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Sunday, January 29, 2017

बापू की शहादत

बापू की शहदत

हरिराम पाण्डेय

आज जबकि समाज में आवांतर सत्य (पोस्ट ट्रुथ ) का वार्चस्व तेजी से बढ़ता जा रहा है और कई देशों में लोकतंत्र कं मुखौटे में अधिनायकवादी शासनका जोर बढ़ता जा रहा है, समाज में धार्मिक असहिष्णुता का पसार हो रहा है और पर्यावरण की स्थिति खराब होती जा रही है तो प्रतीत होता है कि गांधी आज पहले से ज्यादा प्रासंगिक हो गये हैं। लेकिन भारत में हम गांधी को भूलते जा रहे हैं। एक दशक से भी ज्यादा समय गुजर गया होगा , कोलकाता के राजभवन में महात्मा गांधी के पौत्र और पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी पर चर्चा हो रही थी और उस दरम्यान उन्होंने गांधी की भवितव्यता पर बात में कहा कि ‘उनका हाल बुद्ध का होगा। हमने उन्हें मानना छोड़ दिया और एशिया ने उन्हें गले लगाया।’ आज के दिन ही 1948 में गांधी की​ हत्या कर दी गयी थी। उन्हें मारने वालों तर्क है कि वे पाकिस्तान को बनने देने के लिये उसे 55 करोड़ रुपये देने के लिये भारत सरकार को बाध्य करने के जिम्मेदार थे साथ ही उनकी मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण मुसलमानों ने भारत में खून खराबा किया था। इसलिये समाज में भारी गुस्सा उपजा था और उनकी हत्या कर दी गयी। लेकिन इतिहास का अगर बारीकी से अध्ययन किया जाय तो पता चलेगा कि ये दलीलें लोगों को गुमराह करने की शातिर हरकतें हैं। बंटवारे के आसपास के दिनों में गांधी सियासत की अत्यंत असम वीथियों में व्लझे हुये थे। जब बंटवारे का प्रस्ताव आया तो स्थिति काफी हिंसक हो गयी थी और तनाव के कारण दंगे भड़क गये जिसमें मानव इतिहास में सबसे ज्यादा लोग मारे गये। जो देसी मुसलमान थे उनकी निगाह में गांधी हिंदू नेता थे और पाकिस्तान के विरोधी थे जबकि हिंदू उन्हें मुसलमानों के हिमायती मानते थे और वे उन्हें अपने भाइयों के खून का प्रतिशोध लेने से रोकने वाले दिखते थे। गोडसे ऐसे ही चरमपंथी विचारों की संतान थे। गांधी की हत्या वर्षों के मानस शोधन (ब्रेन वाशिंग )का परिणाम थी। गांधी कट्टर हिंदुओं के मन में फांस बन गये थे और बाद में यह क्षोभ एक मानसिक भीति में बदल गयी। 1934 से 1948 के बीच गांदा की हतया की 6 बार कोशिशें हुईं और अंत में 30 जनवरी 1948 को कोशिश कामयाब हुई। गोडसे इससे पहले दो बार 1944 और 1946 में कोशिशें कर चुका था। अगर 1934 के बाद के हालातों को समाजवैज्ञानिक कसौटी पर परखें तो पता चलेगा कि पाकिस्तान को बनाने में जितना देसी मुसलमानों की भावना जिम्मेदार है उतनी ही हिंदुत्व की तीखी प्रतिक्रिया भी जिम्मेदार है।सोचिये वह कैसी मनोदशा रही होगी कि ‘‘सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा ’’ लिखने वाले शायर ने ही पहली बार पाकिस्तान की अवधारणा प्रस्तुत की। यही नहीं प्रांतीय हिंदु महासभा पुणे द्वारा प्रकाशित ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ (ख्घ्ंड 6 पृष्ठ 296) में लिखा गया है कि 1937 में  अहमदाबाद में हिंदू महासभा के खुले अधिवेशन में वीर सावरकर ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था ‘भारत को अब एकरूप और समशील राष्ट्र नहीं कहा जा सकता है , यहां अब दो राष्ट्र हैं , हिंदू और मुसलमान।’

भारत और हिदुत्व बच गया

इतिहास बताता है कि अगर गांधी की हत्या नहीं हुई रहती तो भारत अभी​ और भी कई बार बंटता। 30 जनवरी की घटना के दूसरे दिन यानी ज्जिनवरी 1948 को  रिटायर्ड आई सी एस ऑफिसर माल्कम डार्लिंग ने अपती डायरी में लिखा कि ‘कल गांधी की हत्या कर दी गयी अब भारत का दुबारा टूटना अपरिहार्य है। लगता है हमें (अंग्रेजों को) जल्दी ही भारत लौटना होगा।’ माल्कम की इस शंका को बहुतों ने जाहिर किया था और सब कह रहे थे कि बारत 18 वीं सदी में लौट जायेगा जब छोटे छोटे राज्य हुआ करते थे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। कारण यह कि दो बड़ें नेताओं की आपसी लड़ाई गांधी की मौत के साथ ही खत्म हो गयी। गांधी के दो सहायक जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल में कई बातों को लेकर भारी मतभेद था। देश आजाद हो चुका था। नेहरू प्रधानमंत्री थे और पटेल गृहमंत्री। मतभेद इतना गहरा था कि दोनाहें अपने पदों से इस्तीफा देने जा रहे थे। कोई भी एक दूसरे के साथ काम करने को तैयार नहीं था। 30 जनवरी के उस अभागे दिन को प्रार्थना सभा के पहले गांदा ने पटेल से लम्बी वार्ता की और प्रार्थना के बाद नेहरू से बतचीत का कार्यक्रम था। गांधी की हत्या ने इन दोनों को मतभेद भुला देने के लिये मजबूर कर दिया। गांधी की मृत्यु के बाद नेहरू ने पटेल को लिखा ‘सबकुछ बदल गया है और अबे हमें एक अन्य और जटिल दुनिया से मुकाबिल होना है। पुराने विवाद किसी काम के नहीं हैं और अब समय है मिलजुल कर काम करने का।’ पटेल ने जवाब दिया ‘मैं भी यही समझता हूं। मैंने बापू को लिखा थ कि मुझे मुक्त कर दें , पर उनकी मौत ने सबकुछ बदल दिया। अब विपदाग्रस्त इस देश के लिये हमें मिल कर काम करना होगा।’ इसके तुरत बाद पटेल और नेहरू आकाशवाणी गये। पटेल ने जनता से अपील की कि वे ‘बदले की बात मन से निकाल दें और महात्मा जी के प्रेम और अहिंसा के सबक का अनुपालन करें। जब तक वेजिवित थे हमने उनके पथ का अनुसरण नहीं किया अब उनकी मौत के बाद तो अनुसरण करें।’ नेहरू ने अपने भाषण में कहा कि ‘एकजुट हो जाएं और साम्प्रदायिकता के जहर का मुकाबला करें।’ बात ने असर दिखाया। हिंसा रुक गयी। मुसलमानों पर हमले बंद हो गये। पाकिस्तान बनने का गुस्सा दब गया। हिंसा दबने के बाद नेहरू और पटेल ने संविधान की ओर ध्यानन देना शुरू किया। देश में राजशाही का विलय शुरू हो गया। स्वतंत्र आर्थिक और विदेश नीति की नींव रखी गयी। यह सब कुछ ना होता अगर नेहरू और पटेल में जोर आजमाइश होती रहती और हिंदू मुस्लिम दंगे होते रहते। गांदा की शहादत ने दोनों नेताओं को मंच पर लाने और एक दूसरे खून के प्यासे दो सम्प्रदायों में गुस्से को दबाने का काम किया और नतीजतन भारत की एकता कायम रही।

गांधी​ कुछ ऐसा ही चाहते थे। 1924 के सितम्बर में उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये दिल्ली में दो हफ्तो का उपवास भी रखा था। उपवास के पहले उन्होंने कहा था कि‘मैं जानता हूं कि हिंदू क्या चाहते हैं, पर हमें मुसलमानों का मन भी तो जानना होगा। मैं दोनों मित्रता कराने का माध्यम बनना चाहता हूं , क्यों नही यह में खून से ही क्यों ना हो।’ 1946 से ही मुसलमानों का ध्रुवीकरण शुरू हो गया था और दंगे भड़क चुके थे। यह सब 1948 के पहले महीने के पहले हफ्ते तक चलता रहा। दूसरे हफ्ते में उनहोंने साम्प्रदायिक शांति के लिये पांच दिनों का उपवास किया। दंगे थम तो गये पर सबमें एक बेचैनी थी जो उनकी शहादत के बाद खत्म हो गयी।

55 करोड़ रुपयों का सच

गांधी जी के बारे में एक बहुत बड़ा दुष्प्रचार है कि उन्होंने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने के लिये सरकार पर दबाव डाला। पर ऐतिहासिक अबिलेखों में इसका जिक्र नहीं मिलता है। 12 जनवरी की संध्या प्रार्थना सभा में अपने संकल्प की घोषणा की पर उसमें उन 55 करोड़ का जिक्र नहीं था। अगहर यह शर्त होती तो उन्होंने जरूर इसकी घोषणा की होती। 13 जनवरी के भाषण में भी इसका कोई जिक्र नहीं है। 15 जनवरी को अनशन केउद्देश्य के बारे में पूछे गये सवाल में उन्होने इसका कोई उल्लेख नहीं था। भारत सरकार द्वारा जारी प्रेस रीलिज में भी ऐसा कुछ नहीं था। यहां तक कि डा. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में गठित समिति ने जो आश्वासन दिया था इसमें भी उसका उल्लेख नहीं था। अब यह बात कैसे आयी कहां से आयी यह तो वही बतायेंगे जो इसका प्रचार कर रहे हैं।

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