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Friday, March 27, 2020

उम्मीद तो दिखाई पड़ने लगी है

उम्मीद तो दिखाई पड़ने लगी है 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल डिस्टेंसिंग का जो उपाय सुझाया है उससे कोरोना वायरस का प्रभाव घटता नजर आ रहा है और उम्मीद है कि जब 21 दिन पूरे होंगे तो हालात काबू में रहेंगे। हालांकि सोशल मीडिया और टेलीविजन के समाचारों में कई ऐसी चीजें दिखाई पड़ रही है जिससे लगता है सब कुछ बुरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है और कुछ नहीं तो लोग खरीदारी में जुटे हुए हैं। जरूरत के सामान इकट्ठे कर रहे हैं सैनिटाइजर और मास्क बाजार से गायब हैं।  इन दृश्यों का विश्लेषण किया जाय और यह जानने की कोशिश की जाए कि समाज में क्या बदल रहा है और लोग कैसा आचरण कर रहे हैं तो  कई चीजें  हासिल हो सकती  हैं।
      बुधवार को प्रधानमंत्री ने वाराणसी के लोगों को संबोधित करते हुए मदद का हाथ बढ़ाने की अपील की थी। लेकिन जो खबरें आ रही हैं उनसे तो ऐसा लगता है आम आदमी इस बदलाव को काबू में करना चाह रहा है और यह देख कर हैरत हो रही है चिंता भी और डर भी हो रहा है कि लोग सामान इकट्ठा कर रहे हैं। इसका अर्थ है कि वह जल्दी ही बहुत ज्यादा जमा कर लेना चाह रहे हैं। जो लोग बीमार हैं बुजुर्ग हैं और जिन्हें उपचार की जरूरत है उन पर कोई भी नहीं सोच रहा है। कुछ ज्ञान गुमानी लोग हैं जो यह कहते नहीं थक रहे हैं कि हालात जल्दी ही काबू में आ जाएंगे। सुनकर हैरत होती है। हालात के काबू  में आने का अर्थ हमारे भारतीय समाज में क्या है। भूख से तड़पते सामान से लदे घर को लौट रहे मजदूर या सरकार से तुरंत व्यापक पैमाने पर राहत पैकेज की मांग करने वाले नेता जो यह बताना चाह रहे हैं कि बिगड़ती स्थिति में वे किस तरह सचेत हैं। कोई भी राष्ट्रीय संसाधनों के बारे में और उन संसाधनों की सीमाओं के बारे में सोचने को नहीं तैयार है। कोरोना वायरस की महामारी ने भयानक चिकित्सकीय, भावपूर्ण मनोवैज्ञानिक और सामाजिक संकट खड़ा कर दिया है। जिसके लिए ना हम तैयार हैं ना प्रशिक्षित। विख्यात अमेरिकी समाज वैज्ञानिक एरिक क्लाइनबर्ग ने "सोशियोलॉजी टुडे" में हाल में एक बहुत ही महत्वपूर्ण लेख लिखा था जिसमें उन्होंने यह बताने की कोशिश की थी कि "यह समय समाजिक एकजुटता का  है जिसके तहत अंतर निर्भरता, कमजोर लोगों की हिफाजत, समान हितों की चिंता और जनता के कल्याण की बात सोचना जरूरी है।" लगभग यही बात प्रधानमंत्री ने भी अपने  संबोधन में कही थी। सचमुच उम्मीद तो है कि हम इस चुनौती पर विजय प्राप्त कर लेंगे लेकिन अब से 21 दिन के बाद हम कहां होंगे, हमारे चिंतन कहां होंगे समझ पाना बड़ा कठिन है । इसीलिए प्रधानमंत्री ने कहा कि आप कम से कम 9 लोगों की मदद करें। अगर यह 9 लोग दूसरे 9-9 लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाते हैं तो आनन-फानन में 81 लोगों को मदद मिल सकती है। यही कारण है कि राज्य सरकारें स्थानीय प्रशासन अपने स्तर पर मुस्तैदी से काम करने में जुटे हुए हैं। सरकार के इन प्रयासों को कई धर्मार्थ संस्थाएं और गैर सरकारी संगठन सफल बनाने में जुटे हैं ताकि देश में ज्यादा से ज्यादा लोगों की जिंदगी को बचाया जा सके।
    अगर सामाजिक कार्यों का दावा करने वाले रजिस्टर्ड एनजीओ भी इस काम में जुट जाएं तो जरूरतमंदों को ज्यादा मदद मिल सकती है। जितने एनजीओ हैं उनके आधे भी प्रधानमंत्री की बात का अनुसरण करते हुए अपनी कमर कस लें तो इस चुनौती का सामना करना आसान हो सकता है। यह गैर सरकारी संगठन आगे आकर पलायन कर रहे असंगठित क्षेत्र के मजदूरों और दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों को कम से कम भोजन और अस्थाई आवास की व्यवस्था करने के कामों में जुड़ जाए तो बहुत बड़ा जनकल्याण हो सकता है। जिसका एनजीओ उद्देश्य बताकर अपना अस्तित्व कायम किया है हमारे देश में वर्तमान में लगभग 35 लाख पंजीकृत एनजीओ है और इन एनजीओ को केंद्र तथा राज्य सरकारों से अरबों रुपए की आर्थिक सहायता मिल चुकी है । कई संगठनों को तो विदेशों से भी आर्थिक मदद मिलती है। आंकड़े बताते हैं कि इन संगठनों को केंद्र और राज्य सरकारों से हर साल 1000 करोड़ रुपए की मदद मिलती है। अगर यह संगठन संकट की घड़ी में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करें और असहाय लोगों की ओर मदद का हाथ बढ़ाएं तो कोई कारण नहीं है की हम इस चुनौती पर विजय न हासिल कर सकें।  लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है क्योंकि यह सब संगठन कागजी है।
       कुछ लोग सोशल डिस्टेंसिंग के सुझाव को अमान्य करने में लगे हैं और इस दौरान पुलिस की भूमिका पर उंगलियां उठ रही हैं। लेकिन भारत में फिलहाल जो स्वास्थ्य सेवाएं हैं वह इतनी सक्षम नहीं है के इस महामारी कर सीधे-सीधे मुकाबला कर सकें। ऐसे में इस महामारी के बारे में जानकारी का होना सबसे ज्यादा जरूरी है। गौर करने की बात है कि इसका प्रभाव वहीं हो रहा है जहां लोगों को इसके बारे में स्पष्ट और संपूर्ण जानकारी नहीं है। इस वायरस की उम्र कम है और इसे एक दूसरे के बीच फैलने से यदि रोक दिया जाए तो इससे छुटकारा मिल सकता है। अभी इस वायरस के उपचार के लिए कोई टीका अथवा दवा नहीं निकली है इसलिए जरूरी है इसके संक्रमण को फैलने से रोका जाए और इस काम में देश के सभी लोग व्यक्तिगत रूप से मदद कर सकते हैं।  जैसा कि प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा था की यह आपके लिए है ,आपके परिवार के लिए है आपके राष्ट्र के लिए है । भारत ने टोटल लॉक डाउन कर इस बीमारी को रोकने की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ा दिया है। भारत के पास इसके अलावा कोई उपाय भी नहीं है। सरकार ने उपचार व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए लंबी रकम का प्रावधान किया है, साथ ही लोगों के मनोभाव और मनोबल को कायम रखने के लिए तरह तरह के उपाय भी किए जा रहे हैं। उम्मीद है कि इस वायरस पर हम जरूर विजय प्राप्त कर लेंगे । क्योंकि तीन-चार दिनों में ही संक्रमित लोगों संख्या घटने लगी है।  यह  बहुत ज्यादा उल्लेखनीय नहीं है लेकिन तब भी शुरुआत तो हुई। उम्मीद तो दिख रही है कि कल को कुछ ज्यादा ही हासिल हो जाएगा। उम्मीदों पर ही यह दुनिया कायम है।


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