मोदी और शाह का टूटता आत्मविश्वास
यदि भाजपा की पिछली कार्यसमीति की बैठक उरी के बाड़के गुस्से की भेंट चढ गया तो इस बार की कार्य समीति की बैठक नोट बंदी के कारण हुए असंतोष की भेंट चढ़ गया कहा जा सकता है. दिल्ली में हुई इस दो दिवसीय बैठक में दो प्रस्ताव पारित हुए और तीन प्रेस कन्फेरेंस हुए. सब में एक बात साफ दिख रही थी कि नेता गण नोट बंदी के मसले पर आँखे चुरा रहे थे. इस बैठक में बोलने वाले सभी वरिष्ठ नेता चाहे वे मोदी जी हों या अमित शाह हों या वित्त मंत्री अरुण जेटली हों या मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर हों सब के सब अपने भाषणों के दौरान नोट बंदी की हिमायत करते सुने गये. वे सब पार्टी कार्यकर्ताओ को यह भरोसा दिलाने की कोशिश करते रहे कि नोट बंदी का असर चमत्कारिक होगा. उनके बोलने के ढंग या दलीलो को पेश करने के तरीकों से सॉफ लग रहा था कि वे अपनी बातों को लेकर भीतर से आश्वस्त नहीं हैं. उनके बॉडी लांग्वेज को देख कर लगता था कि वे चिन्तित हैं क़ी कहीं इसका असर विधान सभा चुनाव पर ना पड़े. पहली बार शाह और मोदी की चमक फीकी पड़ती देखी गयी. मोदी के भाषण में नाटक के तत्व ज़्यादा होते हैं लेकिन शाह एक भावक वक्ता की तरह विख्यात हैं और वे कई बार भाषणों के दौरान रोते हुए भी दिखे हैं. इस बार वे बेहद उदास स्वरों पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील करते सुने गये कि नोट बंदी पर सरकार की मदद करें . कार्यकर्ताओं की दूसरी मुश्किल यह है कि पार्टी टीन साल से सत्ता में है और एक भी ऐसी उपलब्धि नहीं है जिसे वे जनता के सामने लेकर जाएँ . फुसफुसाहट तो यह भी थी कि अगर दो सालमें कुछ नहीं हुआ तो 2019 में क्या लेकर जनता के सामने जाएँगे. वैसे जो लोग पार्टी का चरित्रा जानते हैं वे इस बात से वाकिफ़ हैं कि पार्टी छोटी से छोटी उपलब्धि को भी बड़ा से बड़ा बना कर प्रचारित करती है जैसे सर्जिकल स्ट्राइक के मामले में उसने किया था. पर इस बार उसने नोट बंदी को मुद्दा ना बना कर विकास को चुना है. करछा तो यह भी है कि दक्षिण भारत और उत्तर प्रदेश के कार्य कर्ताओं ने कयी बार बैठकों में नोट बंदी के कराब असर को लेकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से शिकायत की है. बीते दिसंबर में भी ऐसा हुआ है. नोट बंदी के बाद चर्चा का सबसे बड़ा विषय था ग़रीबी. रवि शंकर प्रसाद जैसे पार्टी के बड़े नेता भी ग़रीब और ग़रीब और ग़रीबी पर बोलते सुने गये. प्रेस से बात चीत में भी ग़रीबी पर दबाव कुछ ज़्यादा ही दिखाई पड़ा. रवि शंकर प्रसाद का यह कथन उस समय अजीब लगा जब उन्होने कहा कि वे ग़रीब के घर में जन्मे और पले हैं. पार्टी ने इस बात को काफ़ी उछालने की कोशिश की कि सरकार इस वर्ष को ग़रीब कल्याण वर्ष के रूप में माना रही है. पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता मनोज तिवारी ने कहा कि झुग्गी क्षेत्रों में नोट बंदी को प्रचुर समर्थन है. इस बार सभी पाँच चुनाव पार्टी जीतेगी. प्रेस से वार्ता में वित्त मंत्री अरुण जेटली के हवाले से सीता रामन ने कहा कि नोट बंदी से किसानो को व्यापक लाभ हुआ है. पर उन्होने यह नहीं बताया कि यह लाभ कहाँ और कैसे हुआ. जबकि अख़बारों को माने तो कहा जा सकता है कि नोट बंदी से किसान सबसे ज़्यादा परेशान हैं. सीता रामन ने यह भी कहा कि नोट बंदी से फ़िजूल खर्ची घाटी है, पर कैसे और किस क्षेत्र में ऐसा हुआ है यह नहीं बताया. इस जुमले को ज़मीनी स्तर क्जे कार्य कर्ता कैसे जास्टीफ़ाई करेंगे यह मालूम नहीं है. राजस्व हानि के बारे में उन्होने वित्त मंत्री के हवाले से कहा कि बड़े राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश या महाराष्ट जैसे राज्यों के राजस्व में कोई कमी नही आई है. केरल के बारे में पूच्छे जाने पर वे चुप रहे. केरल के वित्त मंत्री ने कहा है कि नोट बंदी से राजस्व में 30 प्रतिशत का घाटा हुआ है. मोदी जी ने लोक सभा और विधान सभा के चुनाव एक साथ कराने के विचार पर भी बाल दिया. प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि इसमें आने वाली कठिनआईओं का अध्ययन करने के लिए एक कमेटी का गठान भी किया जाएगा. कार्य कर्ताओं को भी ट्रेंड किया जाएगा कि इस बारे में राष्ट्रीय सहमति कैसे बनाएँ. बैट्रहक के अंत में मोदी जी ने कार्य कर्ताओ से कहा कि वे अच्छा काम करें आलोचनाओं पर ध्यान नही दें.
Tuesday, January 10, 2017
मोदी और शाह का टूटता आत्मविश्वास
Posted by pandeyhariram at 6:08 PM
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