प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को दक्षेस राष्ट्रों के शासनाध्यक्षों की एक बैठक को टेली कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित किया और कोरोना वायरस से लड़ने के लिए अगला कदम उठाने योजनाओं पर विचार विमर्श किया। इन्होंने इस माध्यम से राष्ट्रों का साहस भी बढ़ाया ,वरना चारों तरफ एक खास किस्म की उदासी का तथा भय का वातावरण बना हुआ है। यह उदासी और भय मिलकर नाउम्मीदी का सृजन करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी का यह कदम इस निराशा में उम्मीद को पंख देगा। वरना जो हालात हैं अगर उसकी व्याख्या करें तो लगता है देश विदेश के लोग इस नेटवर्किंग की दुनिया में एक दूसरे से सवाल कर रहे हैं कि सुरक्षित कैसे रहा जाए। हवाई यात्राएं सुरक्षित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन स्थितियों से लड़ने की एक उम्मीद पैदा की। बेशक उसमें यानी प्रधानमंत्री के भाषण में चिकित्सकीय विशेषज्ञता नहीं थी, हो भी नहीं सकती है। लेकिन इसका एक मानवीय पक्ष भी है जिसको प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया। बेशक इस पर काबू पाने के लिए ज्यादा विशेषज्ञ सूचनाओं की आवश्यकता है। जहां तक अभी देखने को मिल रहा है उससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि किसी विशेष उद्देश्य के तहत यह अफवाह फैलाई जा रही है। वायरस का संक्रमण है पर उतना खतरनाक नहीं है जितना कि उसे बताया जा रहा है। सारी दुनिया में मरने वालों की संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि खतरा बहुत ही कम है। शायद प्रधानमंत्री ने इस समाज वैज्ञानिक तथ्य को समझा है और उन्होंने अन्य लोगों को समझाने की कोशिश की है । इसमें जो सबसे बड़ा खतरा उन्हें है जो लोग इलाज में जुटे हुए हैं या संक्रमित लोगों से जुड़े हैं अथवा उन पर निर्भर बुजुर्ग लोगों को ज्यादा खतरा है। हो सकता है कुछ और लोगों को इस संक्रमण से मृत्यु हो जाए लेकिन किसी भी मुद्दे पर यह कोई व्यक्तिगत समस्या नहीं है। लोगों का इससे इस तरह आतंकित होना बहुत सही नहीं है। आज बाजार की स्थिति देखें तो हैरत होती है । औषधि विक्रेताओं के यहां सैनिटाइजर मास्क और पेरासिटामोल के स्टॉक बढ़ते जा रहे हैं। अगर इसका समाज वैज्ञानिक विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि विभिन्न सरकारों ने लोगों के बीच फैलाया है और आम आदमी इससे डरा हुआ है।
ऐसी महामारी के तीन चरण होते हैं। पहला प्रभावित लोगों की पड़ताल की जाए और उनसे अलग कर दिया जाए, दूसरा ऐसे लोगों की पड़ताल की जाए जो प्रभावित लोगों के बीच रह रहे हैं और तीसरा चरण सरकार की भूमिका के बारे में है। वह इसका ज्यादा प्रचार ना करें एवं इसकी रोकथाम की व्यवस्था करें। हालांकि कोरोना वायरस जब चीन से बाहर दुनिया के लोगों की निगाह में पहुंचा तब तक बहुत बड़ी संख्या में लोग वहां से बाहर जा चुके थे। जब यह महामारी फैली तो बहुत लोग इसके बारे में जानते ही नहीं थे। यहां तक कि स्वास्थ्य कर्मचारी भी इससे अनजान थे। अभी भी जो कुछ हो रहा है वह आतंक से हो रहा है स्कूलों को या अन्य शिक्षण संस्थाओं को बंद करने से कितना प्रभाव पड़ेगा यह अभी किसी को मालूम नहीं है या केवल ट्राई चल रहा है। ज्यादा प्रयास संक्रमण को रोकने का हो रहा है। हालांकि कोरोना वायरस के संक्रमण को समझने के लिए बहुत सी बातों को जानना जरूरी है। इसलिए ऐसी स्थिति में इसकी प्रक्रिया और उद्देश्यों के बारे में लोगों को बताना जरूरी है। यही सबसे बड़ी भूल हो जा रही है हमें यह मालूम नहीं सरकार क्या कर रही है। खुद सरकारी विभागों को भी नहीं मालूम है कि संबंधित विभाग इस बारे में क्या कर रहे हैं। अभी हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन में कहा था की हम एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं जिसके बारे में कोई जानकारी नहीं है ऐसी महामारी ओं में सबसे बड़ी विपत्ति यह होती है कि अगर सरकार असफल होती है तो सब जानते हैं लेकिन सरकार अगर सफल होती है तो किसी को मालूम नहीं होता। हम सरकार की सफलताओं को नजरअंदाज कर देते हैं या फिर उस पर सवाल उठाने लगते हैं। इसी कारणवश प्रधानमंत्री ने सार्क देशों के प्रमुखों से वार्ता की। उनकी कोशिश थी कि हम इसे खत्म करने की बात करें ना कि इसके प्रसार की।
Monday, March 16, 2020
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