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Friday, January 6, 2017

कैसे बढ़ेगा इंडिया

कैसे बढे़गा इंडिया 

देश के चार  राज्यों , बिहार, उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश, राजस्थान , में स्कूली  शिक्षा की सबसे ज्यादा दुर्दशा  है जबकि इन राज्यों में देश के 43.6 प्रतिशत बच्चे रहते हैं जिनकी उम्र 5 से 14 वर्ष है. सन 2020 तक भारत में क्माम करने वालों की आबादी 86 करोड़ 90 लाख हो जायेगी. यह दुनिया की सबसे बड़ी काम काजी आबादी होगी. लेकिन अगर आंकड़ों का विश्लेषण करें तो पता चलेगा की इन राज्यों में देश के स्कूल जाने लायक बच्चो की आबादी है , जो लगभग देश के संपूर्ण बच्चों की आबादी के 43. 6 प्रतिशत है. इका अर्थ है कि हमारा महान देश इतनी बड़ी आबादी को पढ़ाने और ट्रेंड करने के लिए तैयार नहीं है. जनसँख्या के आंकड़ों को देखें तो 2001 से 2011 के बीच देश के शिक्षा दर में 8 . 66 प्रतिशत की वृद्धि हुई है लेकिन राज्यवार विकास दर में भरी अंतार है. शिक्षा का यह संकट बीमारू राज्य के नाम से मशहूर 4 राज्यों में ज्यादा है. इन राज्यों में देश के 1.2 अरब की आबादी में से 44 करोड़ 51 लाख की आबादी निवास करती है जबकि इन राज्यों की शिक्षा दर देश में सबसे कम है. जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक़ बिहार में शिक्षा दर 61 . 8 % , राजस्थान में 67.1 %, उत्तर  प्रदेश में 67.7 और मध्य प्रदेश में 70.6 प्रतिशत है. जबकि भारत की औसत शिक्षा दर 74 प्रतिशत है और केरल में यह सर्वाधिक 94 प्रतिशत है. शिक्षा पर जिला एकीकृत सूचना प्रणाली के अनुसार   केवल शिक्षा दर ही नहीं शिक्षा के विकास की दर भी बहुत कम है. 2014 – 15 के आंकड़ो के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश में कम छात्र 5 वीं क्लास से छठी क्लास बहुत कम छात्र गए , इसका औसत लगभग 79 . 01 प्रतिशत है, जबकि गोवा में  यह लगभग शत प्रतिशत है. मध्य प्रदेश में शिक्षा का हाल यह है कि 5 वीं क्लास के 34.1 % छात्र ही क्लास 2 की किताबें पढ़ सकते हैं जबकि हिमाचल में 75.2 प्रतिशत बच्चे ऐसा करने में सक्षम हैं. शिक्षा की स्थिति पर 20 14  की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान के पांचवीं क्लास के 45 . 9 प्रतिशत  बमुश्किल घटाव जैसा मामूली गणित बना सकते हैं. जबकि मिजोरम में यह औसत 87. 4 प्रतिशत है.फिलहाल देश के  4 राज्य केरल, मिजोरम, त्रिपुरा और गोवा में  5 साल से 14 साल की उम्र के 2.5 प्रतिशत बच्चे रहते हैं जबकि 2011 की जन गणना के मुताबिक़ बीमारू राज्यों में यह अनुपात 43 . 6 है. बीमारू राज्यों में शिक्षा के मामूली विकास का भी देश के समग्र शिक्षा परिदृश्य में भारी बदलाव दिखेगा. इकनोमिक एंड पोलिटिकल विकली के अनुसार  अगले पचास साल में भारत 60 प्रतिशत आबादी इन्ही चार राज्यों से होगी जबकि केरल तमिलनाडु , आन्ध्र, कर्नाटक और महाराष्ट्र से की केवल 22 प्रतिशत आबादी होगी.  अगले 10 वर्षों में उत्तर प्रदेश और बिहार में 5 साल से 14 साल के बच्चों की आबादी 31 प्रतिशत हो जायेगी. एशिया एंड पैसेफिक पोलिसी स्टडीज के एक अध्यान के अनुसार भारत के नौजवानों की उत्पादकता इन राज्योंमें स्वास्थ्य , शिक्षा, रोजगार के अवसर इत्यादि के विकास पर निर्भर करती  है.  राज्यों में जो अंतर है वह केवल स्कूलों में नामांकन और शिक्षा की दर पर निर्भर नहीं कर्ताबली और भी कई तत्त्व हैं जो भविष्यत् नामांकन और शिक्षा पर असर डालते हैं. विश्व बैंक की 2005 की एक रपट के मुताबिक़ आयु  दर भी भारत में शिक्षा की दर को प्रभावित करती है. पोपुलेशन रेफ़रन्स ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक़ 2011 में महाराष्ट्र में शिक्षा की दर 82.3 प्रतिशत थी जबकि 2011-16 में वहाँ  आयु दर 70 .4 साल है वहीं मध्य प्रदेश में शिक्षा दर 70 .6 प्रतिशत है और आयु दर 61. 5 साल है. स्कूलों में नामांकन की दर पर कई गुणक प्रभाव डालते हैं जैसे माता पिता  की शिक्षा का स्तर घर की आमदनी, घर से स्कूल की दूरी इत्यादि. बीमारू राज्यों में अन्य राज्यों के मुकाबले शिक्षा पर भी कम खर्च किया जाता है.   इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली में  सितम्बर में प्रकाशित  रपट के मुताबिक़ मध्य प्रदेश में 11,927 रूपए प्रति छात्र  खर्च होते हैं  जबकि तमिलनाडु में यह खर्च 16,914 रूपए होते हैं. वहीं बिहार में यह खर्च 5, 298  रूपए है. माता पिता की शिक्षा भी बच्चो की शिक्षा में मायने रखती है. टाइम पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ केरल में 99 .1 प्रतिशत माताएं शिक्षित हैं जबकि राज स्थान में केवल 30.3 प्रतिशत. यही नहीं घर की आमदनी भी बच्चों की शिक्षा पर असर डालती है. 

कुल मिला कर संपन्न घरों बच्चे ज्यादा पढ़ते हैं जबकि गरीब के बच्चों के नाम स्कूलों में कम देखे जाते हैं. जर्नल डेमोग्राफी में लेंट प्रित्शेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में इसिलिये बच्चो की शिक्षा दर कम है.    

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