कब तक इस तरह मरते रहंगे निर्दोष यात्री
शनिवार की आधी रात को विजयनगरम के कुनेरु के समीप हीराकुंड एक्सप्रेस दुर्घटना ग्रस्त हो गयी।इसमें 39 लोग मारे गये। राहत और बचाव कार्य चल रहा है। इस आलेख के लिखे जाने तक घटना के कारणों का पता नहीं चल पाया है पर तोड़ फोड़ की आशंेका से इंकार नहीं किया जा सकता है। विगत नौ दिनों में यह तीसरी बड़ी रेल दुर्घटना थी ओर लगभग सबी एक ही तरह की घटनाएं हुईं हैं। इसके पहले कानपुर के पास ट्रेन दुर्घटना में 150 लोग मारे गये थे। एक तरफ सरकार बुलेट ट्रेन चलाने और रेलवे को अंतरराष्ट्रीय स्वरूप देने की योजना बना रही है और दूसरी तरफ औसतन हर महीने ट्रेन दुर्घटनाएं हो रहीं हैं। आखिर क्यों ऐसा हो रहा है? हर बार ट्रेनें पटरी से उतर क्यों जाती हैं। कई बार ऐसा होता है कि दौड़ती टैन के सामने पटरी पर कोई वस्तु हो तो ट्रेन का इंजन वहां से उछल सकता है और रफ्तार की इनर्शिया की वजह से ट्रेन पटरी से उतर सकती है। पटरी अगर टूट जाय तब भी ऐसा हादसा हो सकता है। यही नहीं ट्रेन में लगने वाले वैकुअम ब्रेक के शूज अगर अच्छे नहीं हैं तो इससे पहिये के कटने की घटना होती है और पहिया असमान हो जाता है लिहाजा तेज रफ्तार ट्रेन पटरी से कूद सकती है। कई बार अपराधी तत्व पटरियों की तोड़ फोड़ कर देते हैं और ट्रेन पटरी से उतर जाती है। यहां भी ट्रेनों के जर्क करने की शिकायत आयी थी। सुनकर हैरत होती है कि 2014- 15 में 131 रेल हादसे हुये जिसमें 161 लोग मारे गये थे और 60 प्रतिशत दुर्घटनाएं ट्रेनों के पटरी से उतरने के कारण हुईं। भारत में फिलहाल 1 लाख 15 हजार किलोमीटर रेलवे ट्रक हैं। रेल मंत्रालय ने 2015 के अपने मूल्यांकन में बताया है कि देश में 4.5 हजार किलो मीटर पटरियों की मरम्मत की जरूरत है। इसमें भारी राशि लगेगी। यह कितना क्रूर निर्णय है कि सरकार को यह मालूम है कि लगभग 4 प्रतिशत लाईनें बेहद खराब हो चुकी हैं पर उसकी मरम्मत नहीं हो पा रही है। यह सर्व विदित है कि गर्मियों में पटरियां फैलती हैं और सर्दियों में संकुचित होती हैं। इससे निपटने की कोई व्यवस्था नहीं हो पा रही है। इतनी बात हो तो कोई बात नहीं। इसके अलावा खराब डब्बों को बदलने की भी जरूरत है लेकिन कोई काम नहीं हो पा रहा है। सुधार के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है वह बिल्कुल दिखाऊ है। स्टेशनों पर वाई फाई लगेगी , बुलेट ट्रेन चलेगी और ना जाने क्या क्या होगा पर सुरक्षा ठीक से नहीं होगी, यात्रियों भरी ट्रेने मौत का पैसेंजर बनकार दौड़ती रहेंगी। पिछली दुर्घटनाओं जांच रपट अब्तक पूरी नहीं है और आदा अदारी रपटों से तो यही पता चालता है कि दुर्घटनाओं का मूल कारण ट्रेनों का पटरियों से उतरना है। अभही तक जो खबर मिली है उसके मुताबिक पटरियों में तोड़फोड़ की गयी थी। रेल प्रशासन कारणों को जानते हुये भी उसे रोक नहीं पा रहा है। सरकार जानती है कि पटरियां काटी जाती हैं पर मजबूर है। उसके सारे तंत्र इस बात का पता लगाने में कामयाब नहीं हो पाते हैं कौन लोग है जो इतना जघन्य अपराध कर रहे हैं। मसलन , पिछली बार कानपुर में जो दुर्घटना हुयी थी उसका कारण था पटरी को काटा जाना। जांच में पटरी तीन मिलीमीटर काटी गयी मिली थी। जो लोग बात को समझते हैं वे अच्छी तरह जानते हैं कि जिस कार्बन स्टील की पटरियां बनती हैं वे इतनी कठोर होती हैं कि उन्हें काटने के लिये आधुनिक साजो सामान और ट्रेनिंग चाहिये। ऐसे लोगों को खोज लेना कोई मुश्किल काम नहीं है। केवल रेलवे के आधुनिकीकरण की बात हो रही है लेकिन उसके लिये अलग से पैसे नहीं मिलते। खास कर जो रूट आर्थिक तौर पर लाभदायक नहीं हैं उनके लिये बिल्कुल नहीं मिलते। जबतक पुराना सिस्टम हटाया नहीं जायेगा और नयी प्रणाली नहीं लागू की जायेगी तबतक हादसात रुक नहीं सकते हैं। यही नहीं देश बर में दस हजार से ज्यादा मानव रहित समपार हैइनमें से कई अत्यंत दूरदराज के इलाके में हैं जहां उनपर जानवर घूमते हैं। इधर रेलवे के पास फंड की भारी कमी है और और राजस्व में भी गिरावट आयी है। सरकार बुलेट ट्रेन चलाने का प्रचार कर रही है , इसके लिये भारी धन की जरूरत है। रेलवे के मुताबिक बुलेट ट्रेन के लिये 1 किलोमीटर पटरी बिछाने में 20 हजार करोड़ खर्च लगते हैं। रेलवे की हालत यह है कि जो मजिदा पटरियां हैं उन्हीं की हिफाजत नहीं हो पा रही है। हर हादसे के बाद रेल प्रशासन अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ने में लगा रहता है और हमारे राजनीतिज्ञ जांच का आदेश देकर चल देते हैं। फिर सबकुछ सामान्य हो जाता है। यह कोई रहस्य नहीं है। सारा देश इसे जानता है। आखिर पूर्ववर्ती जाच से रेल अदिकारी क्यों नहीं सबक ले पा रहे है।
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