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Sunday, March 15, 2020

वायरस का भारत पर आर्थिक प्रभाव

वायरस का भारत पर आर्थिक प्रभाव 

कोरोना वायरस का आतंक इतना ज्यादा है  कि भारत में लगभग सभी स्कूल, कॉलेज, शिक्षण संस्थान ,जिम ,सिनेमाघर इत्यादि सब बंद कर दिए गए हैं।सैनिटाइजर और मास्क की कीमतें आकाश छूने लगी हैं।  कई क्षेत्रों में इसका प्रभाव देखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट के अनुसार करोना वायरस से दुनिया की जो 15 अर्थव्यवस्थाएं  बुरी तरह प्रभावित हुई है उनमें भारत सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। चीन में आने वाली दवाओं पर उत्पादन में कमी  के प्रभाव से भारत के व्यापार पर भी असर पड़ा है और इससे हमारे देश को करीब 34.8 करोड डॉलर तक का नुकसान उठाना पड़ सकता है। यूरोप के आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओ ई सी डी) ने भी 2020- 21 में भारत के अर्थव्यवस्था के विकास की गति का पूर्वानुमान जो लगाया था उसमें 1.1% घटा दिया है। ओ ई सी डी ने पहले अनुमान लगाया था कि भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.2 प्रतिशत रहेगी लेकिन अब उसमें उसने कमी कर दी है और इसे 5.1% कर दिया है।
     भारत सरकार ने एक नारा दिया है कि "करोना से डरना नहीं लड़ना है।" यानी, सरकार की कोशिश है कि इस बीमारी या कह सकते हैं महामारी के कारण देशभर में आतंक न व्याप जाए। हालांकि विपक्षी दलों ने इस वायरस से होने वाले आर्थिक नुकसान के बारे में सरकार से पूछताछ शुरू कर दी है। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री डॉ अमर्त्य सेन ने कहा है कि "किसी भी देश पर आर्थिक प्रभाव केवल आर्थिक नहीं है ऐसे प्रभाव की एक मानवीय कीमत भी होती है।" अब जैसे वायरस का प्रभाव दवा कंपनियों पर पड़ा है और दवाइयों की कीमत बढ़ गई है लिहाजा गरीबों के लिए दवाइयां धीरे-धीरे दुर्लभ होती जा रही हैं और रोगी जिनके पास साधन नहीं है वे हीनता बोध से ग्रस्त होने के साथ-साथ अपनी जिंदगी की जंग भी हारते नजर आ रहे हैं। उधर जिन लोगों में करुणा सहानुभूति नहीं है वैसे दवा विक्रेता ऊंची कीमत पर सैनिटाइजर और मास्क जैसी वस्तुएं बेच रहे हैं। कोलकता शहर की कई दवा दुकानों में मास्क की कीमत ₹500  हो गई है। सैनिटाइजर तो लगभग गायब हो चुका है। जेनेरिक दवाओं का भारत दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है और चीन में इन रोगों के फैलने यह कारण कई दवाओं का भारत में उत्पादन बंद हो चुका है या रोक दिया गया है। ऐसे में जहां दवाइयां अनुपलब्ध होती जा रही हैं वहीं बेकारी के साथ-साथ बीमारी भी बढ़ती जा रही है । रसायन एवं उर्वरक मंत्री श्री मनसुख मंडवारिया के अनुसार देश में दवाओं की कमी रोकने के लिए टास्क फोर्स बनाने का सुझाव दिया गया है। मंत्रियों का एक स्थाई समूह लगातार हालात का आकलन कर रहा है। पर्यटन उद्योग पर भी  इसका व्यापक असर पड़ रहा है।  लोगों ने आना जाना बंद कर दिया है जिसके कारण पर्यटन स्थल पर साधारण विक्रेताओं से लेकर पर्यटकों की आवभगत में लगे पांच सितारा होटलों तक पर भारी प्रभाव पड़ा है। यही नहीं जिन और जूलरी बाजार पर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है।
       कच्चे तेल की कीमत गिर गई है और जहां इसका लाभ आम जनता को मिलना चाहिए था सरकार ने अबकारी शुल्क में वृद्धि कर जनता की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। इस दौर में जहां राहत की जरूरत थी वहीं कठिनाइयां बढ़ गई है। कारोबार खतरे में पड़ गए हैं। बड़ी कॉन्फ्रेंस रद्द हो गई है । हमारे देश की आर्थिक तरक्की की रफ्तार गिर चुकी है। महामारी के आने से पहले ही आशंका जताई जा चुकी थी इस देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 5% से नीचे रहने वाली है अब कितनी कमी होगी इसका अनुमान लगाना तभी संभव है जब यह स्थिति साफ हो जाए। कोई नहीं कह सकता है कि वायरस का प्रभाव कब तक रहेगा और उसका कितना असर भारत की अर्थव्यवस्था पर और हमारी आपकी जेब पर पड़ेगा। तेल की कीमत गिरने के साथ ही सरकार ने पुरानी चाल चलनी शुरू कर दी और उसने डीजल पेट्रोल पर ड्यूटी ₹3 प्रति लीटर बढ़ा दी है। सरकार का कहना है कि इससे होने वाली आय से ढांचा और विकास कार्यों पर खर्च के लिए जरूरी रकम मिलेगी लेकिन इसमें यह बात छिपी हुई है कि सरकार अपने खाली खजाने को भरने के लिए फिर से जनता की जेब काटने लगी है। यह वृद्धि सीधे एक्साइज ड्यूटी में नहीं की गई है, बल्कि स्पेशल एडिशनल एक्साइज ड्यूटी रोड इंफ्रास्ट्रक्चर से बनाया है इसका मतलब है कि केंद्र सरकार इसमें से राज्यों को भी हिस्सा नहीं देती होगी यहां सवाल है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दाम नहीं गिरे होते तो सरकार क्या करती? कीमतें गिरने के बाद ही सरकार को यह सब क्यों याद आया? अगर यह रकम सरकार छोटे व्यापारियों और आम जनता के बीच जाने देती है तो अर्थव्यवस्था में रफ्तार लाने के इस मौके का सही इस्तेमाल कर सकती थी जिस मौके का देश को इंतजार है।


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