनोविज्ञान कहता है कि सामाजिक तनाव को मिटाने के लिए आपसी मेलजोल बहुत जरूरी है।  इस मेल जोल को जितना हो सके बढ़ाए रखना भी नितांत आवश्यक है। सामाजिक तौर पर दूरी बनाए रखने के जो साइड इफेक्ट होते हैं  वह बहुत ही खतरनाक होते हैं। जिस समाज ने जितनी ज्यादा दूरियां बनाए रखी है वह समाज उतना ही विखंडित हुआ है।आपस में मेलजोल के लिए कई समाज में लोग तरसते हैं । यही कारण था कि जब स्वामी विवेकानंद ने विश्व धर्म सम्मेलन में कहा कि "माई ब्रदर्स एंड सिस्टर्स "  अमेरिका तो लोग गदगद हो गए। यह मामूली सा शब्द अमेरिका और भारत को कितनी प्रगाढ़ता से जोड़ दिया । लोग कई दिनों तक उनके भाषण को सुनने के लिए वहां जमे रहे। तनाव के बढ़ने से जो गड़बड़ियां होती हैं उसका गवाह हमारा देश भी रह चुका है । भारत के बंटवारे के समय उत्पन्न तनाव ने  लाखों लोगों की जिंदगियां खत्म कर दी और उसका असर हम आज तक देख रहे जो लोग एकाकीपन में जीते हैं  उनके भीतर कॉर्टिसोल नाम का हार्मोन ज्यादा पाया जाता है । यह हार्मोन रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी तनाव और विषाणु के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाता है।
        समाजशास्त्र में एक बहुत ही लोकप्रिय पंक्ति है "मानव सामाजिक प्राणी है। " अब बीमारी के जान का खतरा होने से फैले तनाव के वक्त मिलना जुलना मना कर दिया गया। बेशक मनाही का अर्थ और उद्देश्य सकारात्मक एवं रचनात्मक है । यह प्राणी मात्र के जीवन की रक्षा के लिए है। अब जिन लोगों को आइसोलेशन या क्वॉरेंटाइन में रखा जा रहा है  और उन लोगों से मिलना जुलना रोका जा रहा है उनके साथ यह नए किस्म की व्याधि भी पैदा  होने की गुंजाइश ज्यादा है । ऐसे लोगों के भीतर  ऑक्सीटॉसिन  नाम का एक  हार्मोन  पैदा लेता है और अगर  यह हार्मोन भीतर आ गया तो बीमारी से लड़ने की क्षमता भी घट जाएगी । यही नहीं अकेलापन लोगों को और ज्यादा प्रभावित करता है तथा चिंतित बना देता है। अब अगर वायरस के डर से लोगों को अलग-थलग कर दिया लिया या उसे एकदम इससे मिलने जुलने पर रोक लगा दी गई तो मनोविज्ञान के मुताबिक ऐसे लोग अंतर समूह चिंता के शिकार होने लगते हैं और जब दूसरों से मिलते हैं तो उन के भीतर एक खास किस्म का अविश्वास पैदा होता है।
        स्वस्थ रहने के लिए और सुखी रहने के लिए मानवीय स्पर्श भी बहुत जरूरी है। पीठ ठोकने या गले लगाने के सकारात्मक पक्ष पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए स्पर्श और आलिंगन एक खास किस्म का हार्मोन ऑक्सीटॉसिन पैदा करता है यह हार्मोन हमारी जीवनी शक्ति को बढ़ाता है और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है यही कारण है कि जिस समाज में लोग सबसे ज्यादा एकाकीपन में जीते हैं उस समाज के लोग इस वायरस के प्रभाव में ज्यादा हैं। 

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