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Tuesday, March 24, 2020

लॉक डाउन: शासन और जनता के संबंधों का नया समीकरण

लॉक डाउन: शासन  और जनता के संबंधों का नया समीकरण 

दुनिया में इस समय भय का वातावरण है। चारों तरफ उथल-पुथल मची हुई है और इस उथल-पुथल के बीच एक उम्मीद तथा निश्चिंतता  यही दिखती है कि हमारे देश में प्रधानमंत्री ने जो लोगों को अपने अपने घरों में बंद रहने की सलाह दी और उस सलाह का सख्ती से पालन करने के लिए जो व्यवस्था की है उससे भारत एक सर्वशक्तिमान राष्ट्र का विचार पुनर्स्थापित कर रहा है। विगत कई दशकों से वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजी करण के उपरांत हमारे देश को संकट की इस घड़ी में अपनी सरकार से उम्मीद है तथा शासन के पूर्ण नियंत्रण के हित में नागरिक अपनी व्यक्तिगत आजादी का स्वैच्छिक बलिदान कर रहे हैं। जनता इस बलिदान के माध्यम से सरकार को प्रेरित कर रही है या उससे  मांग कर रही है कि वह निगरानी बढ़ाए तथा उनकी जिंदगी पर नजर रखने की व्यवस्था विकसित करे। सोशल डिस्टेंस, सामाजिक अलगाव और लॉक डाउन अब सबको स्वीकार्य है। सरकार इसके बारे में निर्देश देती है और लोग उस निर्देश को मानने के लिए तैयार रहते हैं। यहां एक तथ्य गौर करने के लायक है कि आखिर नियंत्रण की यह मांग या प्रेरणा का यह स्वरूप क्यों हुआ? स्पष्ट सा उत्तर है, पिछली सरकारों ने मजबूत प्रतिक्रियात्मक रणनीति तैयार नहीं की या कह सकते हैं रणनीतियां तैयार करने में नाकामयाब रही।
     यह केवल भारत में ही नहीं हुआ है। यूरोप के कई देशों में शुरुआती समय में वायरस का संक्रमण और उसका परीक्षण करने के उपाय नहीं निकल पाए थे लेकिन उन्होंने इस दिशा में अपनी पूरी ताकत झोंक दी और कुछ हद तक वायरस के प्रकार को रोकने में सफल रहे। भारत के संसाधन उतने व्यापक नहीं है इसलिए भारत सरकार ने जनता की निगरानी पर अपनी क्षमता बढ़ाने का फैसला किया। यह रणनीति आवश्यक है ,परंतु  इसे अपनाए जाने के साथ ही शासन और समाज के संबंधों की प्रकृति और जन व्यवहार को बदलने में शासन की क्षमता की भूमिका में भारी बदलाव आने की संभावना है। देश अधिक पाबंदियों के लिए स्वयं को तैयार कर है। शासन के सामर्थ्य की नाकामयाबी की पड़ताल करना इसमें महत्वपूर्ण है।   इसी नाकमयाबी के कारण लॉक डाउन लगाना पड़ा है।  यह व्यवस्था अपरिहार्य भी महसूस हो रही है ,क्योंकि यही एक तरीका है जिसके उपयोग से नागरिकों की सलामती की सुनिश्चितता के साथ-साथ सरकार की ताकत भी नियंत्रित रहती है।
        हमारे देश में पिछली सरकारों ने स्वास्थ्य प्रणाली को विकसित करने पर जोर नहीं दिया।  आज वह विरासत की तरह एक दूसरे के सिर पर आती गई। नतीजा यह हुआ कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमारा देश नाकाम रहा और यह नाकामी किसी से छिपी नहीं हमारा स्वास्थ्य ढांचा अपर्याप्त  साधनों वाला है। स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी नहीं है। इलाज की गुणवत्ता खराब है।
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के आंकड़ों के अनुसार अगर कोरोना वायरस के मामलों में वृद्धि जारी रही तो  भारत के ग्रामीण इलाकों से आने वाले के लिहाज से हमारे अस्पतालों में पर्याप्त सुविधा नहीं है। यहां तक कि बेड भी नहीं है। रिपोर्ट बताती है कि देश में करीब 26000 सरकारी अस्पताल हैं। इनमें से 21000 ग्रामीण क्षेत्रों में और 5000 शहरी इलाकों में। मरीज और उपलब्ध बेड की संख्या अनुपात बेहद चिंताजनक है। हर सत्रह सौ मरीज पर एक बेड है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह अनुपात 3100 है।  यह अनुपात बेहद चिंताजनक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक केवल बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 10 करोड़ लोग रहते हैं हर बेड पर करीब 16000 मरीज हैं।
ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली की मौजूदगी में वायरस के प्रसार के नियंत्रण में लॉक डाउन अधिक सरल और सक्षम उपाय दिख रहा है । यही कारण है कि हमारे देश की जनता ने लॉक डाउन की दिशा में आगे बढ़ने की सरकार की अपील को पूरा समर्थन दिया है। लेकिन विडंबना यह है कि हमारे देश में जहां जनसंख्या का घनत्व बहुत ज्यादा है सोशल डिस्टेंसिंग को कायम रखना संभव नहीं है।  हर दिन संक्रमण के बढ़ते मामले हमारी स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने का आह्वान कर रहे है। अगर स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत नहीं किया गया तो मौजूदा प्रयास पर्याप्त नहीं होंगे। यहां यह बता देना जरूरी है कि इन  नाकामियों के बावजूद हमारा शासन मिशन मोड में शानदार काम कर रहा है। शिक्षा स्वास्थ्य जैसे बुनियादी प्रशासनिक कार्य करने में निरंतर नाकाम रहने वाला शासन अच्छी तरह चुनाव करा सकता है और इसे देखते हुए एक संबंधित मिशन मोड के रूप में पहल करना असंभव नहीं है।
सरकार को तीन उपाय करने की जरूरत है सबसे पहले इस वायरस के परीक्षण की आक्रामक व्यवस्था । आईसीएमआर धीरे-धीरे परीक्षण संबंधी प्रोटोकॉल को बदल रहा है और इसमें निजी क्षेत्र को भी शामिल किया जा रहा है। लेकिन इस दिशा में और भी कई काम करने जरूरी है । दूसरा उपाय है, सरकार सुविधाओं को उन्नत करते हुए बिस्तरों की संख्या बढ़ाकर और जरूरी उपकरणों की खरीद कर सुनिश्चित करे। अस्पतालों को तैयार रखने पर जोर दे सकती है इसके लिए लालफीताशाही कम करने और खर्चे में तेजी लाने की आवश्यकता है। तीसरा उपाय जो बहुत महत्वपूर्ण है वह मानव संसाधन। हमारे देश में डॉक्टरों की संख्या पर्याप्त नहीं है ।रूरल हेल्थ  स्टैटिसटिक्स  के मुताबिक  ग्रामीण भारत में 26000 लोगों पर  एक डॉक्टर है। डब्ल्यूएचओ के नियम के अनुसार  डॉक्टर और मरीजों का  यह अनुपात हर एक हजार मरीज पर एक डॉक्टर  होना चाहिए।  हमारे देश में  रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टरों की संख्या लगभग  1.1 करोड़ है लेकिन देश के कई हिस्सों में  स्नातक डॉक्टरों की क्षमता का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है।  उपायों को कारगर बनाने के लिए राजनीति को त्यागना पड़ेगा। केंद्र राज्य संबंध के तंत्र को मजबूत करना होगा। इस मामले में केंद्र सरकार को रणनीति विशेषज्ञता और मानव संसाधन की साझेदारी को लेकर समन्वयक की भूमिका निभानी होगी। इस महामारी ने शासन की भूमिका और नागरिकों के साथ उसके संबंधों की ओर हमार ध्यान आकर्षित किया है। अब भारत में शासन का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा आज हम किस तरह के विकल्पों को अपनाते हैं और यह विकल्प स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था में हमारा विश्वास कायम करने का है ।


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