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Sunday, March 8, 2020

रस और शब्द की सूक्ष्म अभिव्यक्ति है होली

रस और शब्द की सूक्ष्म अभिव्यक्ति है होली 

कल निशीथ काल के बीतते ही कोयल ने कूक भरी, पपीहे ने पुकारा पी कहां और निशा ने बड़ी चुहल बाजी से उषा को रवि की ओर धकेल दिया। उषा का चेहरा सुर्ख हो गया और उस सुर्खी से पूरी फिजां सुर्ख हो गई। 10 घोड़ों के रथ  पर सवार सूरज ने अपने रथ पर रखे रंगो को शैतान लड़की की तरह धरती पर बिखेर दिया। पूरी प्रकृति रंगों से नहा गई। टेसू के लाल फूल और सरसों के पीले फूलों की पतली कमर बल खा उठी और बरबस ही गा उठी
गढ़े कसीदे नेह के हम तो पूरी रात
अब जब हम मिलेंगे तो करनी क्या क्या बात
उधर पलाश, हरसिंगार ,अमलतास और अशोक के फूलों से पूरी प्रकृति पुलकित हो गई। क्षितिज पर धरती और आकाश आलिंगन में बद्ध दिखने लगी। हेमंत के पियराय पत्ते झर गए और यह वसंत  प्रकृति ने परिधान धारण कर लिया। गांव की गलियों से कंक्रीट के जंगलों तक होली का उमंग का असर दिखाई पड़ने लगा। प्रकृति ने सबकी आंखों में बसंत का अंजन आंज दिया।  दशमी के अगरु, धूप, चंदन से चर्चित दिन अचानक फूलों से लदे दिवस में बदल गया। शायद ऐसे ही किसी दिन विदुर के घर कृष्ण आए थे और दरवाजे पर उनकी आवाज सुनकर विदुर की पत्नी आनंद विभोर होकर स्नानागार से निर्वस्त्र बाहर आ गई थी। लेकिन, कृष्ण को विदुर पत्नी का प्रेम दिखा उसके वस्त्र नहीं ,उसकी देह नहीं। ऐसी सूक्ष्म दृष्टि हम कहां से लाएं। यह संवेदनशीलता हमारे भीतर अगर आ जाए तो हमारा हर पल होली संपूर्ण जीवन एक उत्सव बन जाए।
       होली का पर्व हमें बताता है कि मानव समुदाय को प्रकृति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए और कम से कम एक दिन उस कृतज्ञता के भाव में ओत प्रोत हो जाना चाहिए। संपूर्ण मानव समुदाय की अंतिम इकाई मनुष्य में इमानदारी और स्वाभिमान कायम रहेगा। हमारे ऋषि बिम्बों से कहानियां रचते थे। होलिका दहन की कहानी ऐसी ही है। होली के एक दिन पहले हम अपने भीतर की  वासना का दहन कर दें और प्रहलाद की भांति निष्ठा को बचा लें तो जीवन सुखमय हो जाएगा। होली से कहानी और जुड़ी है। वह है कामदेव का शिव की समाधि को भंग करने का प्रयास और शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उसे जलाकर भस्म कर दिया, तो वहां मौजूद प्रकृति के नटखट पुत्र वसंत के लिए वरदान हो गई। अधोगत काम हम से अनर्थ करवाता है लेकिन जब काम उन्नयन की संस्कृति बन जाता है राधा और कृष्ण का स्वरूप हो जाता है और कालिदास टैगोर तथा गेटे  जैसे वरदान देता है। होली के रंग में शराब और और अबीर गुलाल से लगा मन जब उल्लास के पंखों पर होता है तो हर पोर ऐसे आनंद में बदल जाता है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता और तब होली अपनी पूरी मादकता के साथ लहराती है। होली हमारे देश में शास्त्रीय मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले सहजानंद की अभिव्यक्ति है और यही कारण है कि आज बेशक जीवन के अर्थ बदल गए हैं। होली भारतीय दर्शन में प्रेम और आनंद की अभिव्यक्ति है और संदेश है कि प्रेम के बिना जीवन व्यर्थ है। प्रेम और आनंद केवल शरीर का सुख नहीं है। यह आत्मा का भी श्रृंगार है। राधा और कृष्ण युगल होकर भी असंतृप्त है और तब भी एक आत्मा। यही कारण है कि आधुनिकता के युग में भी जीवन का सत्य कायम है। होली की ठिठोली कायम है। होली का आनंद हमारे भीतर अब भी रोमांच पैदा करता है और बसंत पूरी मादकता के साथ लगता है।


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