आज हमारा गणतंत्र दिवस
आज गणतंत्र दिवस है। आज देश का गडातंत्र 67 वर्ष पूरे कर चुका तथा 68 वां गणतंत्र मना रहा है। सड़कों पर और हर देशवासी के मन में देशभक्ति का ज्वार आया हुआ है। ऐसे में जानना जरूरी है कि हमारी शासन व्यवस्था , जो कि गणतंत्र का मूल है, को दिशा देने वाले हमारी निर्वाचन व्यवस्था का क्या हाल है। क्योंकि यहीं से व्यवस्था की पहली पायदान पर हम पैर रखते हैं। चुनाव में सबसे महत्वपूर्ण है उसकी डायनामिक्स। वह है चुनाव को गति देने वाला तत्व। बड़े हैरत की बात है कि चुनाव को अगर गण अथवा जन के मध्य गति देता है धन। जब धन की बात आती है तो बिना कालेधन के उसकी इतिश्री नहीं हो सकती। देश में चुनाव में काले धन को समाप्त करने के लिये चुनाव आयोग ने फौरी तौर पर 2हजार रुपयों से ज्यादा के गमनाम चंदों पर रोक लगाने की बात कही थी। पर सरकार ने नहीं माना। एक अध्ययन के अनुसार 2005 से 2015 के बीच सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पार्टियों को प्राप्त चंदे का दो तिहाई भाग अज्ञात स्रोतों से आया। आंकड़े बताते हैं कि राजनीतिक दलों ने 11,367.98 करोड़ रुपये चंदो से प्राप्त किया उसमें 7,832.98 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोत से आये थे। इनदिनों जो लोग राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपयों से कम का चंदा देते हैं उन्हें इसके स्रोत की जानकारी देने की जरूरत नहीं है। अब इस छाट को कालेदान को सफेद करने के लिये उपयोग किया जाता है। अब प्रदान मंत्री की नोटबंदी की कार्रवाई की रोशनी में यह सवाल सामने आता है कि राजनीतिक दल अपने आय के स्रोतों की घोषणा को लेकर कितने स्वतंत्र हैं। चुनाव आयोग को सौंपे गये विवरण के मुताबिक 2005 से 2015 के बीच राजनीतिक दलों को 11हजार 367 करोड़ 34 लाख रुपये चंदे के रूप में मिले। हालांकि यहगशि भी बहुत कम है तब भी इसका केवल16 प्रतिशत भाग ही ज्ञात स्रोतों से मिला है। आयकर के विवरणों के आकड़े देखने से पता चलता है कि आलोच्य अवधि में कांग्रेस की आय का कुल 83 प्रतिशत भाग और भाजपा की आय का कुल 65 प्रतिशत भाग अज्ञात स्रोतों से आया है। इस विश्लेषण में 6 राष्ट्रीय दलों आहैर 51 क्षेत्रीय दलों की आय को देखा गया है। क्षेत्रीय दलों में समाजवादी पार्टी का स्थान सबसे ऊंचा है। उसकी कुल आय का 94 प्रतिशत भाग अज्ञात स्रोतों से आया है। इनमें बसपा केवल एक ऐसी पार्टी है जिसने 20 हजार से ज्यादा राशि अज्ञात स्रोतों से नहीं प्राप्त की है। हालांकि व्यवहारिक तौर पर ये आंकड़े विश्वसनीय नहीं हैं। क्योंकि उसकी कुल आय का 2057प्रतिशत (दो हजार सत्तावन प्रतिशत) भाग अज्ञात स्रोतों से प्राप्त हुआ है। पार्टी को 2004-05 में महज 5.19 करोड़ रुपये अज्ञात स्रोत से प्राप्त हुये थे जो 2014-15 में 111.96 करोड़ रुपये पहुंच गये। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का कितना बड़ा मखोल है इसकी कल्पना की जा सकती है। दिलचस्प बात यह है कि इसी अवदि में राष्ट्रीय पार्टियों के चंदे में 311 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि क्षेत्रीय पार्टियों की आय में 652 प्रतिशत इजाफा हुआ। कुल 51 क्षेत्रीय दलों में से 12 ने तो 2004 से 2015 तक अपने चंदे का लेखा जोखा ही नहीं पेश किया। ये अज्ञात स्रोत भी बड़े दिलचस्प हैं। जैसे कूपनों की बिक्री से हुई आय, आजीवन सहयोग निधि की आय राहत कोश की आय, स्वेच्छा से दान से प्राप्त राशि इत्यादि। यही नहीं अखबारों की रद्दी की बिक्री से हुई आय इत्यादि भी इसमें शामिल है। अब चूंकि चदा देने वालों के बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं होने से यह जानपाना बड़ा कठिन हो जाता है कि कौन से लोग इसके पीछे हैं तथा पार्टियों के किनसे ताल्लुकात हैं। यहां तक कि कुछ ऐसे दल हैं जिन्होंने चुनाव लड़े ही नहीं और चंदे में आयकर की सुविधा हासिल कर रहे हैं। विगत 20 दिसम्बर को चुनाव आयोग ने 200 ऐसे दलों की मान्यता रद्द कर दी जिन्होंने 2005 से अबतक एक भी चुनाव नहीं लड़ा था। ये लाकतांत्रिक व्यवस्था की जड़ा में व्याप्त भ्रष्टाचार का छोटा नमूना है। गणतंत्र के दिशानिर्धारक अगर इतने बेईमान होंगे तो आप सोच सकते हैं कि हमारे गणतंत्र की स्थिति क्या होगी। क्या हमारे पूर्वजों ने गणतंत्र भारत का यही सपना देखा था।
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