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Wednesday, March 25, 2020

कोरोना हारेगा जीतेगा इंडिया

कोरोना हारेगा जीतेगा इंडिया

मंगलवार की शाम ढलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए आगाह किया कि कोरोना  वायरस बहुत तेजी से फैल रहा है और इससे मुकाबले के लिए 21 दिन का लॉक डाउन रखा जाएगा। यह लॉक डाउन एक तरह से जनता कर्फ्यू है लेकिन उससे भी कठोर है। घर से बाहर नहीं निकलने की मुनादी करवा दी गई है। भारत जैसे विकासशील देश में 21 दिन का लॉक डाउन बेशक एक लंबा समय है लेकिन देशवासियों के जीवन की रक्षा और उनके परिवार की रक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी ने उम्मीद की कि हर भारतीय इस संकट की घड़ी में सरकार और स्थानीय प्रशासन के निर्देशों का पालन करेगा। उधर प्रधानमंत्री मोदी भारत के 130 करोड़ लोगों को संबोधित कर रहे थे और इधर विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े जारी हो रहे थे। जिसके अनुसार दुनिया में 186 देशों में यह वायरस हमला कर चुका है। एक मायावी कहानी की तरह यह बात सुनने में लग रही है कि इस वायरस के प्रभाव से पूरी दुनिया में 20,000 लोगों की मौत हुई है और 400000 लोग संक्रमित हैं। भारत जैसे देश में 491 से ज्यादा मामले पाए गए हैं और 10 लोग काल कलवित हो गए। कुछ सैडस्टिक लोगों का कहना है कि इस के लिए लॉक डाउन करने की क्या जरूरत थी ? इससे ज्यादा लोग तो दुर्घटनाओं में और विभिन्न बीमारियों से मारे जाते हैं। लेकिन उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा है कि अगर वायरस का प्रसार बढ़ता गया तो    शायद उनका परिवार भी संक्रमित होने से नहीं बचेगा। सिर्फ इटली में मंगलवार को 743 लोगों की मौत हुई और वहां मरने वालों की कुल संख्या 6820 हो गई। चीन के बाद इटली, अमेरिका , जर्मनी , ईरान, फ्रांस और दक्षिण कोरिया में कोरोना वायरस संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। भारत सरकार ने सरकारी और निजी संस्थानों से कहा है कि लॉक डाउन के दरमियान न वेतन काटें ना छटनी करें। प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में स्पष्ट कहा की इस वायरस से मुकाबले के लिए देश में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने के उद्देश्य से 15 हजार करोड़ रुपए की राशि मुहैया कराई गई है। प्रधानमंत्री ने इस लॉक डाउन को कोरोना के खिलाफ एक निर्णायक जंग की संज्ञा दी। उन्होंने स्वीकार किया इसकी आर्थिक कीमत चुकानी पड़ेगी लेकिन लोगों की जान को बचाना सबसे पहली प्राथमिकता है। मोदी का लहजा घर के उस बुजुर्ग की तरह था जो घर के किसी सदस्य के गंभीर बीमार पड़ने पर हुआ करता है। उनके बॉडी लैंग्वेज में देश के प्रति स्पष्ट चिंता देखी जा सकती थी। उन्होंने कहा कि हर आदमी के दरवाजे पर एक लक्ष्मण रेखा खींची गई है उससे बाहर कदम को रखा जाना कोरोना को भीतर आने के लिए आमंत्रित करना है। प्रधानमंत्री ने इस बिंब को अभिव्यक्त कर रामचरितमानस के उस खतरे को प्रतीक बनाया जिसमें सीता ने कदम बाहर रखा था लक्ष्मण रेखा से और  राक्षसराज रावण  अपहरण कर ले गया।
विशेषज्ञों की राय है जिस व्यक्ति में कोरोना है उसमें इसके लक्षण दिखने में कई दिन लग सकते हैं। इस दरमियान यह कई लोगों को संक्रमित कर सकता है। प्रधानमंत्री के अनुसार दुनिया में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या जहां एक लाख पहुंचने में 67 दिन लग गए थे वही महज 11 दिनों में एक लाख और केसेज जुड़ गए और इसे तीन लाख पहुंचने में केवल चार दिन लगे थे। इससे समझा जा सकता है यह कितनी तेजी से फैल रहा है। इसके प्रसार को रोकना बड़ा कठिन है। बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के बावजूद इटली ,फ्रांस, स्पेन, जर्मनी और अमेरिका जैसे देश में इसके हालात बेकाबू हो गए। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा "जब तक जान है जहान है। धैर्य और अनुशासन की घड़ी है। जब तक देश में लॉक डाउन की स्थिति है तब तक हमें अपना वचन निभाना है संकल्प निभाना है।"
       मोदी जी द्वारा इस तरह के कदम को उठाया जाना उस समय सही लगता है जब हम आंकड़ों को देखते हैं। सबसे बड़ी गलती तो तब हुई जब इसकी शुरुआत हुई थी तो हमने इस पर ध्यान नहीं दिया और अब इसने महामारी  का  रूप ले लिया है।  अस्पतालों के आंकड़े काफी डरावने लग रहे हैं। करोना के पक्के मामलों की संख्या 50 से कम दिनों में दुगनी होने वाली है अमेरिका में मामले हर 2 दिन पर दुगनी रफ़्तार से बढ़ रहे हैं भारत में जिस रफ्तार से इसके मामले बढ़ रहे हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक पक्के मामलों में मौत के 3.4% दर को देखते हुए भारत में मई के अंत तक इसके 10 लाख से ज्यादा पक्के मामले आ सकते हैं और 30 हजार से ज्यादा लोग मारे जा सकते हैं। बायो सांख्यिकीविदों का यह अनुमान कि आंकड़े और बढ़ सकते हैं तथा 10 लाख मामले पंद्रह मई तक सामने आ सकते हैं। मामलों का इस तरह अचानक बढ़ना और पक्के  मामलों के अनुपात का बढ़ जाना खुद में कितना खतरनाक हो सकता है इसे सिर्फ सोचा जा सकता है। मोदी जी ने इसी चिंता के कारण लॉक डाउन की व्यवस्था की। क्योंकि आम आदमी यह नहीं समझ पा रहा है कि आगे कितना बड़ा संकट हो रहा है। भारत में यह इसलिए महत्वपूर्ण है यहां अधिकतर कामगारों को रोजगार की सुरक्षा नहीं हासिल है। संकट का जो लंबा समय आ सकता है उसे देखते हुए पूरे भारत में कुछ खास मुआवजा पैकेज की घोषणा जरूरी है। कुछ राज्यों को भारी संकट से जूझना पड़ सकता है। क्योंकि, स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में भारत के राज्यों में काफी अंतर है। गरीब राज्य स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में बेहद कमजोर हैं। जून 2019 में स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में नीति आयोग ने एक रैंकिंग तैयार की थी उस रैंकिंग के मुताबिक कुछ राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं मध्य अथवा उच्च आय वर्क के कुछ देशों की स्वास्थ्य सेवाओं के बराबर है। उदाहरण स्वरूप नवजात शिशु मृत्यु दर के मामले में केरल ब्राजील के बराबर है । कुछ राज्यों में स्वास्थ्य सेवाओं खासकर दुनिया के सबसे गरीब देशों की स्वास्थ्य सेवाओं के बराबर है। मसलन नवजात शिशु मृत्यु दर उड़ीसा का  सिएरा लियोन के समकक्ष है। बिहार में प्रति एक लाख लोगों के लिए अस्पताल का एक बेड उपलब्ध है जबकि गोवा में 20 बेड उपलब्ध है। छत्तीसगढ़ में जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 71% पद खाली पड़े हैं। बिहार में प्रथम रेफरल यूनिटों में से केवल 15% ही काम कर रहे हैं। इसका रातो रात निदान तो नहीं हो सकता इसलिए सबसे सुरक्षित उपाय है जो प्रधानमंत्री ने सुझाया कि अपने घरों में कैद रहें ताकि एक दूसरे का संक्रमण न लग सके।


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