प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सुझाया गया जनता कर्फ्यू बेहद सफल हुआ यह बड़ा सुखद है। बीमारी और समाज के प्रति लोग सरकार की गंभीरता पर भरोसा करने लगे हैं। वरना विपक्षी दलों का यह जुमला था सरकार यह जो कुछ भी कर रही है वह अपने लाभ के लिए कर रही है। पहला अवसर देखने को मिला है जब लोगों ने सरकार की बात पर भरोसा किया यहां तक कि महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन, असहयोग आंदोलन तथा नमक आंदोलन से भी लोग इस तरह नहीं जुड़े थे। बेशक उसके अपने कारण होंगे, लेकिन इस बार कोरोना के खिलाफ आंदोलन ने लोगों में एकजुटता पैदा कर दी है।
कोरोने का आतंक दुनिया भर में फैल चुका है। इसके दो कारण हैं पहला की दुनिया बहुत छोटी हो गई है पूरी वसुधाथा कुटुंब बन गई है और दूसरा लोगों में सरकार के प्रयासों के प्रति भरोसा पैदा हो रहा है। गुरुवार को प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बिल्कुल सही कहा कि आज कोई भी देश एक दूसरे की मदद नहीं कर सकता। हमें अपनी मदद खुद करनी पड़ेगी। प्रधानमंत्री की यह बात बिल्कुल सही है । हमारा भारत इस मामले में अकेला है और देश की स्थिति अत्यंत जटिल है । पीएम ने अपने संदेश में कहा था डॉक्टरों ,अस्पताल के कर्मचारियों, सरकारी अफसर आदि की तरह मीडिया भी आवश्यक सेवाओं में शामिल है। प्रधानमंत्री द्वारा मीडिया को आवश्यक सेवाओं में शामिल किया जाना एक सुखद बदलाव है ऐसी स्थिति में मीडिया को यकीन होना चाहिए की वह महत्वपूर्ण आवश्यक सेवाएं देता है। मीडिया का नियति बोध सब कुछ इस आस्था से निकलता है। उसकी अहमियत है। सत्ता से मीडिया का मतभेद है और हमेशा रहेगा यह लोकतंत्र में होता है।
इसी स्तंभ में एक बार बताने की कोशिश की गई थी की कोरोना वायरस ने दुनिया के करोड़ों लोगों का जीने का अंदाज बदल दिया है। वह जिस तरह की जनसंख्या को प्रभावित कर रहा है उसे भारी बदलाव आ रहा है। यही नहीं वायरस ने इतिहास बदल दिया है। इसके पहले भी बीमारियों ने इतिहास बदला है। बीमारियों की वजह से सल्तनतें तबाह हो गई हैं। बीमारियों की वजह से साम्राज्यवाद का विस्तार ही हुआ और इसका दायरा भी सिमटा है। यहां तक कि बीमारियों के कारण दुनिया के मौसम में भी उतार-चढ़ाव आया है। इतिहास के पन्ने पलटें और इतिहास बदलने के कारणों का विश्लेषण करें तो पता चलेगा की 14 वीं शताब्दी के पांचवें और छठे दशक में प्लेग का यूरोप में दिल दहलाने वाला तांडव हुआ। इस बीमारी से यूरोप की एक तिहाई आबादी काल के गाल में समा गई । लेकिन इतनी मौतों के बाद भी यूरोप के कई देशों के लिए बीमारी वरदान साबित हुई। कई देशों ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु के बाद खुद को हर लिहाज से इतना आगे बढ़ाया कि आज वह दुनिया के अमीर मुल्कों में गिने जाते हैं। किसानों के पास जमींदारों से सौदेबाजी की क्षमता बढ़ गई। परिणाम - सामंतवाद व्यवस्था टूटने लगी। किसान जमींदारों की कैद से आजाद होने लगे।इस बदलाव ने मजदूरी पर काम करने की प्रथा का जन्म दिया। इसके फलस्वरूप पश्चिमी यूरोप ज्यादा में धनी व्यापारी और नगदी आधारित अर्थव्यवस्था की शुरुआत हो गई। यही नहीं, समुद्री यात्राओं फिर भी शुरुआत हुई। तकनीक में निवेश होने लगा । अर्थव्यवस्था की आधुनिक काल में नई-नई तकनीकों विकसित करने की राह खुली ।
अनुमान है कि अगले 3 महीनों में वायरस के मामले कमजोर हो जाए ।जड़ से खात्मा नहीं माना जा सकता । इसमें वक्त लगेगा। यही नहीं इस तरह से सब कुछ बंद भी तो नहीं हो सकता है । इससे होने वालाहै आर्थिक नुकसान विध्वंसकारी हो सकता । इस वायरस का खात्मा कब होगा या पाबंदियां हटाते हैं यह लौटेगा या मामले तेजी से बढ़ेंगे यह भी तय नहीं है। सरकार का उद्देश्य और समस्या है कि इससे कैसे पार पाया जाय। यह वायरस इस समय दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है। खासकर डॉक्टरों के लिए। क्योंकि डॉक्टर एक अक्खड़ इंसान और नियम तोड़ने वालों यह दिलचस्प मिश्रण होते हैं। वे किताबों में नियम बनाते हैं और इलाज के दौरान तोड़ देते हैं । लेकिन तब भी हर डॉक्टर की कोशिश होती है इसका पीड़ादायक नतीजा ना हो। वैसी स्थिति का क्या हो जिसके बारे में अभी तक किसी ने देखा या सुना नहीं है । डॉक्टरों को यह नहीं मालूम है इससे कैसे निपटा जाए। लोग कैसे बचें। लोगों को क्वॉरेंटाइन में भेजने की बात होती है लेकिन इसके लिए अपने गुण दोष हैं। कोरोना वायरस का सबसे पहला केस चीन में 17 नवंबर 2019 पाया गया था और चीनी डॉक्टरों ने इसलिए चेतावनी देनी शुरू कर दी थी, लेकिन चीनी सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी और उनको बाहर नहीं जाने दिया। चेतावनी देने वाले डॉक्टरों को गिरफ्तार कर लिया गया। चीन के लोग कोरोना वायरस से अनजान अपने काम में लगे रहे। 2 महीनों के बाद चीन की सरकार को यह महसूस हुआ यह बीमारी फैल रही है और 22 जनवरी 2020 और चीनी सरकार ने औपचारिक तौर पर आपात स्थिति की घोषणा की। तब तक देर हो चुकी थी। यद्यपि यूरोप की राजनीतिक स्थिति अलग है। पश्चिम की राजनीतिक स्थिति वैसी नहीं जैसी चीन की है और वहां क्वॉरेंटाइन ज्यादा जरूरी है। इधर भारत में खुद को क्वॉरेंटाइन में रखने के लिए सरकार ने यह तरीका अपनाया कि घर के भीतर ही रहें वहीं से काम करें घर से बाहर ना निकलें। रविवार को जनता कर्फ्यू है यह बता दिया। इस पर सरकार का साथ जनता दे रही है। घर के भीतर रहने या होम क्वॉरेंटाइन का एक विशेष फायदा भी है कि ऐसी स्थिति में लोगों को मनोवैज्ञानिक तनाव कम होता है। लेकिन शोध से यह देखा गया है कि अगर इस तरह की स्थिति में सही सही जानकारी लोगों तक पहुंचती है तो मनोवैज्ञानिक तनाव बिल्कुल नहीं होता है। मोदी जी ने तनाव विहीन एकाकीपन का यह तरीका अपनाकर देश की बड़ी आबादी के लिए जहां कल्याण का काम किया है वही देश में मेडिकल सुविधाओं के अभाव को भी खटकने का अवसर नहीं दिया है।
Sunday, March 22, 2020
जनता कर्फ्यू : मनोवैज्ञानिक तनाव से बचाने का अच्छा तरीका
जनता कर्फ्यू : मनोवैज्ञानिक तनाव से बचाने का अच्छा तरीका
Posted by pandeyhariram at 6:44 PM
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