यू पी में चुनावी नाटक का नया अंक शुरू
उत्तर प्रदेश में चुनावी नाटक का पहला अंक कांग्रेस- समाजवादी पार्टी में गठबंधन के साथ ही चुनावी नाटक का पहला अंक खत्म हो गया और दूसरे अंक का मंचन आरंभ हो गया। अब वहां आशा है कि भाजपा से दो तरफा जोर आजमाइश होगी। रविवार की शाम लखनऊ एक होटल में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में दोनों दलों के प्रदेश अध्यक्षों – राज बब्बर और नरेश उत्तम पटेल - ने इस गठबंधन की घोषणा की और कहा कि सत्तरूढ़ समाजवादी पार्टी 298 सीटों पर तथा देश की ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस 105 सीटों पर अपना जोर आजामायेगी। दोनों दलों ने कहा कि इस गठबंधन का उद्देश्य ‘भाजपा की तरह अलगाववादी ताकतों को चुनौती देना और जाति एवं धर्म की राजनीति से मुक्त शासन प्रदान करना है।’ पहले आयोजन सपा के मुख्यालय में होने वाला था पर कांग्रेस इसके लिये तैयार नहीं हुयी। चर्चा है कि देश के मशहूर चुनावी समरनीति विशेषज्ञ प्रशांत किशोर दोनों के लिये व्यूह रचना करेंगे ओर चुनावी जंग का प्रबंधन करेंगे परंतु प्रशांत निशोर ने इसकी पुष्टि नहीं की हैं। पंजाब् और उत्तर प्रदेश में चुनाव के लिये कांग्रेस ने प्रशांत किशोर को अनुबंधित किया है लेकिन वेलिखनऊ में दिखे नहीं। संभवत: अमर सिंह के नजदीकी होने के कारण उन्हें परदे पर नहीं लाया गया। गठबंदान को अंतिम रूप देने के लिये कांग्रेस की तरफ से सोनिया गांधी , प्रियंका गांधी और गुलाम नबी आजाद ने वार्ता की ओर सपा की ओर से अखिलेश यादव और आजम खान थे। बातचीत शनिवार से ही चल रही थी पर सपा सौ सीट ही देने को तैयार थी इसी से अड़ंगा फंसा हुआ था। रविवार की शाम अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी का घोषण पत्र जारी किया जिसमें मतदाताओं को कई प्रलोभन दिये गये मसलन गरीब महिलाओं को प्रेशर कूकर, सक्षा 9 ओर 10 की लड़कियों को सायकिल, नौजवानों को स्मार्टफोन, स्कूली बच्चों को पावडर दूध और देसी घी तथा 1 करोड़ लोगों को हजार रुपया पेंशन। इस घोषणा में कई बातें स्पष्ट नहीं हो सकी हैं। मसलन सपा ने यह नहीं बताया कि कांग्रेस किन किन सीटों पर चुनाव लड़ेगी और उन दस सीटों का क्या होगा जिस पर पहले से ही सपा ने उम्मीदवार खड़े कर दिये हैं और वहां से कांग्रेस के विदायक पिछले चुनाव में निर्वाचित हुये थे। ये दस सीटें हैं, मथुरा , बिलासपुर, किदवई नगर, खुरजा, स्याना, हापुड़, स्वार, गनगोह, शामली और प्रयागपुर। साथ ही अमेठी और रायबरेली संसदीय क्षेत्र के 10 विधानसबा क्षेत्रों से सपा के विधायक हैं। सपा की ओर से पटेल ने गठबंदान की घेषणा की और कहा कि अखिलेश यादव को दुबारा मुख्य मंत्री बनाने के लिये सभी प्रयास किये जायेंगे। उन्होंने पार्टी के सभी कार्यकर्त्ताओं से अपील की कि वे इस बंधन को विजयी बनाने के लिये प्रयास करें। दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से राज बब्बर ने सभी समान विचार वाले लोगों तथा बुद्धिजीवियों से कहा कि यू पी के विकास के लिये वे गठबहंधन को विजयी बनायें। कांग्रेस ने अपने प्रचार ने कहा था कि ’27 साल यूपी बेहाल’ , इस नारे में वे साल भी शामिल थे जिसमें सपा का शासन था। लेकिन राज बब्बर ने इस पर पूछे गये सवालों को टाल दिया। इस गठबंधन का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरा समर्थन किया है ओर उसे विजयी बनाने के लिये हर सहायता का आश्वासन दिया है। बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव ने भी इस गठबंधन का स्वागत किया है।
जबसे इस गठबंधन की चर्चा चल रही थी तब से ही मीडिया में तरह तरह के कयास लगाये जा रहे कि कैसे ये दोनों मिल कर यू पी में भाजपा धूल चटा देंगे। सब 2015 के महागठबंधन का उदाहरण दे रहे थे। लेकिन उत्तर प्रदेश का सामाजिक विश्लेषण कुछ दूसरा ही कहता है। यह हकीकत है कि यू पी में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है और कहते हैं कि सपा का उनपर कब्जा है। अखिलेश के युवा करिश्मा के बावजूद सच तो यह है कि यू पी में सपा को 30 प्रतिशत से ज्यादा वोट कभी नहीं मिले। 2004 के लोकसभा चुनाव में जब इसने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया था तो उसे 27 प्रतिशत वोट मिले थे। उधर कांग्रेस के वोट अंश गिरते जा रहे हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव में इसे 18.25 प्रतिशत वोट मिले थे जो 2012 के विधान सभा चुनाव में 12 प्रतिशत पर आ गये ओर 2014 के लोकसभा चुनाव में यह 7.5 प्रतिशत पर आ गये। यही नहीं बहुजन समाज पार्टी भी यू पी में एक सियासी ताकत है। जब वहां भाजपा की लहर चली थी तब भी उसे लगभग 20 प्रतिशत वोट मिले थे। अब अगर बसपा का वोट वही रहता है तो अखिलेश को कांग्रेस के 6 प्रतिशत मतों का लाभ होगा।
लेकिन बिहार की तरह यहां भी भाजपा के लिये सबसे बड़ी समस्या है कि अभी तक इसके पास कोई ऐसा नेता नहीं है जिसे वह मुख्य मंत्री के रूप में पेश करे। बिना मुख्यमंत्री के ‘फेस’ के वह चुनाव में उतरी है। यही हाल बिहार में भी हुआ था। दूसरा नोटबंदी का असर भी समस्या पैदा कर सकता है। यही नहीं मोदी की छवि को भी यू पी में आात पहुंचा है। वे सपने बेचने में माहिर हैं। उन्हें एक ऐसे नैतिक लोद्धा के रूप में देखा गया था जो देश को बदल कर रख देगा। 2014 में उनकी इसी छवि ने विजय दिलायी थी। उन्होंने 2014 जो सपने बेचे थे उसके मुताबिक यही समझा गया था कि वे रोजगार के असर बढघ्येंगे जो तेज आर्थिक वृद्धि से ही संभव था। दूसरे वे साफ सुथरा शासन प्रदान करेंगे। अब सपनो को हकीकत में नहीं बदल पाने के कारण उनकी लोकप्रियता गिरी है।
यही नहीं बसपा के वोट अंश भी कम होते दिख रहे हैं। जिन मुस्लिम वोटरों को वह अपना कहती थी वे अब सपा की झोली में जाते दिख रहे हैं।
ऐसी स्थिति में भाजपा अगर राज्य में दूसरे स्थान पर आती है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
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