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Sunday, March 29, 2020

वायरस को कहर ढाने की छूट नहीं दे सकते

वायरस को कहर ढाने की छूट नहीं दे सकते 

अभी हाल में बंगाल में शीतला पूजा गुजरी है। शीतला मां इसी तरह के संक्रमण की बीमारियों को समाप्त करने वाली देवी मानी जाती हैं। इसी हफ्ते रामनवमी भी आएगी यह उस राम के जन्म का समय है जिस राम ने 14 वर्षों के वनवास के बाद मानवता के दुश्मन रावण का वध किया था। आज कमोबेश वही हालात पैदा हुए हैं। लॉक डाउन में पूरा देश है और प्रवासी मजदूरों में भगदड़ मची हुई है। कुछ पूछते हैं क्या ऐसा ही चलेगा लेकिन शायद नहीं। कोरोना वायरस नाम के इस दैत्य से मुकाबले के लिए लोगों में मनोबल भरने का काम हमारे रिपोर्टर कर रहे हैं। उनका काम बंद नहीं है। यह देख कर बड़ा सुकून मिलता है कोई लड़की एयरपोर्ट से खबरें देती है तो कोई पुलिस वालों की मदद की खबरें पहुंचा रही है। कोई रिपोर्टर बीमारियों का सही हाल जानने के लिए अस्पतालों में घूम रहा है। यह गतिविधि एक उम्मीद है। यकीनन इस दौर में पत्रकारिता शायद हमारे जीवन की सबसे खतरनाक स्टोरी होगी। बड़ी बड़ी लड़ाई हो की खबरें जुटाने वाले उन संवाददाताओं से भी ज्यादा भयानक इन बच्चों के काम हैं। इस साहस को सलाम!
      कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में दो मान्य सच्चाइयों का जिक्र जरूरी है। पहली हकीकत है कि "जो कल करे सो आज कर" और दूसरी हकीकत है विख्यात अर्थशास्त्री केंस का वह  कथन कि " सबको एक दिन मरना है।" आज हताशा का मौसम चारों तरफ फैला हुआ है और ऐसे में एक खास किस्म की नाउम्मीदी लोगों के मन में कायम है और जो इस तरह की नाउम्मीदी  की बात नहीं करते उन्हें असंवेदनशील कहा जा सकता है। लेकिन पिछली पीढ़ियों से पहले आज तक की इतिहास का सबसे खतरनाक वायरस दुनिया में घूम रहा है। इसकी तुलना चाहे जिस से कर ली जाए या मिसालें चाहे जो गढ़ ली जाएं लेकिन सच तो यह कि इस वायरस से दुनिया के आम आदमी से बादशाह तक डरे हुए हैं। यह सबको अपनी चपेट में ले रहा है। महामारी विशेषज्ञों का कहना है कि अब तक इस वायरस के लिए कोई वैक्सीन नहीं बनी है या सामूहिक रोग प्रतिरक्षा या दोनों सफल नहीं होते दिख रहे हैं और शायद 50 से 80% लोग इससे संक्रमित हो सकते हैं। लेकिन यह आंकड़े बेमानी हैं। इंसानी फितरत है कि वह हर मुश्किलों से लड़ना सीख जाता है।  कभी मलेरिया से ग्रस्त होकर विश्वविजय का मंसूबा रखने वाला सिकंदर एड़िया रगड़ कर मर गया लेकिन आहिस्ता - आहिस्ता इंसान ने उस मलेरिया की दवा खोज लिए और आज वह कुछ नहीं है। बेशक कोरोनावायरस से भी कुछ लोग मर सकते हैं लेकिन कम से कम 98% लोग हमारे देश के इससे निपट लेंगे। अगर आप आलसी हैं ,भाग्यवादी हैं और हताशा वादी को तो आपके लिए बात दूसरी है केंस की बात कि आखिर हमें एक दिन मरना है। लेकिन यहां दो सवाल उभरते हैं । पहला क्या हम मौत का इंतजार करें । अधिकतर लोग इंतजार नहीं करते ज्यादा से ज्यादा लंबा जीवन जीने के लिए जी जान एक कर देते हैं। जहां तक वायरस का प्रश्न है वह तो संपूर्ण जैविक प्राणी ही नहीं है महामारी विज्ञान की विशेषज्ञता इस समय फैशन में है इसलिए जितने महामारी विशेषज्ञ या अर्थशास्त्री हैं या रामबाण दवा बताने वाले हैं वे बिल्कुल सही नहीं है कुछ विशेषज्ञ यह कह पाए जाते हैं कि जुलाई तक लाखों भारतीय मारे जाएंगे और 50 करोड़ से ज्यादा लोग संक्रमित हो जाएंगे। दूसरी छोर पर हमें यह बताया जा रहा है कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है वायरस हमें छोड़ कर आगे बढ़ जाएंगे हमारे यहां का गर्म मौसम उनके जीवन के लिए मुफीद नहीं है । लेकिन शायद वह इस बात को नजरअंदाज कर दे रहे हैं की दक्षिण एशियाई लोगों में रोग से लड़ने की क्षमता कितनी जबरदस्त है ऐसे विशेषज्ञ यह मानकर चल रहे हैं कि हमारे देश के 136 करोड़ लोग अपने सामूहिक और व्यक्तिगत भविष्य को बचाने के लिए कुछ नहीं करेंगे? कोई भी देश आंकड़े बाजो के उन मनमाने अनुमानों के आगे हथियार नहीं डाल सकता। जिनमें सरकारों के और लोगों की कोशिशों को शून्य मान लिया जाता है। ग्लोबल मीडिया में बड़े अविश्वास के साथ सवाल पूछे जाते हैं कि भारत में इतनी कम मौतें कैसे? इस तरह की बात करने वाले लोग गलत है। क्योंकि वे इस बात की अनदेखी कर देते हैं कि सामने वाला क्या कर रहा है? दूसरा पक्ष क्या कर रहा है? वह दूसरा पक्ष हम हैं । यानी आम भारतीय। हम वे लोग हैं जिनका अपना लोकतंत्र है, स्वतंत्र मीडिया है ,सिविल सोसायटी और शोर-शराबा है । इस भारत में आप मजदूरों को सैकड़ों मील दूर अपने घर की ओर पैदल जाते देखते होंगे यह दृश्य आपको बेचैन कर देता होगा और सरकारों को भी कुछ न कुछ करने के लिए मजबूर कर देता होगा।  इसका छोटा जवाब केंस उस बात का जवाब  है एक दिन सबको मरना है। इस सब को अंत में मरना तो है लेकिन मरने का इंतजार क्यों करें ? जीवन को लंबा खींचने के लिए कुछ न कुछ करते रहेंगे । हमें अपने कल को बेहतर बनाने के लिए आज का पूरा उपयोग करने की जरूरत है। कल तो आएगा ही
        तब आप पूछ सकते हैं कि यह लॉक डाउन क्यों ? बेशक इस लॉक डाउन से हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को सांस लेने का समय मिल जाएगा। जो गंभीर आपदा आने वाली है उसका सामना करने में हमारे अस्पताल कारगर हो जाएंगे। हर दिन नई समस्या उभर रही है और हर दिन उसके समाधान के उपाय किए जा रहे हैं । आगामी दिनों में यही सबसे अहम चुनौती साबित होगी और उसके बाद "सर्वे भवंतु सुखिन सर्वे संतु निरामया । "


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