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Monday, March 2, 2020

जो दिखता है वह कारण नहीं है

जो दिखता है  वह कारण नहीं है

दिल्ली में जो दंगे हुए वह राजधानी में इस सदी के सबसे बड़े सांप्रदायिक दंगे कहे जा सकते हैं। लेकिन अगर इसका अपराध वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो बड़ी खतरनाक साजिश नजर आ रही है। यह केवल नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच टकराव नहीं है। इसके पीछे एक बहुत बड़ी साजिश की आशंका महसूस हो रही है।  इसमें जो सबसे महत्वपूर्ण है वह है दिल्ली के कुछ इलाकों में बहुत व्यापक जनसांख्यिकी परिवर्तन हो रहा है और वहां हिंदुओं की हैसियत से घटती जा रही है।  आज हालात यह है कि वे उन क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों की तरह हो गए हैं। आने वाले दिनों में हो सकता है और व्यापक गड़बड़ियां हों।  यदि सरकार को इसे रोकना है तो इस स्थिति को बदलना होगा।
    पूर्वोत्तर दिल्ली की हिंसा के मूल में जो कारण है वह है मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों पर प्रतिक्रिया। इन कदमों में अनुच्छेद 370 को हटाया जाना, तीन तलाक पर रोक के लिए कानून बनाया जाना  , सीएए एवं एनआरसी लागू किया जाना और अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला।  जिन इलाकों में व्यापक जनसांख्यिकी परिवर्तन हुआ है उन इलाकों में यह अफवाह बड़े आराम से फैलाई जा रही है कि मुसलमानों के विरुद्ध  यह सरकार साजिश कर रही है। एक और दिलचस्प तथ्य सामने आता है कि आरोप है कि पुलिस मौके पर सक्रिय नहीं हुई । अगर, पुलिस सक्रिय हुई होती तो यह कहा जाता है  पुलिस ने जुल्म किया है। पुलिस के बल पर शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को दबाया जा रहा है। प्रदर्शनकारियों का दमन किया जा रहा है। दिल्ली देश की राजधानी है और दिल्ली कई मामलों में अत्यंत संवेदनशील भी है। अगर पुलिस कार्रवाई शुरू होती तो उस दिन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत में थे और इस मामले को इतना तूल दिया जाता कि विदेशी मेहमान के सामने यह एक नया शिगूफा बन जाता। सरकार ने बहुत ही समझदारी का परिचय दिया और सिर्फ पुलिस की खुफिया विंग को ही सक्रिय रहने का सुझाव दिया । विदेशी अतिथि के जाते ही डोभाल मैदान में उतर आए उसके बाद सब कुछ ठीक हो गया।
     जामिया मिलिया इस्लामिया और उसके आसपास के इलाके में हिंसा की बात हो या शाहीन बाग में धर्म की घटना हो या फिर पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले लोगों की गतिविधियां हों यह सारे विरोध प्रदर्शन वस्तुतः कट्टरपंथी मुसलमानों के एक वर्ग की हताशा की अभिव्यक्ति हैं।  ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उनकी राजनीतिक पकड़ या उनका उनका राजनीतिक मूल्य कम होता जा रहा है क्योंकि यह सरकार तुष्टिकरण की नीति पर नहीं चल रही है। उन्हें इस बात की मूल  परेशानी है कि जब से भाजपा का शासन हुआ है उसके बाद से तमाम पार्टियों के अधिकांश नेताओं को हिंदुत्व के प्रतीकों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। यहां तक कि राहुल गांधी जैसे लोग भी यज्ञोपवीत धारण कर मंदिर- मंदिर माथा टेक रहे हैं । राजनीतिक दलों का इफ्तार पार्टियों में पहले आना जाना हुआ करता था अब उनमें इनकी मौजूदगी  बहुत तेजी से कम हो रही है। इससे महत्वाकांक्षी अल्पसंख्यक नेताओं के ईगो को आघात पहुंच रहा है। पहले इनके साथ एक विशेष तरह का राजनीतिक सलूक हुआ करता था लेकिन अब जिस स्थितियां बदली हैं उनसे यह संकेत मिल रहा है देश की राजनीति और नीति नियामक तंत्र में उन्हें वह दर्जा नहीं मिलेगा उन्हें अन्य समुदायों पर तरजीह नहीं दी जाएगी। कुछ लोग जो खुद को इस समुदाय का नेता मानते हैं वह इस हकीकत को पचा नहीं पा रहे हैं और यही कारण है कि दिल्ली की सड़कों पर तबाही का मंजर दिखाई पड़ने लगा।
        यह घटना है जो उग्र वामपंथियों और कट्टर इस्लाम वादियों इस खतरनाक सांठगांठ के चलते हैं बनती है और इस राक्षसी स्वरूप में दिखाई पड़ रही है खुफिया विभाग में इस बात की पुष्टि की है की अर्बन नक्सल समर्थित इस्लामी कट्टरपंथी  गिरोह ने इस मामले को हवा देने के लिए शहर के विभिन्न इलाकों में हमले की योजना बनाई थी। अगर घटनाओं  का चरित्र  ठीक से देखें तो स्पष्ट पता चलता है कि यह स्वतःस्फूर्त नहीं थी। बल्कि, बाहर के तत्वों और प्रवासियों की इसमें भूमिका थी। यह एक सुनियोजित अभियान था और इस हिंसा को भड़काने में बाहरी लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। दंगाइयों ने पुलिस अधिकारियों को , रिहायशी इलाकों को व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को और शिक्षण संस्थानों को जिस तरह से निशाना बनाया उसे साफ पता चलता है कि हमले के लक्ष्य पहले से चुन दिए गए थे जिस तरह से हथियारों का उपयोग हुआ उससे भी लगता है कि हमलावर बहुत तैयारी करके आए थे। " द पॉलिटिकल लॉजिक आफ एथेनिक वायलेंस" में स्पष्ट उल्लेख है कि आबादी के परिवर्तन के बाद हर जगह गड़बड़ी होती है पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली की आबादी में व्यापक परिवर्तन हुआ है और यह परिवर्तन हिंसा का एक प्रमुख कारक है । गौर करें, हिंसा ऐसे इलाकों में हुई है जहां हिंदुओं की संख्या अल्पसंख्यक के रूप में है। जिन इलाकों में सी ए ए के विरोध में प्रदर्शन हुआ है उन इलाकों का जनसांख्यिकी स्वरूप भी उसी तरह का का है । दिल्ली के कई स्थानों पर आबादी का प्रोफाइल बिल्कुल बदल चुका है। वहां बहुसंख्यक समुदाय नहीं है और उनकी जगह अल्पसंख्यक समुदाय से फस गई है और समय के अनुसार यह इलाके समुदाय विशेष के इलाकों में बदल गए हैं जहां कट्टरपंथी तत्वों को शरण मिलती है और हिंसा फैलाने के लिए एक माहौल मिलता है। जब तक इस बुनियादी मसले से नहीं निपटा जाए तब तक दिल्ली में हिंसा इसी तरह सुलगती रहेगी।


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