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Monday, March 30, 2020

डब्ल्यूएचओ अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नया अखाड़ा

डब्ल्यूएचओ  अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नया अखाड़ा 

21वीं सदी के शुरुआती दशक में एक महामारी आई थी सार्स। उससे बहुत लोग मारे गए थे। उससे पैदा हुए खौफ और दहशत की कल्पना से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की कोरोनावायरस ने कैसे दुनिया को उथल-पुथल कर दिया। वर्तमान की तरह उस समय भी चीन ने सार्स महामारी के प्रसार को विश्व समुदाय को बताने में देरी की थी। लेकिन उस वक्त और आज के दिन में एक बड़ा फर्क है। सार्स की खबर मिलते ही विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने तुरंत सूचना जारी कर दी और यात्राओं पर अविलंब रोक लगा देने की सलाह दी। उसने सार्स की महत्वपूर्ण सूचना देने में देर के लिए चीन को आड़े हाथों लिया था। क्योंकि उसका कहना था कि अगर यह खबर पहले मिल गई होती तो बहुतों को बचाया जा सकता था। सार्स को काबू कर लेने का जश्न डब्ल्यूएचओ ने मनाया और चेतावनी दी कि कोरोना वायरस एकदम नए अवतार में लौट सकता है और इससे दुनिया को खतरा बना रहेगा। डब्ल्यूएचओ के तत्कालीन महानिदेशक डॉक्टर ग्रो हरलेम ब्रंड्टलैंड ने पूरी दुनिया से अपील की थी की पशुओं के रेहड़ की जांच करें क्योंकि उनसे भविष्य में महामारी फैल सकती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया था कि वायरस के विस्तार पर और शोध करने की आवश्यकता है। चीन के उन बाजारों को खासतौर पर चिन्हित किया गया था जहां तमाम तरह के पशुओं को लोगों को खाने वाली वस्तु के तौर पर बेचा जाता है। यहां वायरस सकते हैं और मनुष्यों  में प्रवेश कर सकते हैं। 2007 में एक शोध पत्र में कहा गया था वायरस की अस्थिर प्रकृति और चीन का तीव्र शहरीकरण  मिलकर "टाइम बम" का निर्माण कर सकते हैं ।  2015 में निर्णय किया गया कि कोरोनावायरस के रोग अनुसंधान और विकास को सबसे ज्यादा प्राथमिकता वाली सूची में रखा जाए, क्योंकि यह एक उभरती हुई बीमारी है और बड़ी महामारी का कारण बन सकती है। इस आकलन को डब्ल्यूएचओ की वार्षिक समीक्षा 2018 में दोहराया गया। इन सारे हालात को देखते हुए हैरत होती है कि जब दिसंबर में वुहान में निमोनिया वाले वायरस का पता चला  था और डब्ल्यूएचओ के पास इससे संबद्ध आंकड़े भी थे जो सार्स पर वर्षों के अध्ययन से हासिल हुए थे तब आखिर इतनी सुस्ती क्यों बरती गई? डब्ल्यूएचओ के वर्तमान महानिदेशक डॉक्टर ट्रेडोस ए गब्रेसेस ने जनवरी में महामारी के शुरुआती दौर में पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता के लिए चीन को शाबाशी दी थी। जबकि इसका खंडन करने वाले अनेक सबूत हैं।
     जब चीन में संक्रमण का पहला मामला सामने आया तो उसके अगले ही दिन डब्ल्यूएचओ ने दावा किया कि कोरोना वायरस के इंसान से इंसान को संक्रमण का सबूत नहीं है। इस संगठन को इस बारे में दिसंबर में ही सावधान कर दिया गया था। चीन ने 31 दिसंबर डब्ल्यू एच ओ को सूचित किया कि इस वायरस से अक्टूबर में ही मनुष्य का संक्रमण हो गया है। इसके बावजूद डब्ल्यूएचओ ने चीन की सरकार को नाराज न करने की पूरी सावधानी बरतते हुए वहां कोई जांच दल भेजने की गंभीरता नहीं दिखाई। डब्ल्यूएचओ और चीन की संयुक्त टीम फरवरी के मध्य में वहां गई।  इसमें  डब्ल्यूएचओ के   12  विशेषज्ञ थे  और चीन के  13 अधिकारी थे।  इस  टीम ने  जो रिपोर्ट दी उसमें चीनी तर्क भरे पड़े थे।
         इस बीच कोरोना से फैलने वाली महामारी के लक्षण दिखाई पड़ने लगे। डॉक्टर ट्रेडोस और उनकी टीम ना केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य इमरजेंसी की घोषणा करने में नाकामयाब रही बल्कि उल्टे उसने पूरी दुनिया को यात्राओं पर रोक लगाकर दहशत और डर फैलाने से परहेज करने की अपील कर दी। इस अंतरराष्ट्रीय संगठन ने यात्राओं पर रोक लगाने के लिए अमेरिका की आलोचना की और इसे अतिवादी कदम बताया। डब्ल्यू एच ओ की सलाह पर यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ने सुझाव दिया कि इस वायरस से यूरोपीय संघ को खतरा कम है, इसलिए इसके देश में यात्रा पर रोक में देरी हुई। डब्ल्यूएचओ के शुरुआती गलत कदम के कारण पूरी दुनिया में हजारों लोग इस वायरस के शिकार हो गए उनके जीवन पर इसका लंबा असर पड़ सकता है। यही नहीं इससे आर्थिक मंदी भी आ सकती है।
     यही नहीं इस  महामारी का एक रणनीतिक पहलू भी सामने आ रहा है। यह बदलते अंतरराष्ट्रीय शक्ति संतुलन का एक और मोर्चा बन गया है। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। 50 और 60 वाले दशकों में डब्ल्यूएचओ खुद को सोवियत संघ के कम्युनिस्ट ब्लॉक और अमेरिका के बीच कसरत करता हुआ पाता था। 90 और दो हजार वाले दशकों में वह दवाओं बौद्धिक संपदा के अधिकार और दवाओं तक पहुंच के सवालों पर बहस में उलझा हुआ था। अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में चीन के बढ़ते दबदबे के कारण अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई खाईयां बन रही हैं और डब्ल्यूएचओ इसका पहला शिकार हुआ है। यहां यह ज्ञातव्य है की मार्गेट चान के नेतृत्व में डब्ल्यूएचओ उन पहले अंतरराष्ट्रीय संगठनों में था जिसने चीन की विवादास्पद "बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव" के तहत आधुनिक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए एमओयू पर दस्तखत किया था। चीनी और और कनाडाई मूल के चान का चीन के मेन लैंड से काफी प्रगाढ़ संबंध हैं। डॉक्टर ट्रेडोस को भी चीन समर्थित उम्मीदवार माना गया था और हाल के सप्ताहों में वह धारणा मजबूत हुई थी। दुनिया ने अब जवाब देना शुरू कर दिया है। हाल ही में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के नए महानिदेशक के चुनाव में सिंगापुर के उम्मीदवार की जीत हुई और इस विजय ने एक महत्वपूर्ण नियामक की मानक संस्था पर कब्जा करने की चीन की कोशिश को नाकाम कर दिया है। सवाल है कि क्या डब्ल्यूएचओ अब अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नया अखाड़ा बनेगा ?


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