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Sunday, December 11, 2016

हाईब्रिड युद्ध में हम कमजोर

हाइब्रिड युद्ध में हम कमजोर 
भारत पाकिस्तान की सीमा पर रोज तनाव बड़ रहे हैं और घटनाएं घट रहीं हैं जिसमें सीमा पर रहने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। रोजना युद्ध विराम को भंग करने की घटनाएं घट रहीं हैं। हर बार जब घटना घटती है तो कठोर बयान जारी किये जाते हैं, पाकिस्तान को दोषी बताया जाता है और बहस शुरू हो जाती है। जांच के आदेश दिये जाते हैं और  टी वी पर चर्चा होती है अखबारों में विचार छपते हैं और सब शांत हो जाता है। कुछ दिनों लोग भूल जाते हैं, अचानक फिरवैसी ाटना हो जाती है। यह एक अंतहीन सिलसिले की तरह महसूस हो रहा हे। पाकिस्तान सारे आरोपों से इंकार करता है और ठोस सबूत की मांग करता है ओर फिर अपने आतंीकियों की पीठ थपथपाने लगता है। 

दरअसल 1947 से पाकिस्तान ने भारत में किसी भी गड़बड़ी में अपनी भूमिका स्वीकारी ही नहीं। चाहे वह जम्मू कश्मीर में कबाइलियों के हमले हों या 1965 या 1971 की जंग हो या खालिस्तान का आंदोलन हो या कश्मीर में खून खराबा हो या कांधार हो या संसद पर हमले हों या कारगिल हो या जम्मू कश्मीर की वर्तमान मार काट हो , उड़ी हो ,गुरदासपुर हो या अन्य वह कभी कबूल करता ही नहीं। यह उसकी नीति का अंग है। दरअसल यह एक तरह का ‘संकर युद्ध ’ (हाइब्रिड वार) है। हाइब्रिड वार एक ऐसा युद्ध है जिसमें युद्ध के  परंपरागत कौशल के अलावा सामान्य रण कौशल और साइबर रण कौशल, आतंकवाद , आपराधिक गतिविधियां , सूचना युद्ध , आर्थिक रण इत्यादि का एक साथ इस्तेमाल होता है और इस क्रम में हमलावर अपनी भूमिका से सदा इंकार करता है। आधुनिक युग में  इसका सबसे पहला उपयोग नाटो देशों द्वारा किया गया था और इतिहास में चाणक्य ने सिकंदर के खिलाफ इस कौशल का उपयोग किया था। यकीनन अमरीका ने पाकिस्तान को यह गुर सिखाया। इसमें कोई शक इसी रण कौशल का उपयोग कर रहा है। तकनीक के विकास के साथ ही यह और घातक होता जा रहा है। इस युद्ध कौशल की सबसे बड़ी खूबी है कि किसी भी भू भाग को इसका मैदान बनाया जा सकता है, इसका कोई मोर्चा नहीं होता। पाकिस्तान की इस नीति से भारतीय जीवन खतरे में पड़ गया है। दूसरी तरफ चीन से तनाव तेजी से बड़ रहा है और चीन दुनिया में एक मात्र ऐसा मुल्क है जो सभी तरह के युद्ध कौशलों का उपयोग एक साथ करने में​ हिचकिचाता नहीं है। पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवाद को हथियार की तरह उपयोग करता है और यह उसकी नीति है। अपने खुपिया संगठनों और ट्रैक 2 कूटनीति के बल पर उसने भारतीय रनितियों, बुद्धिजीवियों और लोगों में न केवल अपने समर्थक पैदा कर लिये हैं बल्कि कुछ ऐसे इंतजमात भी कर लिये हैं जिससे कुछ लोगों का एक समूह भारतीय संसद में पारित प्रस्ताव कि ‘कश्मीर भारत का अभिनन है,’ को भी चुनौती देता है। नगरोटा का हमला पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष  राहील शरीफ की करतूत का आखिरी उदाहरण था। शरीफ ने यह तय कर रखा था कि भरत पाक में किसी भी वार्ता को आतंकवाद के हथियार से नाकामयाब कर देंगे। जाते जाते नगरोटा कांड को अंजाम देकर राहील शरीफ ने एक तीर से दो शिकार किये पहला कि अमृतसर में ‘हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन’ में पाकिस्तान के विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज का आना टल गया ओर दूसरा कि भारत के सर्जिकल हमले के बाद पाकिस्तानी सेना की जो साख गिर गयी थी उसे थोड़ा ठीक किया। असल में हाइब्रिड वार की बाषा में भारत के सर्जिकल स्ट्राइक का जवाब दे दिया। कटु सत्य तो यह है कि हम एक राष्ट्र के तौर पर अपने दुश्मनों द्वारा किये जाने वाले  हाइब्रिड हमले के लिये तैयार नहीं हैं। फिदायीं हमले , 1993,2006,2008 के हमले इसके उदाहरण हैं। 26/11 के बाद नींद थोड़ी खुली थी और फिर हमने आंखें मूंद लीं।असल में हमारा देश बड़बोलों का देश है केवल ढोल पीटना हम जानते हें। इससे कुछ नहीं होता। इसके लिये हमें कमर कसनी होगी। खुफिया बंदोबस्त को सख्त करना होगा। हर हमले का कठोर उत्तर देना होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा का वातावरण तैयार होगा।

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