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Sunday, January 29, 2017

भाजपा को राम याद आये

भाजपा को याद आये राम

भाजपा ने शनिवार को उत्तर प्रदेश में अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी किया। घोषण पत्र में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के प्रयास किये जाने का वायदा किया गया है। अलबत्ता यह जरूर कहा गया है कि इस प्रयास में संविधान के प्रावधानों की हदें मानी जायेंगी। इसके अलावा पार्टी ने किसानों के कर्ज माफ करने और दंगे के कारण घर बार छोड़ कर चले गये लोगों के पता लगाने के लिये टीम गठित करने का वादा भी किया गया है। लखनऊ में चुनाव घोषण पत्र जारी करते हुये पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि पार्टी अगर सत्ता में आती है तो बिना किसी भेद भाव के सभी छात्रों को लैपटॉप दिये जायेंगे और 12 कक्षा तक मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था की जायेगी। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश को सपा और बसपा ने 15 वर्षों तक लूटा है और हम इसे बदल डालने की प्रतिज्ञा के साथ यहां आये हैं। उन्होंने अवैध खनन को खत्म करने के लिये टास्क फोर्स गठित करने और राज्य में अहर्निश बिजली दिये जाने वादे के साथ साथ विश्वविद्यालयों में मुफ्त वाई फाई की सुविधा देने का भी वादा किया है। यही नहीं अल्प संख्यकों की भावनाआहें को मरहम लगाते हुये उनहोंने कहा पार्टी अगर सत्ता में आती है तो ‘तीन तलाक’ के मामले पर भी विचार करेगी। नोटबंदी के बारे में उन्होंने कहा कि पार्टी को भरोसा है कि वह काले धन के विरोध में सरकार की जंग पर उत्तरप्रदेश की जनता विश्वास जाहिर करेगी। उत्तर प्रदेश में भाजपा 2014 के संसदीय चुनाव में 80 में से 71 सीटों पर विजयी हुई थी जबकि 2012 के विधान सभा चुनाव में कुल 403 सीटों में से 41 सीटें इसे मिली थीं। राज्य में 11 फरवरी से सात चरणों में चुनाव होने हैं ओर मतगणना 11 मार्च को होगी।

यह घोषणपत्र कुछ ऐसा है जैसा लगभग सबका होता है और हरबार होता है तब ऐसी ही घोषणाओं के बल पर चनाव लड़े जाते हैं तथा पार्टियों की हार जीत होती है। जहां चुनाव हो रहे हैं वहां के लोग खास कर ऐसे लोग भारत के ग्रामीण इलाकों से ज्यादा सम्बंध नहीं रखा है उनके लिये टी वी पर या अखबारों में लोग्कों तथा जगहों को देखना या वहां की सामाजिक – आर्थिक स्थिति के बारे में जानना एक रोमांचक अनुभाव हे। साथ ही यह भी देखा जा सकता है कि हर चुनाव में इस तरह के वायदे किये गये लेकिन बहुत कुछ बदला नहीं। राम मंदिर बनाने का वायदा कितना पुराना है लेकिन मंदिर बना नहीं। शिक्षा का प्रलेभन आजदी के बाद से दिया जा रहा है पर अभी तक हालात ये हैं कि दर्जा चार का छात्र कक्षा दो की किताबें भी ठीक से नहीं पढ़ पाता। पर कुछ बदलाव दिखते हैं और वे बदलाव वहां के सामाजिक राजनीतिक जीवन की ओर इशारा करते हैं। मसलन अगर आप यूपी के किसी पिछड़े गांव में जायं और वहां स्वच्छ भारत योजना के तहज बनाये गये शौचालयों के बारे में अगर पूछें तो कुछ कहेंगे यह मोदी जी की देन है कुछ कहेंगे यह अखिलेश यादव ने बनवाया। लेकिन सबहसे दिलचस्प वे बातें होंगी जो शौचालयों की दीवारों पर लिखा होता है। लगभग सब पर यह लिखा है कि इससे कौन सी जाति के लोग लाभान्वित हुये। बदलाव टी वी में दिखता है , रेडियो पर सुना जाता है और अखबारों में पढ़ा जाता है पर जो नहीं समझा जाता है वह है कि आज भी हमारा समाज विकास के ढांचों को भी जातियों में कितनी आसानी से तकसीम कर दे रहा है। इसका राजनीतिक महत्व है। यहीं आकर घेषण पत्रों की घोषणाएं गौण हो जाती हैं। इस तथ्य से यह पता चलता है कि लोग वोट देने का फैसला कैसे करते हैं और राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों के बारे में अपनी राय कैसे कायम करते हैं। किसी को वोट देने के पहले वे क्या सोचते हैं। अखबारों की प्रसार संख्या या टेली विजन चैनलों के टी आर पी देख कर लगता है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग अखबार पढ़ते हैं और टी वी देखते हैं। यानी सूचना के प्रति जागरुकता है लोगों में। लेकिन सवाल यह नहीं है सवाल है कि लोग अपना राजनीतिक दृष्टिकोण कैसे तय करते हैं और वोट देने का निर्णय केसे करते हैं? वोट राजनीतिक दृष्टिकोण की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति नहीं भी हो सकता है। कई मामलों में यह किसी राजनीतिक नजरिये के असर से मुक्त भी होता है। बहुत से लोग न अखबार पढ़ते हैं और ना टी वी देखते हैं पर वोट डालते हैं। बहुत सी ग्रामीण महिलाएं हैं जिनके राजनीतिक विचारों और वोट डालने के फैसले में कोई सम्बंध नहीं होता। वं अक्सर उन्ही निशानों पर बटन दबाती हैं जिनके बारे में घरों के पुरुष उन्हें बता देते हैं। इससे यह तो पता चलता है कि सूचना , जागरुकता और जानकारी जैसे जैसे तत्व वोट डालने की प्रक्रिया को पूरी तरह प्रभावित नहीं करते। राजनीति विज्ञान के सिद्धांतों से अलग यहां आकर राजनीतिक नजरिया संचार का माध्यम बन जाता है। यहीं आकर महसूस होता है कि राजनीतिक दृष्टिकोण सम्पूर्णतया सूचना और जागरुकता का क्रिया कलाप नहीं है बल्कि यह वर्षों के विचार और आस्था से भी प्रभावित होता है। इस तरह की राजनीतिक आस्थाएं गांवों तक में ही सीमित नहीं हैं बल्कि इनका असर शहरों में भी देखा जाता है। केवल जाति और घोषणाओं को इसके लिये पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। इस राजनीतिक आस्था को जानकारी और जागरुकता पूरी तरह प्रभावित नहीं करती पर आस्था में बदलाव राजनीतिक दलों के भाग्य को तो बदल ही डालता है। इस बार के भाजपा के चुनावघोषण पत्र को ध्यान से देखें तो महसूस होगा कि यह आस्था को बदलने की कोशिश है तथा इसी कोशिश के तहत राम को याद किया गया है।

 

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