किले में फूट , टूटा परिवार
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के किले में फूट पद गयी है और उसके किलेदार मुलायम सिंह यादव परिवार में टूटन दिखाई पड़ने लगी है. पहले मुलायम सिंह बहैसियत पार्टी अध्यक्ष अपने पुत्र और राज्य के मुख्या मंत्री अखिलेश यादव को पार्टी से 6 वर्ष के लिए मुअत्तल किया और फिर उसे मंसूख कर वापस ले लिया. कल यानी नए साल के दिन अखिलेश यादव ने पार्टी के राष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल की बैठक बुला कर पिता मुलायम सिंह को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा कर रहनुमा और सलाहकार के सजावटी पद पर बैठा दिया ताकि चुनाव के पूर्व झगड़ा सुलझ जाय। उनके साथ ही पार्टी के उपाध्यक्ष किरणमय नन्द और शिव पल यादव को भी पद से हटा दिया गया. साथ ही नरेश उत्तम को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उधर मुलायम सिंह ने चुनाव आयोग को लिखा है कि यह बेधक नाजायज थी और 5 जनवरी को पार्टी की राष्ट्रिय कार्यकारिणी की बैठक होगी जिसमे फैसला होगा.सोमवार की सुबह मुलायम सिंह ने इस बैठक को रद्द कर दिया.इस घरेलू गति विधि पर कई विश्लेषकों को भरोसा नहीं था और वे इसे एक तरह का “ ड्रामा” समझ रहे थे पर कल की घटना के बाद यह हकीकत लगने लगा.
यह चाहे जो हो लेकिन उत्तर प्रदेश विधान सभा के आसन्न चुनाव को देखते हुए साफ़ महसूस होता है कि इसका चुनाव पर असर पड़ेगा. उत्तर प्रदेश में 2012 से ही समाजवादी पार्टी का वोट बैंक भंगुर रहा है और मुसलमानों तथा यादवों के वोट जिसपर उन्हें काफी भरोसा रहा है वह अगर घसका तो इसबार विपदाजनक हो सकते हैं. इसके बावजूद अब तक की गतिविधि से अखिलेश यादव का वर्चस्व तो तय हो गया और इसी के साथ उत्तर प्रदेश विधान सभा में धर्म निरपेक्ष गत बंधन की उम्मीद प्रबल होने लगी है. इसका पहला संकेत इसी से मिलता है कि अखिलेश यादव को राष्ट्रीय प्रति निधि सभा में पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया. इसके तुरत बाद कांग्रेस के वरिस्थ नेताओं ने बधाई सन्देश भेजे. यही नहीं रविवार को पार्टी की एक असाधारण बैठक में शिव पल यादव और अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया और षड्यंत्रकारी कह कर उनकी निंदा की गयी. यह भी कहा गया कि वे भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर यह षड्यंत्र कर रहे थे. राजनितिक हलकों में चर्चा है कि कांग्रेस का बधाई सन्देश इस बात का संकेत है कि अखिलेश यादव और राहुल गाँधी में मधुर रिश्ते हैं. राजनितिक हलकों में यह भी चर्चा है कि उत्तर प्रदेश में अखिलेश , राहुल और जयंत चौधरी की तिकड़ी एक नयी सियासी ताकत के रूप में उभरेगी. सुना जाता है कि ये तीनो संयुक्त तौर पर चुनाव अभियान का मोर्चा संभालेंगे. कांग्रेस कार्यालय में तो यह भी चर्चा है कि इन तीनों के अलावा नितीश कुमार और उनकी पार्टी जद यू और वृषण पटेल की पार्टी अपना दल भी इससे जुड़ेंगे. राहुल गाँधी और अखिलेश यादव ने तो ताल मेल के कई संकेत दिए हैं . दोनों ने सार्वजानिक तौर पर एक दूसरे के प्रति अच्छी और मधुर टिप्पणियाँ की हैं. यह भी किसी से छिपा नहीं है कि प्रियंका गाँधी और अखिलेश में सीधा संपर्क है. पिछले ही हफ्ते राहुल गाँधी ने पार्टी की बेधक में कहा था कि अखिलेश यादव और जयंत चौधुरी को लेकर एक यूथ फ्रंट की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. राष्ट्रीय लोक दल और जद यू तो उत्तर प्रदेश में गत बंधन की बात पहले से ही कर रहे हैं. जयंत चौधुरी की उत्तर प्रदेश के जाटों में अच्छी छवि है और वे अपने पिटा अजित सिंह से ज्यादा लोक प्रिय हैं. अखिलेश यादव से भी उनके अच्छे सम्बन्ध हैं. संभवतः राहुल गाँधी और जयंत चौधुरी से अच्छे संबंधों के बल पर ही उन्होंने अपने पिता को चुनौती दी. विधान सभा में 171 विधायक उनके साथ आते हैं तो कांग्रेस के 22 तथा रालोद के 9 सदस्य मिल कर 202 हो जाते हैं. 403 सदस्यों वाली विधान सभा में बहुमत के लिए यह पर्याप्त है. अखिलेश की सरकार नहीं गिरेगी.
अभी से उतार प्रदेश में कई मोर्चे दिख रहे हैं और हालात भी तेजी से बदल रहे हैं. अब वक्त कब कौन सा करवट लेगा यह केवल अनुमान है. सही तस्वीर तो तब दिखेगी जब चुनाव आयोग सीटी बजाएगा.
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