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Monday, March 23, 2020

लड़ेंगे - जीतेंगे

लड़ेंगे - जीतेंगे 

कोरोना वायरस  दानवी आतंक बन रहा है लेकिन भारत में मोर्चे पर डटे सब डॉक्टरों, चिकित्सा कर्मियों, सुरक्षाबलों, सप्लाई चैन के बहादुर जांबाज और हर उस हिंदुस्तानी का जैसे संकल्प गूंज उठा है - लड़ेंगे जीतेंगे । सब ने मानो कसम खाई है घर से बाहर नहीं निकलेंगे। ' मुश्किल वक्त भारत सख्त । ' करोना वायरस से  दुनिया भर में  14,600 से ज्यादा लोग  काल के गाल में समा गए  और इसके बाद भी मौतों का सिलसिला नहीं थम रहा । आमतौर पर लोग गलतियां करते हैं लेकिन उन्हें दंड नहीं दिया जाना चाहिए बल्कि उन्हें अपनी ताकत बढ़ाने और इस तरह की चीजों से लड़ने की क्षमता बढ़ाने के लिए समर्थन किया जाना चाहिए। ताकि वे आगे अच्छा काम कर सकें। विख्यात समाजशास्त्री जॉन जिगलर ने ट्वीट किया है कि आपस में कोरोना वायरस को लेकर एक दूसरे पर दोष न लगाएं । इसमें दो चीजें समझ में आती हैं कि दोष लगाना है और किसी उंगली उठाने है तो सही दिशा में उठाई जाए। अब सवाल उठता है कि सही दिशा कौन सी है ?
     कुछ लोग इसके फैलने के कई कारण बता रहे हैं। लेकिन इसके फैलने का मुख्य कारण है कि जहां-जहां मांसाहार का प्रचुर प्रयोग होता है वहां यह वायरस तेजी से फैल रहा है। कुछ लोग जो मांसाहारी हैं वह इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है और उसकी कीमत पूरी दुनिया को चुकानी पड़ रही है। दूसरी बात यह है लोग खासकर जो अपने को बहुत ज्यादा ज्ञानी समझते हैं वह कोरोना वायरस के प्रभाव पर ज्यादा बोल रहे हैं ना की कारणों पर। जबकि इस किस्म की महामारी के लिए सबसे जरूरी है इसके कारणों पर ध्यान दिया जाए और उसके निदान पर ध्यान दिया जाए। प्रभाव पर बातें करने से आतंक ज्यादा फैलता है। प्रधानमंत्री  मोदी ने जो जनता कर्फ्यू की बात कही वह निदान की बात थी ,रोकथाम की बात थी। प्रभाव के आतंक की बात नहीं थी। अभी तक हम जो कुछ भी जानते हैं वह है कि यह बीमारी चीन के बुहान प्रांत से फैली है। कारण है कि  बुहान कानूनी और गैरकानूनी मांस व्यापार का केंद्र भी है। क्या बीमारी उस बाजार से बनती है जहां तरह-तरह के मांसाहार के उत्पादन तैयार होते हैं?  उनमें मोर और चमगादड़ जैसे पक्षी भी शामिल हैं। यहीं से उन जानवरों या पक्षियों से यह बीमारी धीरे-धीरे फैली है और महामारी का रूप ले चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को घरों के भीतर कैद रहने का सुझाव देकर या लॉक डाउन की व्यवस्था करके सबसे पहला काम किया कि बाजारों में मिलने वाले ऐसे खाद्य पदार्थों और इंसान के बीच का संपर्क काट दिया। इससे सबसे बड़ी सफलता यह मिलेगी कि इस तरह के पदार्थों का विक्रय आहिस्ता आहिस्ता बंद हो जाएगा। इसका एक प्रभाव और पड़ेगा कि जो जंगली जानवर हैं पक्षी हैं उनका विनाश रुक जाएगा और इससे पर्यावरण का संतुलन बढ़ेगा। चाइनीज अकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के मुताबिक चीन में वार्षिक तौर पर 57 बिलियन डॉलर का मांसाहार का जायज व्यापार होता है और राष्ट्र संघ के अनुमान के मुताबिक समानांतर गैर कानूनी व्यापार लगभग 23 बिलियन डॉलर का होता है। अगर इसे पूरी तरह आर्थिक मामला माना जाए तब भी एक कठोर की की जरूरत है।
कोरोना वायरस एक तरह से  हमारी इंसानियत के अंत को  आवाज दे रहा है। हम सामाजिक प्राणी हैं मगर इस बीमारी ने हमारी स्वभाविक गतिविधियों को जानलेवा कमजोरी में बदल दिया है हमें अपनी पुरानी दिनचर्या और आदतों को बदलना होगा तौर-तरीकों को बदलना होगा। अपने आचरण को इस महामारी के हिसाब से ढालना होगा। जिस किसी चीज के संपर्क में आ रहे रहे हैं या कोई और आ रहा है वह चीज वायरस का संवाहक हो सकती है ऐसे में जरूरी है कि इसे फैलने से रोका जाए। बड़े माइक्रोबायोलॉजिस्ट कह रहे हैं कि "यह आपके जीवन के  दौर ऐसा है जब आपका एक कदम किसी की जिंदगी बचा सकता है हो सकता है हाथ धोने जैसे मामूली काम किसी एक की दो कि 50 की या फिर हजारों की जिंदगी बचा दे।" हाथ धोते वक्त हमें याद रखना चाहिए अब हमें ऐसे काम करने की आदत डालनी पड़ेगी जो अशिष्ट और अभद्र माने जाते हैं जैसे सोशल डिस्टेंस। इस महामारी के दौर में हमेशा हमारा व्यवहार ही लाखों की किस्मत का फैसला करेगा। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुझाव दिया है के सब लोग मिलकर समाज के लिए अच्छा काम करें अच्छा सोचें जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं उनमें  बड़े पैमाने का कोई दंगा होने की आशंका नहीं है। भय का प्रसार कई बार समाज  करता है , कई बार डर के कारण ऐसा होता है कई बार बेवकूफ यों के कारण ऐसा होता है लालच और लोभ के कारण ही ऐसा होता है। दुनिया खतरनाक नजर आने लगती है तो लोगों का डर बढ़ता जाता है और इस डर से तनाव बढ़ता जाता है। यही कारण है कि बाजार में लोग  खरीदारी कर रहे हैं। बिहेवे रियल साइंस का यह मानना है इस समूह वाद का प्रसार किया जाए ।सबको अपने समुदाय के बारे में सोचने याद दिलाई जाए ताकि लोगों को एहसास सब मिलकर इसका सामना कर रहे हैं और इसके लिए जरूरी है कि भारत सरकार ने जो सुझाव दिया है उसका अनुपालन करे।कम से कम यह दिखे तो कि लोग सड़कों पर नहीं निकल रहे हैं एक दूसरे से दूरी बनाए हुए हैं। समूह वाद का यह एक अच्छा उदाहरण है इसी  करा करोना वायरस के प्रति प्रधानमंत्री के आह्वान का केवल नकारात्मक प्रभाव ही नहीं है जैसा कि कुछ विपक्षी कह रहे हैं हमारे समाज पर कुछ अनदेखे सकारात्मक प्रभाव भी पड़ रहे हैं। सबके घर के भीतर रहने के कारण प्रदूषण स्तर में भारी कमी आई है। प्रदूषण के आंकड़े बताते हैं की वायु प्रदूषण में देश में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की भारी कमी आई है। कारखानों के बंद होने और कारों सड़कों पर नहीं चलने के कारण ऐसा हुआ है। बड़ी संख्या में लोग घर से काम कर रहे हैं आने वाले समय में जब जगहों की कमी होगी तो शायद इस स्थिति को अपनाने उम्मीद जताई जा रही है। यही नहीं धरती को गर्म करने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस भी अच्छे पैमाने पर कम हो रही हैं । पानी की गुणवत्ता में सुधार आया
है लोकप्रिय  डेस्टिनेशन में सड़कें पूरी तरह खाली होने से वहां पानी इत्यादि की जो खपत थी वह भी कम हो गई है। गंगा के प्रदूषण पर काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी में धीरे-धीरे सुधार आ रहा है अगर ऐसा ही रहा कुछ दिनों में पानी बिल्कुल साफ हो जाएगा। ऑफिस या घर में काम करने वाले लोग और भागदौड़ में लगे लोग आमतौर पर अपने आसपास के लोगों को भूल जाते थे या उनसे थोड़ा कट जाते थे। इस वायरस के बढ़ते संक्रमण और इससे मुकाबले के लिए मोदी जी के सुझाव की वजह से लोग अपने घरों में हैं तथा विभिन्न साधनों से करीब आ रहे हैं। रविवार की शाम को थाली, शंख या ताली बजाकर लोगों ने एक दूसरे के प्रति एकजुटता जाहिर की । बशीर बद्र से क्षमा याचना सहित-
     कोई हाथ भी न मिलाएगा
       जो गले मिलोगे तपाक से
       यह नए मिजाज का वक्त है
        जरा फासले से मिला करो


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