उत्तर प्रदेश का चुनाव और भा ज पा
उत्तरप्रदेश में विधान सभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है, पर इसके पहले से ही चुनाव की गहमा गहमी शुरू हो चुकी थी . लखनऊ में प्रधान मंत्री के भाषण और मुलायम सिंह परिवार की गर्दिशें इस बात की सबूत थीं. अगर चुनाव के नजरिये से देखें तो 2017 का चुनाव यू पी के नाम ही रहेगा. क्योंकि यह चुनाव केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए महत्त्वपूर्ण कहा जाएगा. महत्त्वपूर्ण इसलिए कि देश की सर्वाधिक आबादी वाला यह प्रान्त 2019 के आम चुनाव की दिशा तय करेगा. अगर इस चुनाव में भा ज पा की बढ़त घटती है तो यह चुनावी चौसर की सबसे बड़ी हैरतअंगेज़ घटना कही जाएगी. क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनाव में उतर प्रदेश में भा ज पा को 81 प्रतिशत वोट मिले थे. राज्य के 403 विधान सभा क्षेत्रों के 328 क्षेत्रों में विजय प्राप्त करते हुए उसने 71 सीटें हासिल की थीं. अगर आंकड़े देखें तो 1977 में जनता पार्टी को 80 प्रतिशत सीटें मिलीं थीं. वह इमरजेंसी के बाद का चुनाव था.2014 के चुनाव की खूबी यह थी कि भा ज पा की विजय का अंतर भी बहुत ज्यादा था. उस समय में राज्य में चार पार्टियां चुनाव मैदान में थीं. ये चारों सपा, बसपा, कांग्रेस और भा ज पा. इस जोर आजमाइश में हर पार्टी को 25-30 प्रतिशत वोट मिलने से जीत हो जाती. लेकिन 403 विधान सभा क्षेत्रो वाले इस प्रान्त में 253 सीटों पर भा ज पा 40 प्रतिशत से अधिक मतों के अंतर से विजयी हुई. इससे यह पता चलता है कि यदि विपक्षी एकता भी हुई तब भी आधी से ज्यादा सीटों पर भा ज पा विजयी होगी. 94 सीटों पर तो यह 50 प्रतिशत से ज्यादा मतों के अंतर से विजयी हुई थी. हाल के इतिहास में ऐसी विजय किसी पार्टी को नहीं मिली है. 2014 के मतों के विश्लेषण से यह जाहिर हो जाता है कि 2017 में भा ज पा ही विजयी होगी. अगर ऐसा होता है तो 1984 के बाद 2014 में किसी एक पार्टी को संसद में बहुमत दिलाने का श्रेय यू पी को ही जाता है . 2017 का परिणाम साफ़ है और यही कारण है कि यू पी भा ज पा में काफी उत्साह है. अब अगर 2017 में भा ज पा को 200 से कम सीटें मिलतीं हैं तो इसका मतलब हुआ कि लगभग 15 % मत दाताओं ने एकमुश्त दूसरे दल को वोट दिया. सामाजिक हालातों के रोझां बता रहे हैं कि भा ज पा की लोकप्रियता छीज रही है. 2014 के बाद 2015 में बिहार में उसे पराजय मिली आंकड़े बताते हैं कि लगभग 4 प्रतिशत मतदाताओं ने पाला बदला है. साथ ही इसका यह भी अर्थ है कि बिहार में जो उसका जो उसका परफार्मेंस था उससे चार गुना ज्यादा ख़राब परफोर्मेंस होगा तब कहीं ऐसा हो सकता है. अगर किन्ही दो दलों में गत बंधान होता भी है तो भी अगर भा ज पा के वोट के हिस्से में 10 प्रतिशत से ज्यादा बदलाव आयेगा तब कहीं 2017 में वैसा हो सकता है.अब अगर यू पी के मतदाताओं के मनो विज्ञान का विश्लेषण करें तो पता चलेगा कि वहाँ मतदान की प्रवृतियां अलग अलग हैं. संसदीय चुनाव में वोट देने के पैटर्न और विधान सभा के लिए वोट देने की मानसिकता अलग अलग है. जो लोग संसदीय चुनाव में एक पार्टी को वोट देते हैं विधान सभा चुनाव में क्षेत्रीय प्राथमिकता के आधार पर दूसरी पार्टी को देते हैं. लेकिन यह प्राथमिकता कई अन्य हालातों से निर्देशित होती हैं. इस बार इस फार्मूले की भी परीक्षा होगी. इसके बावजूद कोई यह मान भी ले कि भा ज पा के मत कुछ इधर उधर जायेंगे तब भी उससे भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.
फिर भी अगर भा ज पा को 200 से कम सीटें मिलतीं हैं तो इसका मतलब होगा कि 2014 में जी लोगों ने वोट डाले थे उनमें से बड़ी संख्या में लोगों में लोगों ने अपना मन बदला है. अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय चुनावी इतिहास की अबतक की सबसे बड़ी घटना होगी .
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