व्यंग्य: भाई साहब ‘सोनम गुप्ता बेवफा है’ सचमुच !
28 नवम्बर, सोमवार का दिन। कोलकाता के हजारों लोगों को एक बनाकर प्रदर्शन करने की क्या पड़ गयी और क्यों पड़ गयी यह एक अहम(क) सवाल है। बेकार की नोटबंदी घटना को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की क्या जरूरत पड़ी? सोंचता हूं कि नारे और प्रदर्शन कोलकाता की मुख्य पहचान है। दुनिया के हर कोने में इसकी इस पहचान की चर्चा है और खास कर इंगलैंड में , जहां के ‘गौरांग महाप्रभु ’ हमारे आका होते थे। जाब चर्नाक से लेकर माउंटबेटन तक जहां की कथाएं सुना कर हमें वैसे ही आतंकित करते थे जैसे गरुड़ पुराण नरक की कथाओं से आतंकित करते हैं। भारत में अगर मार खाने वाला अल्पसंख्यक और हमलावर बहुसंख्यक हो तो यह तुरन्त राजनीतिक मुद्दा बन जाता है। यही नहीं जिस किसी घटना से लोग जुड़े होते हैं वह भी एक राजनीतिक घटना बन जाती है। जैसे खुले में शौच करने जैसी घटना को ही लें। यह उंकड़ू चिंतन का एक रहस्यमय आसन है , यारों ने इसे भी एक राजनीतिक मुद्दा बना दिया। नोटबंदी के बाद बैंकों के सामने नोट बदलने के लिये कतार में खड़े लोगों और लुगाइयों में कुछ साइड देखकर लघुशंका का दीर्घ समाधान का सुख लेते हैं , अब यारों ने वहां पुलस खड़ी कर दिये। कुछ लोगों ने इसे भी राजनीतिक मुद्दा बना दिया। राजनीतिक मुद्दे क्या होते हैं एक भारतीय को यह बात समझाने की आवश्यकता नहीं होती। हां तो नोटबंदी की बात चल रही थी तो इसी में एक तोता छाप पंडित जी ने सड़क के किनारे लगी अपनी दुकान पर जमा नोटपरिवर्तनकारी धर्मावलम्बियों को समझाते हुये कहा कि भैय्ये यह हमारे आपके लिये तो सेक्रिट था पर मोदी जी ने अपने चेलों को इसका संकेत बहुत पहले दे दिया था कि कबसे नोट बंद किये जा रहे हैं और वे जल्दी बदलवा लें।.... और यही कारण है कि नेता लोग इससे चिंतित नहीं हैं। राजनीति तो उनकी रोटी है इसलिये थोड़ी तो राजनीति करेंगे। एक नोटपरिवर्तनकामी ने अपनी कामेच्छा त्याग कर पूछा कैसे कह लहे हैं पंडित जी कि नेताओं को मोदी जी ने साफ बता दिया था, मैं तो आपके ललाट में सीधा दिवालिया योग देख रहा हूं इसलिये आप नहीं समझ पाये वह संकेत। उस कवि को सुना है या नहीं आपने कि ‘भरे भुवन में करत है नैनन ही सौं बात।’ अब आप नैनन की बतिया ना समझे तो दोष उस भुवन भामिनी का नहीं है भक्त। वह भी अपनी जिद पर अड़ गया क्योंकि वह मोदी जी का समर्थक था और वहां खड़ा नोटबंदी की हिमायत कर अपनी राजनीति चटका रहा था। ऐसे मोदी भक्त नोटपरिवर्तन विरोदियों से मारपीट तक कर देते हैं। हां तो वे जनाब अड़ कगये पंडित जी के सामने कि वे बतायें कि मोदी जी ने कहां और क्या संकेत दिये। पुंडित जी तोते के सामने दाना डाला और अपनी हथेली पर सुर्ती। नेता जी नौजवान थे बिगड़ गये पहले हमें बताइये उसके बाद सुर्ती खाइयेगा। पंडित जी ने बड़े आराम से कहा, भक्त यह सुर्ती नहीं है यह सु रति है और नोटपरिवर्तनकामी लोगों के लिये यह रति अत्यंत सहज है। वे अपनी बात पर अड़े थे। वे मामले को सियासी रंग देना चाहते थे। घस फूल और कमल के बीच की सियासत। पंडित जी ने सु रति का आनंद लेकर कहा कि सुनो भक्त , तुम्हें मालूम है न कि इस नोटबंदी के ष्टड़यंत्र का कूटनाम यानी कोडवर्ड था ‘सोनम गुप्ता बेवफा है।’ हां तो था न। यह तो सुरक्षा के लिहाज से किया गया था। नहीं भाई बीच में बोलते क्यों हो, चुपचाप सुनो भक्त। अब हमारी झ्यातिष विद्या में अंकशास्त्र भी एक विद्या है। अंकशास्त्र के मुताबिक सोनम का मूलांक है 8 - SONAM - 19+15+14+1+13 = (1+1+1+1+1) (9+5+ 4+3)= 5+ (21)= 5+3= 8 , गुप्ता का मूलांक है 11 - GUPTA = 7+21+16+20+1 = (7+2+1+2+1) (1+6+0)= 13+7=4+7 = 11, बेवफा का मूलांक है 20- BEWAFA - 2+5+23+1+6+1= 20 और है का मूलांक है 16 ,HAI= 8+1+8 =विषम 1 को हटा दें तो हो जायेगा 8+0 +8 यानी 16। कुल मिला कर बनता है 8.11.2016 यानी नोटबंदी की तारिख। अब भक्त सोनम गुप्ता की बेफई देखो कि तुम्हारे हाथ क्या आनी थी दिमाग तक में नहीं आयी। भक्त तुम्हारे ललाट पर कालसर्पयोग कुंडली मारे बैठा है इसलिये तुम नहीं समझ पाये और जिनका वृहस्पति सशक्त हैं वे भांप लिये और बिहार में दनादन जमीन खरीद लिये। ... और तुम यहां सड़क पर खड़े मोटर वाहनों के चरणों से उड़ा डीजल मिश्रित रजकण का भक्षण कर रहे हो। अब भक्त रजकण की भी गरिमा है कि ‘छुअत शिला भई नारि सुहाई और भक्त तुमको अबतक अकल नहीं आयी।’ इधर 21 रुपये का स्थान अपनी जेब से परिवर्तित करो और नोटपरिवर्तन का तमाशा देखो। जय हो तोताराम।
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