CLICK HERE FOR BLOGGER TEMPLATES AND MYSPACE LAYOUTS »

Sunday, January 15, 2017

यह केवल सांकेतिक नहीं है

यह केवल सांकेतिक नहीं है

जो लोग विगत तीन दशक से कड़ी पहन रहे हैं या चरखा चला रहे हगें उनके लिए कड़ी और ग्रामीण उद्योग आयोग के कैलेण्डर  तथा डायरी  से  महात्मा गाँधी की तस्वीर की जगह प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर लगाया जाना केवल सांकेतिक बदलाव नहीं है बल्कि दुःख का विषय है. जबसे मोदी सत्ता में आये हैं तबसे अक्सर ऐसा होता रहा है. मोदी जी की तस्वीर का इस्तेमाल प्रचार की ओछी सियासत का खुला प्रदर्शन है और दुनिया भर में अधिनायकवादी शासनों में ऐसा होता देखा गया है. सत्ता द्वारा एक पूर्ववर्ती चित्र को बदल कर या उसे विद्रूप कर उसकी जगह नए चित्र को लगाना केवल अतीत को बदलने या नियंत्रित करने का प्रयास नहीं है बल्कि वर्तमान को भी नियंत्रित करने की कल्पना है. इसकी मिसाले नाजी जर्मनी , सोवियत संघ और कमुनिस्ट चीन के अलावा कई जगहों पर देखी गयी हैं. किसी सर्वव्यापी चित्र या आइकॉन किसी विख्यात आदर्श को लोगों के अचेतन में अंकित करने की प्रक्रिया है. गाँधी एक बिम्ब हैं लोगों क्ले दिमाग में जिसे देखते ही मोहन दस करमचंद गाँधी कम और गांधीवादी दर्शन का सन्देश ज्यादा उभरता है. कड़ी और ग्रामीण उद्योग आयोग के इस बिम्ब को दूसरे के चित्र से हटाने का अर्थ ही होता उनके दर्शन और आदरेशों को लोगों के दिलो दिमाग से हटाने की कोशिश है. गाँधी की तस्वीर को एक ऐसे आदमी के चित्र से परिवर्तित किया गया है  जो अभी भी उसी पार्टी का ध्वज वाहक  है  जिस पर गाँधी की ह्त्या का आरोप है. दुनिया भर में शांति और अहिंसा के लिए विख्यात एक ऐसे आदमी की तस्वीर पर एक ऐसे नेता की तस्वीर को लगाया जाना क्या कहा जाएगा. यह केवल गाँधी की तस्वीर को विद्रूप करने का मामला नहीं है मोदी की उस  नैतिक स्थिति को मजबूत बनाने की कोशिश है जिसका  गुजरात के दंगे के दंगे के समय और उसके बाद के वर्षों में क्षरण हो गया था. लेकिन यहाँ यह बताना धी नहीं है बल्कि इसकी गंभीरता उससे भी जयादा है. यह चित्र परिवर्तन केवल हिंदुत्व के बिम्ब को एक राष्ट्रवादी बिम्ब से बदलने की प्रक्रिया है. जिन्होंने गांधी को नहीं जाना है , नहीं पढ़ा है वे भी गाँधी के अहिंसा को जानते हैं. गौताम बुद्ध के संभवतः गाँधी ही ऐसे इंसान हैं जो आज भी हर भारतीय के अचेतन में है. जिन्होंने शुमाकर लिखित गांधी की जीवनी “स्माल इज ब्यूटीफुल” पढ़ी है वे समझ सकते हैं कि गाँधी केवल राजनीतिज्ञ नहीं बल्कि पर्यावरण के बारे भी गभीर चिन्तक थे. अब ज़रा खादी  के बारे में सोचें , वह केवल आजादी की भूली जा चुकी  लड़ाई का बिम्ब ही नहीं है बल्कि  बल्कि धरती के लम्बे भविष्य का भौतिकवादी चिंतन है. कपास के धागे से हाथ से बुनी गयी खादी में किसी खनिज या मिल की ज़रूरेअत नहीं पड़ती. जैसा कि पॉलिएस्टर के धागे के लिए होती है. खादी केवल कपड़ा नहीं है यह पर्यावरण का चिंतन भी है . कड़ी का जनम औपनिवेशिक प्रतिरोध के लिए नहीं हुआ बल्कि यह पर्यावरण पर मशीनों के घटक प्रहार को रोकने में भी सक्षम है. खादी और ग्रामीण विकास आयोग के चित्रों में से गाँधी को हटाया जाना कार्य के औपनिवेशिक कालोत्तर नव उदारवादी सिद्धांत है. गाँधी उस आयोग के  बिम्ब इसलिए  थे वे खुद सूत कातते थे और उसी का कपड़ा बना कर पहनते थे. खादी निर्माण और उसके उपयोग के आतंरिक संबंधों का प्रतीक है. ध्यान दें खादी के केंद्र में केवल उपभोग नहीं है बल्कि सृजन भी है. कड़ी का जन्म औपनिवेशिक सत्ता की आर्थिक क्षमताओं को विनष्ट करने के लिए हुआ था और आज़ादी के बाद यह पर्यावरण विनाशक मशीनीकरण को चुनौती के रूप में भी कायम  है. दूसरी तरफ मोदी जी अन्य बातों के अलावा बेलगाम उपभोग के तरफदार हैं. वे बड़ी पूँजी, वहिविक बाज़ार और तकनीकी आधुनिकता के हिमायती हैं. यह गाँधी के दर्शन का विलोम है. गाँधी की तस्वीर बदलने के साथ  ही  कड़ी आयोग ने सृजन और उपभोग की कड़ी को भंग कर दिया. उन्होंने शारीरिक  कार्य अधिभौतिक दर्शन तथा उपभोग की नैतिकता के अंतर संबंधों को विनष्ट कर दिया. आयोग के चेयरमैन विमल कुमार सक्स्सेना का यह कहना कि मोदी जी के रेडियो पर कड़ी की बात कहने से उसकी बिक्री बढ़ी है यह तर्क बाजार की दलील है नैतिक सृजन. अब खादी एक दर्शन ना होकर एक ब्रांड में बदल गयी. यह केवल बिम्ब परिवर्तन का मामला नहीं है , आयोग और सरकार ने मिलकर इस बार नैतिक रूप में गाँधी को समाप्त कर डाला. 

0 comments: