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Saturday, January 14, 2017

हर 10 मिनट पर 3 लोग मरते हैं

हर 10 मिनट पर 3 लोग मरते हैं

भारत में इस समय रोड सुरक्षा सप्ताह मनाया जा रहा है. इस दौरान सावधानी से वहां चलाने के लिए जागरूकता पैदा की जाती है. सड़कों पर तरह तरह के नारे लिखे जाते हैं. डब्लू एच ओ के आंकड़ों के मुताबिक़ दुनिया में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में 12 लाख लोग मारे जाते हैं और 5 करोड़ लोग आहत होते हैं.पश्चिम बंगाल रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाई वे मन्त्रालय के आंकड़े के मुताबिक़ राज्य में 2016 में सड़क दुर्घटनाओं 5000 लोग मारे गए थे. यह संख्या  सड़क दुर्घटनाओं में देश भर में मृत लोगों में चौथे नंबर पर है.जबकि   नए राष्ट्रीय  आंकड़े के मुताबिक भारत में 2015 में हर दस मिनट पर 9 सड़क दुर्घटनाएं होती है और उनमे तीन लोग मारे जाते हैं. विगत चार वर्षों में सड़क दुर्घटनाओं में 9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो ( एन सी आर बी ) द्वारा जारी  सड़क दुर्घटनाओं और आत्महत्याओं के आंकड़ों के मुताबिक़ आंकड़ों के मुताबिक़ 2015 में सडक दुर्घटनाओं में 1,48,000 लोग मरे गए जबकि 2011 में इन घटनाओं में मरने वालों की संख्या 1,36,000  थी . भारत में कुल परिवहन सम्बन्धी मौतों में मरने वालों में अकेले 84 प्रतिशत लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते है साथ ही देश में कुल मौतों में सड़क दुरेघत्नाओं में मरने वालों का अनुपात 43 प्रतिशत है. अन्य परिवहन सम्बन्धी मुतें रेल दुर्घटनाएं (15 प्रतिशत) और रेल क्रस्सिंग पर होने वाली मौतें (2 %) शामिल हैं. कदों के मुताबिक़ 2015 में 4,64,000 सड़क दुर्घटनाएं हुईं थीं जो पिछले साल के मुकाबले 3% ज्यादा थीं. पिछले वर्ष 4,50,000 सड़क दुर्घटनाएं हुईं थीं. सड़क दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं हैं. यहाँ आलोच्य अवधी में 18,407 लोग मरे जबकि सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाएं तमिल नाडु में हुईं यहाँ 2015 में 69,011 घटनाएं हुईं. पूर्ववर्ती योजना आयोग द्वारा 10 वीं योजना के लिए गठित रोड ट्रांसपोर्ट वर्किंग ग्रुप के अध्यान के मुताबिउक  देश में सड़क परिवहन से होने वाली आय का अनुपात सकल घरेलू  उत्पाद के कुल आय का 4.8 प्रतिशत है जबकि देश इन मौतों से सकल  घरेलू उत्पाद में 1.3 % की हानि   उठाता है. देश में सड़क सुरक्षा रणनीति गति सीमा , हेलमेट पहने जाने , सीट बेल्ट बाँधने और शराब पीकर गाडी नहीं चलाने सम्बन्धी कड़े कानूनों के बावजूद भारत में , विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, गति सीमा भंग करने वाली 10 दुर्घटनाओं में मरने वालों की तादाद 3 होती है जबकि मोप्टर साइकिल चलाते समय हेलमेट नहीं पहनने से होने वाली घटनाओं में मरने वालों की संख्या 40 प्रतिशत है. शराब पीकर गाडी चलाने और सीट बेल्ट नहीं बंदने के बाद होने वाली दुर्घटनाओं में मृतानकों का अनुपात भी यही है. दोपहिया वहां का उपयोग करने वाले लोग सबसे ज्यादा जोखिम में होते हैं. 2015 में इससे 45,540 लोग मरे यह कुल दुर्घटनाओं का 29 प्रतिशत था जबकि ट्रक दुर्घटनाओं में 28,910 ( 19%) और कर दुर्घटनाओं में 18,506 (12 %) लोग्फ़ मारे गए. दो पहिया वाहनों की दुर्घटनाओं मे  सबसे ज्यादा लोग तमिल नाडू (3 ,668 ) तथा  महाराष्ट्र में (3,146) लोग मारे गए. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा लोग ट्रक तथा कार दुर्घटनाओं में मारे गए. यहाँ इन दुर्घटनाओं में क्रमशः 5,720 और 2,135 लोग मारे गए. पैदल चलने वालों में सबसे ज्यादा लोग महाराष्ट्र में मारे गए. यहाँ 1,256  (17%) लोग मरे गए. देश में कुल सड़क लम्बाई के 1.51% लम्बाई राज पथ ( नेशनल हाई वे ) की है जबकि 2015 में इस पर कुल दुर्घटनाओं का 28% दुर्घटनाएं होती हैं  जिसमें 33 % मौतें  होती हैं. प्रांतीय हाई वे की कुल लम्बाई देश के सड़कों की कुल लम्बाई के महज 3% है जबकि इन्ही सड़कों पर कुल दुर्घटनाओं की 25 प्रतिशत दुर्घटनाएं होती हैं और जिसमें कुल मौतों के 28 प्रतिशत लोग मारे जाते हैं. इन दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा लोग अति तेज रफ़्तार के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं , इनका अनुपात 41% है जबकि लापरवाही से वहाँ चलाने से 32% , खराब मौसम से 4% और यांत्रिक गड़बड़ी से 3% लोग मारे जाते हैं. तमिल नाडू और महाराष्ट्र सबसे लोग अति तेज रफ़्तार से वहां चलाने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं इनका अनुपात क्रमशः 15% और 12% है. जबकि यू पी में सबसे ज्यादा लोग लापरवाही से गाडी चलाने से होने वाली दुर्घटनाओं में मरते हैं हैं. इनका अनुपात 17 प्रतिशत है. देश के 53 शहरों में दिउल्ली और जयपुर सबसे ज्यादा  घातक हैं. इन दुर्घटनाओं का अगर विश्लेषण करें तो पता चलता है कि देश में परिवहन के मामले में जागरूकता का अभाव है. 

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