मित्रों , मोदी बोले तो बहुत
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी बोले तो बहुत. बहुत इसलिए कि अपनी आदत या कहें स्टाइल के मुताबिक लच्छेदार शब्द, जो सुनाने वाले की मन में कविता की तरह बिम्बों का सृजन करते हैं , की भरमार थी पर जैसी उम्मीद थी क़ वे कुछ खास घोषणा करेंगे वैसा कुछ नहीं हुआ. मोदी जी ने अपने 42 मिनट के भाषण में उन भारतियों की प्रशंशा की जिन्होंने नोट बंदी की आंधी में मोदी जी का साथ दिया. सवा सौ करोड़ भारतियों के लिए उनके मुह से फूल झड रहे थे. उन्होंने कहा कि आम आदमी ने नोट बंदी के फायदे को स्वीकार कर लिया है जबकि बुद्धिजीवियों ने इसे नहीं स्वीकारा है. मोदी जी की इस बात से साफ़ जाहिर होता है कि बुद्धिजीवियों और अर्थशास्त्रियों की नोट बंदी पर की गयी आलोचनाओं से उबार नहीं पाए हैं. यहाँ मोदी जी ए भाषण पर आगे कहने के पहले यह कहना जरूरी है कि बजट से दो महीने पहले इस बजट पूर्व भाषण की क्या जरूरत थी? किसानो के लिए की गयी घोषणाओं के मायने क्या हैं? गर्भवती महिलायों के लिए की गयी घोषणाएं क्या नयी बोतल में पुरानी शराब है? लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों को सरल ऋण और बूढ़ों के लिए सावधि जमा पर दर में मामूली वृध्धि वगैरह क्या है? प्रधान मंत्री ने कहा कि नोट बंदी के बावजूद किसानो का काम जारी रहा और रबी की बुवायी पिछले साल से 6 % ज्यादा हुई. प्रधानमन्त्री ने कहा कि नोट बंदी के कारण नौजवान और किशोर आतंकवाद का रास्ता छोड़ कर मुख्या धारा में लौट रहे हैं. मजे की बात है कि मोदी संघ के दूसरे बड़े नेता है जिन्होंने इकबाल की यह पंक्ति उधृत की कि “ कुछ बात है कि हस्ती नहीं हमारी.” इसके पहले संघ प्रमुख मोहन भगवत ने विजयादशमी की रैली को संबोधित करते हुए इसी पंक्ति को उधृत किया था. कश्मीर समस्या पर हाल ही में मोदी जी ने अटल जी का जूमला “ इंसानियत के दायरे में” दोहराया और वर्षांत के अपने भाषण में भी वाजपेयी जी को ही उधृत किया, “ गीत नया गाता हूँ.” मोदी जी ने कहा कि “ काल के कपाल पर यह अंकित हो चुका है कि जनशक्ति का सामर्थ्य क्या होता है.” मित्रों अगर आपने मोदी जी का 31 दिसंबर वाला भाषण सूना होगा तो जरूर महसूस किया होगा कि बेनामी सम्पति और करप्ट बाबुओं को जोरदार तमाचा लगाने के बदले उन्होंने अपने पिटारे में से उन लोगों के लिए मीठे बोल निकाले जो कथित तौर पर ऑपरेशन डीमो ( डी मोनेटाईजेशन ) से सबसे ज्यादा पीड़ित हुए है. उनका भाषण इस बात की स्वीकृति थी कि समाज के कुछ वर्ग ज्यादा पीड़ित हुए हैं और उन्हें राहत की जरूरत है. लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या उन्हें राहत मिलेगी जिन्हें चाहिए. ज़रा घोषणाओं पर ध्यान दें. मोदी जी ने गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान 6000 रूपए खाते में भेजने की बात की है. लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह एक पाइलट परियोजना है और महज 53 जिलों में लागू होगी. उन्होंने ना इस योजना का नाम बताया ना साल बताया कि कबसे लागू करेंगे. यहाँ यह बता देना जरूरी है की 2010 में यह मातृत्व सहयोग योजना के नाम से लागू थी और 2013 में इसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून में शामिल कर लिया गया. मोदी जी ने उसे फिर बहार निकाल लिया. ऐसी बात नहीं है कि मोदी जी इस बात को नहीं जानते होंगे . फिर भी देश में देश में बालमृतु दर और प्रसव के दौरान मरने वाली महिलाओं की दर को देखते हुए यह कदम प्रशंशा के काबिल है बशर्ते देश भर में लागू हो. बूढ़ों के लिए 7.5 लाख पर दस वर्षों के लिए व्याज दर फिक्स कर देना एक तरह से बुढ़ाते भारत के लोगों को लुभाना है. मोदी जी ने कहा कि किसानो को अब दो गुना कर्ज मिलेगा. पर किसान कौन है. कर्जे का परिदृश्य देखें तो गाँव के दबंग छाये हुए हैं और जरूरत मंद सकुचाये हुए है. यही हाल होगा आवास योजनाओं का और उद्योगों को कर्जे का. मोदी जी के भाषण में इस बार समाजवादी टन था. उन्होंने लोहिया , जयप्रकाश जारायण और रेंज सियार कामराज का नाम लिया. यह एक सन्देश था कि लोग उन्हें दक्षिण पंथी ना मानें और यह सन्देश उत्तर प्रदेश चुनाव के प्रचार के पहले क्या अर्थ रखता यह सब जानते हैं.
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